नक्सलवाद और उसकी चुनौतियाँ
संदर्भ
हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री के नेतृत्व में नक्सलियों के खिलाफ चल रहे अभियानों और माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में विकास कार्यो को लेकर समीक्षा बैठक आयोजित की गई। केंद्र सरकार ने नक्सलवाद को खत्म करने और प्रभावित इलाकों में विकास कार्यों को गति प्रदान करने हेतु चलाए जा रहे आभियान को तेज़ करने का फैसला लिया है। बैठक में नक्सलवाद या वामपंथी अतिवाद प्रभावित 10 राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल हुए। गृह मंत्रालय के आँकड़ों के मुताबिक वर्ष 2009-13 के बीच नक्सली हिंसा के 8782 मामले सामने आए, जबकि वर्ष 2014-18 के बीच नक्सली वारदातों की संख्या घटकर 4,969 रह गई।
समीक्षा बैठक में केंद्रीय गृह मंत्री ने वामपंथी अतिवाद (Left Wing Extremism-LWE) को राष्ट्र के सम्मुख सबसे बड़ी चुनौती बताया। हालाँकि आँकड़ों के अनुसार, विगत लगभग एक दशक में वामपंथी अतिवाद से संबंधी हिंसक घटनाओं में काफी कमी आई है। जहाँ एक ओर वर्ष 2009 में इस प्रकार की 2258 घटनाएँ दर्ज की गई, वहीं दूसरी ओर वर्ष 2018 में 833 घटनाएँ दर्ज की गई।नक्सलवाद (Naxalism) की उत्पत्ति
भारत में नक्सली हिंसा की शुरुआत वर्ष 1967 में पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग ज़िले के नक्सलबाड़ी नामक गाँव से हुई और इसीलिये इस उग्रपंथी आंदोलन को ‘नक्सलवाद’ के नाम से जाना जाता है। ज़मींदारों द्वारा छोटे किसानों के उत्पीड़न पर अंकुश लगाने के लिये सत्ता के खिलाफ चारू मजूमदार, कानू सान्याल और कन्हाई चटर्जी द्वारा शुरू किये गए इस सशस्त्र आंदोलन को नक्सलवाद का नाम दिया गया। यह आंदोलन चीन के कम्युनिस्ट नेता माओ त्से तुंग की नीतियों का अनुगामी था (इसीलिये इसे माओवाद भी कहा जाता है) और आंदोलनकारियों का मानना था कि भारतीय मज़दूरों और किसानों की दुर्दशा के लिये सरकारी नीतियाँ ज़िम्मेदार हैं।
आँकड़ें
सरकार, सुरक्षा बलों एवं स्थानीय लोगों की संयुक्त कोशिशों का परिणाम है कि पिछले एक दशक में वामपंथी अतिवाद संबंधी घटनाओं, मौतों और उनके भौगोलिक प्रसार में काफी कमी आई है। जहाँ वर्ष 2010 में वामपंथी अतिवाद से प्रभावित ज़िलों की संख्या 96 थी वहीं वर्ष 2018 में प्रभावित ज़िलों की संख्या 60 रह गई है। वर्ष 2009 में जहाँ नक्सलवाद की घटनाओं और इन घटनाओं में मरने वालों की संख्या क्रमश: 2258 व 1005 थी वहीं वर्ष 2018 में यह संख्या घटकर क्रमश: 833 एवं 240 रह गई।
देश के जिन 8 राज्यों के लगभग 60 ज़िलों में यह समस्या बनी हुई है उनमें ओडिशा के 5, झारखंड के 14, बिहार के 5, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ के 10, मध्य प्रदेश के 8, महाराष्ट्र के 2 तथा बंगाल के 8 ज़िले शामिल हैं।
वर्ष 2015 के बाद से नक्सलियों के 90% हमले लगभग चार राज्यों- छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार और ओडिशा में हुए हैं। माओवादियों के थिंक-टैंक और प्रथम पंक्ति के नेता या तो मारे जा चुके हैं या इस विचारधारा को छोड़ चुके हैं।
नक्सलवादियों की मान्यताएँ
नक्सलवादी ये मानते हैं कि वे हिंसा के माध्यम से समाज में बदलाव ला सकते हैं।
ये लोकतंत्र एवं लोकतांत्रिक संस्थाओं के खिलाफ हैं और ज़मीनी स्तर पर लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को खत्म करने के लिये हिंसा का सहारा लेते हैं।
ये समूह देश के अल्प विकसित क्षेत्रों में विकासात्मक कार्यों में बाधा उत्पन्न करते हैं और लोगों को सरकार के प्रति भड़काने की कोशिश करते हैं।
नक्सलवाद की उत्पत्ति के कारण
केंद्र और राज्य सरकारें माओवादी हिंसा को मुख्यत: कानून-व्यवस्था की समस्या मानती रही हैं, लेकिन इसके मूल में गंभीर सामाजिक-आर्थिक कारण भी रहे हैं।
नक्सलियों का कहना है कि वे उन आदिवासियों और गरीबों के लिये लड़ रहे हैं, जिनकी सरकार ने दशकों से अनदेखी की है। वे ज़मीन के अधिकार एवं संसाधनों के वितरण के संघर्ष में स्थानीय सरोकारों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
माओवाद प्रभावित अधिकतर इलाके आदिवासी बहुल हैं और यहाँ जीवनयापन की बुनियादी सुविधाएँ तक उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन इन इलाकों की प्राकृतिक संपदा के दोहन में सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र की कंपनियों ने कोई कमी नहीं छोड़ी है। यहाँ न सड़कें हैं, न पीने के लिये पानी की व्यवस्था, न शिक्षा एवं स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएँ और न ही रोज़गार के अवसर।
नक्सलवाद के उभार के आर्थिक कारण भी रहे हैं। नक्सली सरकार के विकास कार्यों के कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न करते हैं। वे आदिवासी क्षेत्रों का विकास नहीं होने देते और उन्हें सरकार के खिलाफ भड़काते हैं। वे लोगों से वसूली करते हैं एवं समांतर अदालतें लगाते हैं।
प्रशासन तक पहुँच न हो पाने के कारण स्थानीय लोग नक्सलियों के अत्याचार का शिकार होते हैं।
अशिक्षा और विकास कार्यों की उपेक्षा ने स्थानीय लोगों एवं नक्सलियों के बीच गठबंधन को मज़बूत बनाया है।
जानकार यह मानते हैं कि नक्सलवादियों की सफलता की वज़ह उन्हें स्थानीय स्तर पर मिलने वाला समर्थन रहा है, जिसमें अब धीरे-धीरे कमी आ रही है।
'LWE' ज़िलों के लिये विशेष रणनीति
इसके तहत नक्सल प्रभावित ज़िलों (LWE Affected Districts) की संख्या को लगभग इसके पाँचवें भाग तक कम करने का निर्णय लिया गया था। इस पर प्रभावी नियंत्रण के लिये निम्नलिखित प्रयास किये जा रहे हैं:
विशेष केंद्रीय सहायता (Special Central Assistance-SCA)- सार्वजनिक संरचना और सेवाओं के बीच मौजूद खाई को खत्म करने हेतु।
सड़क संपर्क परियोजना (Road Connectivity Project)- प्रभावित क्षेत्रों में 5,412 किलोमीटर सड़कों के निर्माण के लिये।
कौशल विकास परियोजना (Skill Development Project)- वर्ष 2018-19 तक 47 ITI और 68 कौशल विकास केंद्रों के निर्माण के लिये।
शिक्षा संबंधी पहल (Education Initiatives)- नए केंद्रीय विद्यालयों (KVs) और जवाहर नवोदय विद्यालयों (JNV) के निर्माण हेतु मंज़ूरी। एकलव्य मॉडल (Eklavya Model) के तहत और अधिक स्कूल खोलने की भी योजना बनाई जा रही है।
वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion)- LWE प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले सभी नागरिकों को 5 कि.मी. के भीतर बैंकिंग सुविधाओं को उपलब्ध कराने की कोशिश की जा रही है।
इसके अलावा 'LWE' ज़िलों को उपलब्ध कराई जाने वाली वित्तीय सहायता को अधिक विशेषीकृत बनाने के साथ-साथ सामाजिक अंकेक्षण (Social Audit) को क्रियान्वित करना।
सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयास
सरकार नक्सली चरमपंथ से निबटने के लिये बहुआयामी रणनीति अपना रही है।
इसमें सुरक्षा एवं विकास से संबंधित उपाय तथा आदिवासी एवं अन्य कमज़ोर वर्ग के लोगों को उनका अधिकार दिलाने से संबंधित उपाय शामिल हैं।
सरकार की इस नीति के परिणामस्वरूप नक्सलियों के हौसले कमज़ोर हुए हैं तथा उनके आत्मसमर्पण की संख्या लगातार बढ़ रही है।
विमुद्रीकरण ने भी नक्सलियों को पहुँचने वाली वित्तीय सहायता पर लगाम लगाई है और इसके बाद से अब तक 700 से अधिक माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया है।
सरकार वामपंथी अतिवाद से प्रभावित क्षेत्रों में सड़कें बनाने की योजना पर तेज़ी से काम कर रही है और वर्ष 2022 तक 48877 किमी. सड़कें बनाने का लक्ष्य रखा गया है।
वामपंथी अतिवाद से प्रभावित क्षेत्रों में संचार सेवाओं को मज़बूत बनाने के लिये सरकार बड़ी संख्या में मोबाइल टावर लगाने का काम कर रही है। इसके तहत कुल 4072 टावर लगाने का लक्ष्य रखा गया है।
सरकार वामपंथी अतिवाद से प्रभावित क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे, कौशल विकास, शिक्षा, ऊर्जा और डिजिटल संपर्कता का यथासंभव विस्तार करने के भी प्रयास कर रही है।
नक्सलवाद से निपटने के लिये 'SAMADHAN' पहल
पिछले वर्ष नक्सल समस्या से निपटने के लिये केंद्र सरकर ने आठ सूत्रीय 'समाधान’ नामक एक कार्ययोजना की शुरुआत की। यह अंग्रेज़ी के कुछ शब्दों के प्रथम अक्षरों से बना एक Acronym है। इस कार्ययोजना के आठ बिंदु इस प्रकार हैं:
S -Smart leadership=कुशल नेतृत्व
A -Aggressive strategy=आक्रामक रणनीति
M -Motivation and training=प्रोत्साहन एवं प्रशिक्षण
A -Actionable intelligence=कारगर खुफिया तंत्र
D -Dashboard based key performance indicators and key result areas= कार्ययोजना के मानक
H -Harnessing technology=कारगर प्रौद्यौगिकी
A -Action plan for each threat=प्रत्येक रणनीति की कार्ययोजना
N -No access to financing=नक्सलियों के वित्त-पोषण को विफल करने की रणनीति
आगे की राह
वामपंथी अतिवाद से ग्रसित क्षेत्रों की क्षेत्रीय विशेषता यथा-कलाकृतियों आदि के निर्माण से संबंधित व्यापार को ऑनलाइन मार्केट से जोड़ना। इससे धन के प्रवाह को बढ़ाकर समावेशन को सुनिश्चित किया जा सकता है।
इन क्षेत्रों में तैनात सुरक्षा बलों को वामपंथी उग्रवादी संगठनों के नेताओं से बातचीत करने के लिये बढ़ावा देना। इस प्रकार अधिक नक्सली संगठनों को उदासीन बनाकर समाज की मुख्य धारा में शामिल किया जा सकता है।
शिक्षा, रोज़गार, अवसंरचनात्मक विकास और आपसी संवाद को बढ़ाना चाहिये।
आर्थिक विकास नीतियों के सही क्रियान्वयन के साथ ही लचीली परंतु कठोर सुरक्षा नीति को अपनाने की आवश्यकता है।
राज्यों को अपनी आत्मसमर्पण नीति (Surrender Policy) को और अधिक तर्कसंगत बनाना चाहिये ताकि LWE में फँसे निर्दोष व्यक्तियों को मुख्य धारा में लाया जा सके।
आत्मसमर्पण नीति
बंदूक किसी समस्या का समाधान नहीं है और इसी को ध्यान में रखते हुए आतंकवादियों, नक्सलियों और माओवादियों को आत्मसमर्पण नीति के माध्यम से मुख्य धारा में वापस लाने का प्रयास किया जाता है। इसके अंतर्गत राज्य आतंकवादियों, नक्सलियों और माओवादियों को आत्मसमर्पण करने के बदले प्रोत्साहन राशि या रोज़गार या दोनों प्रदान करता है। अलग-अलग राज्यों की आत्मसमर्पण नीति अलग-अलग है।
राज्यों को LWE समूहों को पूरी तरह से समाप्त करने और प्रभावित क्षेत्रों के सर्वांगीण विकास को सुनिश्चित करने के लिये एक केंद्रित समयबद्ध दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
इसके लिये जनजातीय तथा आदिवासी बहुल क्षेत्रों में पाँचवीं अनुसूची तथा पेसा कानून को ईमानदारी के साथ लागू करके संविधान की सीमाओं के अंतर्गत आदिवासियों को स्वशासन का अधिकार देने की प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिये।
नक्सलियों से लड़ने के लिये प्रदेशों की पुलिस क्षमता का विकास करना तो आवश्यक है ही, इसके साथ ही वंचित समाज के बीच यह संदेश भी जाना चाहिये कि सरकारें उनकी हितैषी हैं।
हालाँकि बीते कुछ वर्षों में LWE संबंधी हिंसात्मक घटनाओं में कमी आई है, परंतु इस प्रकार के समूहों को पूर्णतः समाप्त करने के लिये निरंतर प्रयास करने की आवश्यकता है।
सौजन्य से- दृष्टि आईएएस
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