Saturday 16 June 2018

क्या है सुनामी और सागरवाणी


                     क्या है सुनामी और सागरवाणी
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जापान में मार्च 2011 में आए जबरदस्त भूकंप के बाद सुनामी की खौफनाक तस्वीरें अब भी लोगों के जेहन में बसी हैं। फिर एक बार फिर जापान के फुकुशिमा शहर के पास भूकंप के झटके महसूस किए गए थे। इससे पहले 2004 में दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में भी शक्तिशाली भूकंप के बाद समुद्री हलचल से भारी तबाही मची थी।

पहले सुनामी को समुद्र में उठने वाले ज्वार के रूप में भी लिया जाता रहा है लेकिन ऐसा नहीं है। दरअसल समुद्र में लहरें चांद-सूरज और ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से उठती हैं, लेकिन सुनामी लहरें इन आम लहरों से अलग होती हैं।

जब समुद्र तल या सतह पर अचानक हुई किसी बड़ी हलचल के कारण पानी की प्रचंड लहरे किनारे की ओर जाती है उन्ही लहरों को सुनामी का नाम दिया गया है। सुनामी का एक सरल उदाहरण दें तो पानी से भरे टब में अचानक कोई वजनदार वस्तु गिराने या टब को जोरों से हिलाने पर जैसी स्थिति टब में रखे पानी की होती है वैसी ही स्थिति समुद्र में आए किसी भूकंप के दौरान बनती है।

दरअसल समुद्री सतह पर, समुद्र तल के नीचे, धरती के ऊपरी सतह में अचानक आए तेज भूकंप से, भूगर्भीय तेज हलचल से समुद्र के पानी में बहुत बड़ी लहर उत्पन्न हो सकती है। ये बहुत विशाल और सैकड़ों किलोमीटर चौड़ी लहरें होती हैं। सुनामी लहरों के निचले हिस्सों के बीच का फ़ासला सैकड़ों किलोमीटर का होता है। पर जब ये तट के पास आती हैं तो इनकी गति कम हो जाती है पर ऊँचाई बढ़ जाती है।

सुनामी लहरों के बनने की कई वजह हो सकती है पर आमतौर पर यह किसी भूकंप की वजह से ही उत्पन्न होती हैं। इसके अलावा समुद्र किनारे या समुद्र के तल पर जमीन धँसने, ज्वालामुखी फटने, या अंतरिक्ष से किसी बड़ी उल्का के समुद्री क्षेत्र में गिरने से भी सुनामी का निर्माण होता है। इसके अलावा कभी कभी बहुत बड़े चक्रवात से भी सुनामी आ सकती है।

धरती की ऊपरी परत फ़ुटबॉल की परतों की तरह आपस में जुड़ी हुई है या कहें कि एक अंडे की तरह से है जिसमें दरारें हों। ऊपरी सतह से लेकर अन्तर्भाग तक, पृथ्वी, कई परतों में बनी हुई है। पृथ्वी की बाहरी सतह (outer surface)कई कठोर खंडों या विवर्तनिक प्लेट में विभाजित है जो क्रमशः कई लाख सालों में पूरे सतह से विस्थापित होती है। पृथ्वी की आतंरिक सतह एक अपेक्षाकृत ठोस (mantle)व मोटी परत से बनी है।

इन सबके अंदर होता है एक कोर, जो एक तरल बाहरी कोर और एक ठोस लोहा का आतंरिक कोर (inner core)से बनी हुई है। बाहरी सतह के जो विवर्तनिक प्लेट हैं वो बहुत धीरे-धीरे गतिमान हैं। यह प्लेट आपस में टकराते भी हैं और एक-दूसरे से अलग भी होते हैं। ऐसी स्थिति में घर्षण के कारण भूखंड या पत्थरों में दरारें टूट सकती हैं। इस तेज हलचल के कारण जो शक्ति उत्सर्जित होती है, उससे भूकंप के रूप में तबाही मचाती है।

अकसर यह सुनामी लहरे तट तक पहुँचते-पहुँचते अपना असर खो देती है। पर किसी बड़े भूंकप के कारण उठी सुनामी लहरें समुद्री तट पर कहर बरपा देती हैं। विडंबना है कि जिस सटीकता से वैज्ञानिक भूकंप के बारे में भविष्यवाणी नहीं कर सकते वैसे ही सुनामी के बारे में भी बताना मुश्किल है।

सुनामी के अब तक के रिकॉर्ड को देखकर और महाद्वीपों की स्थिति को देखकर वैज्ञानिक कुछ अंदाज़ा लगा सकते हैं।धरती की जो प्लेट्स या परतें जहां-जहां मिलती है वहाँ के आसपास के समुद्र में सुनामी का ख़तरा ज़्यादा होता है। जैसे ऑट्रेलियाई परत और यूरेशियाई परत जहां मिलती हैं वहां स्थित है सुमात्रा जो कि दूसरी तरफ फिलीपीनी परत से जुड़ा हुआ है. सुनामी लहरों का कहर वहां भयंकर रूप में देखा जा चुका है।

जब कभी भीषण भूकंप की वजह से समुद्र की ऊपरी परत अचानक खिसक कर आगे बढ़ जाती है, तो समुद्र अपनी समांतर स्थिति में ऊपर की तरफ बढ़ने लगता है।
जो लहरें उस वक़्त बनती हैं वो सुनामी लहरें होती हैं। इसकी एक मिसाल यह है कि धरती की ऊपरी परत फ़ुटबॉल की परतों की तरह आपस में जुड़ी हुई है या कहें कि एक अंडे की तरह से है जिसमें दरारें हों। अंडे का खोल सख़्त होता है लेकिन उसके भीतर का पदार्थ लिजलिजा और गीला होता है भूकंप के असर से ये दरारें चौड़ी होकर अंदर के पदार्थ में इतनी हलचल पैदा करती हैं कि वो तेज़ी से ऊपर की तरफ का रुख़ कर लेता है। धरती की परतें भी जब किसी भी असर से चौड़ी होती हैं, तो वे खिसकती हैं। इसी वजह से महाद्वीप बनते हैं। हालांकि ये भी ज़रूरी नहीं कि हर भूकंप से सुनामी लहरें बनें। इसके लिए भूकंप का केंद्र समुद्र के अंदर या उसके आसपास होना ज़रूरी है।

जब ये सुनामी लहरें किसी भी महाद्वीप की उस परत के उथले पानी तक पहुंचती हैं, जहां से वो दूसरे महाद्वीप से जुड़ा है और जो कि एक दरार के रूप में देखा जा सकता है। वहां सुनामी लहर की तेज़ी कम हो जाती है। ऐसा इसलिए क्योंकि उस जगह दूसरा महाद्वीप भी जुड़ रहा है और वहां धरती की जुड़ी हुई परत की वजह से दरार जैसी जो जगह होती है वो पानी को अपने अंदर रास्ता देती है।

उसके बाद अंदर के पानी के साथ मिलकर जब सुनामी किनारे की तरफ़ बढ़ती है तो उसमे इतनी तेज़ी होती है कि वो 30 मीटर तक ऊपर उठ सकती है और उसके रास्ते में चाहे पेड़, जंगल, इमारतें, गाड़ियां कुछ भी आएं सब कुछ बहा ले जाती हैं।

केन्द्रीय विज्ञान प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के स्थापना दिवस के अवसर पर  एक ऐप सागर वाणी की शुरूआता की है।

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत ईएसएसओ-महासागर सूचना सेवा के लिए भारतीय राष्ट्रीय केन्द्र (आईएनसीओआईएस) देश में विभिन्न उपयोगकर्ता समुदायों के लाभ के लिए है। इन सेवाओँ का अधिक लाभदायक तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है बशर्ते अंतिम उपयोगकर्ता तक समय पर और पढ़ने योग्य फॉरमेट में परामर्श पहुंच जाये।

देश की अधिकांश जनता की पहुंच में आईसीटी सुविधाएं है और वह अंतिम उपयोगकर्ता तक सूचना के प्रभावी प्रसार में प्रमुख भूमिका निभाती है। ईएसएसओ- आईएनसीओआईएस ने महासागर सूचना और परामर्श सेवाओं के समय पर प्रसार के लिए देश में उपलब्ध आधुनिक प्रौद्योगिकी और साधन अपनाये हैं जिनमें संभावित मछली पकड़ने के क्षेत्र में परामर्श, महासागर राज्य भविष्यवाणी, ऊंची लहरों और सुनामी के बारे में पूर्व चेतावनी शामिल हैं।

सागर वाणी तटीय समुदाय़ खासतौर से मछुआरों को उनकी आजीविका और समुद्र में सुरक्षा के संबंध में परामर्श और चेतावनियां देने में योगदान देगा।परामर्शों का प्रभावी और समय पर प्रयोगशाला से सीधे प्रसार करने के लिए एक एकीकृत सूचना प्रसार प्रणाली सागर वाणी विकसित की गई है।

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