सवालों में घिरा बोडो शांति समझौता
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असम की स्थानीय जनजातियों में बोडो एक बड़ी और सशक्त जनजाति है।
हालांकि केंद्र सरकार और विभिन्न बोडो गुटों के बीच हुए समझौते को लेकर अभी भी आशंकाएं बनी हुई हैं।
नागरिकता संशोधन कानून को लेकर असम में चल रहे आंदोलन के बीच राज्य के एक इलाके में शांति स्थापित करने के लिए प्रतिबंधित बोडो उग्रवादी संगठनों से केंद्र सरकार ने समझौता किया है। असम के खतरनाक उग्रवादी समूहों में शामिल नेशनल डेमोके्रटिक फ्रंट आॅफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) के सभी गुटों के साथ केंद्र सरकार के इस शांति समझौते में असम सरकार भी शामिल है। इसलिए यह बोडो शांति समझौता त्रिपक्षीय है।
समझौता क्यूँ जरूरी
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दरअसल, यह समझौता इसलिए भी जरूरी था कि असम में इस समय नागरिकता संशोधन कानून को लेकर बड़ा आंदोलन चल रहा है। इसलिए असम की प्रमुख जनजाति बोडो, जो असम की कुल आबादी की लगभग छह फीसद के करीब है, से शांति समझौता करना जरूरी हो गया था। इस समझौते से उन इलाकों में शांति स्थापित होने की उम्मीद है, जहां बोडो आबादी काफी है। गौरतलब है कि बोडो आबादी असम के कोकराझार, चिरांग, उदलगुड़ी और बक्सा जिलों में केंद्रित है। इस समझौते से असम की स्थानीय सरकार को भी राहत मिलने की उम्मीद है, जो इस समय नागरिकता संशोधन कानून को लेकर असमिया लोगों की नाराजगी का सामना कर रही है।
हालांकि केंद्र सरकार और विभिन्न बोडो गुटों के बीच हुए समझौते को लेकर अभी भी आशंकाएं बनी हुई हैं। ऐसा इसलिए भी है कि पहले भी दो बार बोडो शांति समझौते हो चुके हैं, लेकिन समस्या का कोई समाधान नहीं निकला। हालात वहीं के वहीं हैं।
अभी भी अहम सवाल यह है कि क्या बोडो उग्रवादी गुटों के एक समूह के समझौते से बोडो जनजाति अलग बोडो राज्य की मांग छोड़ देगी?
असम में बोडो आंदोलन लंबे समय से चल रहा है। आंदोलनकारी नेताओं से बातचीत की कोशिश केंद्र सरकार लंबे समय से कर रही है। पहले भी, 1993 में आॅल बोडो स्टूडेंट यूनियन (आबसू) के साथ केंद्र सरकार ने समझौता किया था। इस समझौते के आधार पर बोडोलैंड स्वायत्त परिषद का रास्ता खुला था। इसके बाद 2003 में केंद्र सरकार ने उग्रवादी गुट बोडो लिबरेशन टाइगर्स फोर्स के साथ समझौता किया। इस समझौते के बाद तहत बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद का गठन किया गया था। लेकिन इन समझौतों से कई दूसरे बोडो गुट संतुष्ट नहीं हुए और बोडो उग्रवादी संगठनों ने हिंसा का रास्ता अपनाया और कई जगह हमलों को अंजाम दिया। साल 2014 में बोडो उग्रवादी गुट- नेशनल डेमोके्रटिक फ्रंट आॅफ बोडोलैंड (एस) ने कोकराझार और शोणितपुर जिले में उनचास लोगों की हत्या कर दी थी। उसी साल इसी आतंकी गुट ने बक्सा जिले में चालीस बंगाली मुसलमानों को मार डाला था। इससे पहले 2008 में गुवाहाटी, बारपेटा, बोगाईगांव और कोकराझार जिलों में शृंखलाबद्ध बम धमाके बोडो उग्रवादी गुट ने किए थे। इनमें लगभग नब्बे लोग मारे गए थे। इस हमले के पीछे नेशनल डेमोके्रटिक फ्रंट आॅफ बोडोलैंड (आरडी) का हाथ था। इन्हीं गुटों के साथ केंद्र सरकार ने अभी समझौता किया है।
सरकार को उम्मीद है कि इन प्रतिबंधित संगठनों से समझौते के बाद बोडो समस्या हल हो जाएगी और अलग बोडो राज्य की मांग का मसला भी खत्म हो जाएगा, क्योंकि समझौते में साफ कहा गया है कि असम की प्रादेशिक एकता को बरकरार रखते हुए बोडो गुटों के साथ व्यापक और अंतिम हल निकालने के लिए बातचीत की गई। असम के मंत्री हेमंत विस्व शर्मा ने समझौते के बाद कहा कि इस समझौते के साथ ही अलग बोडोलैंड की मांग की बात खत्म हो गई है। लेकिन बोडो नेताओं का दावा इससे अलग है। उनका कहना है कि बोडो राज्य की मांग को खत्म करने की बात समझौते में कहीं नहीं हुई है और न ही उन्होंने केंद्र सरकार को इस संबंध में कोई आश्वासन दिया है। अलग राज्य की मांग को लेकर विभिन्न बोडो संगठनों की बैठक बुलाई जाएगी और उसमें विचार-विमर्श होगा।
नए बोडो शांति समझौते में बोडो क्षेत्र स्वायत्त जिले अब बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र के नाम से जाने जाएंगे। नए समझौते के तहत सरकार बोडो क्षेत्र स्वायत्त जिलों में कांट-छांट कर सकेगी। बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र में बोडो क्षेत्र स्वायत्त जिलों में अभी तक शामिल नहीं हुए बोडो आबादी वाले इलाके को भी शामिल किया जा सकता है। इसके लिए सरकार एक आयोग बनाएगी। समझौते के तहत बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र से गैर बोडो आबादी वाले इलाकों को हटाया जा सकता है। इससे इस इलाके में हिंसा कम होगी, यह सरकार को उम्मीद है। इस इलाके में रहने वाले बंगाली मुसलमान बोडो गुटों के निशाने पर रहे हैं। दरअसल, बोडो गुट शुरू से ही इस इलाके में रहने वाले बंगाली मुसलमानों को निशाना बनाते रहे हैं। बोडो आबादी का आरोप है कि गैर-बोडो आबादी ने उनकी संस्कृति को नुकसान पहुंचाया है और उनके संसाधनों पर कब्जा किया है। नए समझौते के तहत सरकार बोडो आबादी के कल्याण के लिए एक बोडो-कछारी कल्याण परिषद का गठन भी करेगी।
ताजा शांति समझौते को लेकर इस इलाके में रहने वाली गैर बोडो आबादी में असंतोष पनप सकता है, क्योंकि समझौते में नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट आॅफ बोडोलैंड के वही गुट शामिल हुए हैं, जिन पर असम में कई आतंकी हमले करने के आरोप हैं। समझौते में विभिन्न बोडो उग्रवादी गुटों के सदस्यों पर दर्ज आपराधिक मामलों पर पुनर्विचार की बात भी की गई है। जबकि गैर-बोडो आबादी का आरोप है कि नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट आॅफ बोडोलैंड (आरडी), नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट आॅफ बोडोलैंड (प्रोग्रेसिव) और नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट आॅफ बोडोलैंड (एस) ने असम में कई लोगों की जान ली है। इन गुटों पर सामूहिक हत्या और बम धमाकों के आरोप हैं। समझौते में कहा गया है कि बोडो नेताओं के खिलाफ दर्ज गैर-जघन्य अपराधों के मामलों को सरकार वापस ले लेगी और जघन्य अपराध के मामलों पर पुनर्विचार होगा। गौरतलब है कि नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट आॅफ बोडोलैंड (आरडी) के प्रमुख रंजन दाइमैरी और नौ अन्य लोगों को 2008 के बम धमाकों के मामले में उम्रकैद हो चुकी है। वहीं, मई 2014 में बक्सा जिले में चालीस बंगाली मुसलमानों की हत्या के मामले में कई बोडो उग्रवादी नेताओं पर मुकदमा अभी न्यायालय में विचाराधीन है। पीड़ित पक्षों का कहना है कि सिर्फ शांति समझौते के नाम पर आतंकी गतिविधियों से संबंधित मामलों को अगर सरकार वापस लेती है, तो यह हमले में मारे गए लोगों के परिवारों के साथ भारी अन्याय होगा।
दरअसल, विभिन्न बोडो गुटों और सरकार के बीच बातचीत पहले भी होती रही है। लेकिन बोडो आंदोलन में शांति नहीं आई। समस्या वहीं की वहीं बनी रही। छठे दशक में पहली बार संगठित रूप से अलग बोडो राज्य की मांग उठी थी। जब 1985 में असम समझौता हुआ तो बोडो संगठनों ने यह आरोप लगाया कि असम समझौता सिर्फ असमिया बोलने वाली आबादी के हितों की रक्षा के लिए किया गया है। इसके बाद 1987 में फिर से बोडो आंदोलन शुरू हो गया। बोडो नेता उपेंद्र नाथ ब्रह्मा के नेतृत्व में आॅल बोडो स्टूडेंट यूनियन (आबसू) ने पृथक बोडो राज्य की मांग फिर से उठा दी। फिर 1993 में केंद्र सरकार ने इस गुट से समझौता किया और बोडोलैंड स्वायत परिषद का गठन किया गया। लेकिन जल्द ही आबसू समझौते से अलग हो गया। इसके बाद 2003 में दूसरा बोडो समझौता हुआ, जिसके तहत बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद का गठन किया गया।
असम की स्थानीय जनजातियों में बोडो एक बड़ी और सशक्त जनजाति है। हालांकि बोडो आबादी और इनके प्रभाव वाले इलाकों पर अभी भी विवाद है। सरकार को खुद ही नहीं पता कि बोडो क्षेत्र स्वायत जिलों में बोडो और गैर-बोडो लोगों की आबादी कितनी है। जबकि एक दावा यह भी किया जाता है कि बोडो क्षेत्र स्वायत्त जिलों में बोडो जनजाति की आबादी सिर्फ सत्ताईस फीसद है और यही कारण है कि कोकराझार लोकसभा के सांसद गैर बोडो हैं। कोकराझार लोकसभा क्षेत्र में ही बोडो क्षेत्रीय स्वायत जिले शामिल हैं।
समझौते की शर्तें
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1.बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल (बीटीसी) को विधायी, कार्यकारी, प्रशासनिक और वित्तीय शक्तियों देगी केंद्र सरकार।
बोडोलैंड टेरिटोरियल एरिया डिस्ट्रिक्ट्स (बीटीएडी) के आंतरिक विषय तय होंगे।
2.बीटीएडी में बोडो स्कूलों का प्रांतीयकरण होगा। बोडो माध्यम के स्कूलों के लिए अलग निदेशालय।
3.बोडो आंदोलन में मारे गए लोगों के लिए 5-5 लाख का मुआवजा व एडीएफबी कैडर का पुनर्वास।
4.बीटीएडी के लिए डीआइजी का पद
5.बोडो क्षेत्रों के लिए तीन वर्षो में 1500 करोड़ का पैकेज
6.बीटीएडी से सटे गांवों को बीटीएडी में शामिल करने या निकालने, बीटीसी का नाम और काउंसिल की कुल सीटों को तय करने के लिए आयोग बनेगा।
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