#वर्तमान_शिक्षाप्रणाली_का_भयानक_सत्य👇🏻👇🏻
#कोचिंग का इंजेक्शन लगा कर लौकी की तरह भावी इंजीनियर और डॉक्टर की पैदावार की जाती है।
--------------------------------------------------------------
अब नेचुरल देशी नस्ल छोटी रह जाती है जो तनाव में आकर या तो मुरझा जाती है या बाजार में बिकने लायक ही नही रहती।
अब मैं आपको बीस साल पहले ले जाता हूँ जब सरकारी स्कूलों का दौर था।
जब एक औसत लड़के को साइंस ना देकर स्कूल वाले खुद ही लड़के को भट्टी में झोकने से रोक देते थे।
आर्ट्स और कामर्स देकर लड़कों को शिक्षक, बाबू, पटवारी,नेता और व्यापारी बनाने की तरफ मोड़ देते थे मतलब साफ है कि पानी को छोटी-छोटी नहरो में छोड़ कर योग्यता के हिसाब से अलग अलग दिशाओ में मोड़ दो ताकि बाढ़ का खतरा ही पैदा ना हो।
शिक्षक लड़के के गलती करने पर उसको डंडे से पीट-पीटकर साक्षर बनाने पर अड़े रहते और तनाव झेलने के लिये मजबूत कर देते थे।पापा-मम्मी से शिकायत करो तो दो झापड़ पापा-मम्मी भी जड़ देते थे और गुरुजी से सुबह स्कूल आकर ये और कह जाते थे कि अगर नहीं पढ़े तो दो डंडे हमारी तरफ से भी लगाना आप।
अब पक्ष और विपक्ष एक होता देख लड़का पिटने के बाद सीधा फील्ड में जाकर खेलकूद करके अपना तनाव कम कर लेता था।खेलते समय गिरता पड़ता और कभी-कभी छोटी-मोटी चोट भी लग जाती तो मिट्टी डाल कर चोट को सुखा देता या उसपर मूत्र त्याग कर देता था,पर कभी तनाव में नहीं आता था न कभी टिटेनस होता था। दसवीं आते-आते लड़का मजबूत लोहा लाट हो जाता था।
तनावमुक्त होकर मैदान में तैयार खड़ा हो जाता था।हर तरह के तनाव को झेलने के लिए.......
फिर कुछ नीच, व्यापारी टाइप के लोग समाज में कोचिंग और प्राइवेट स्कूलों का दौर ले आए यानी की शिक्षा स्कूल से निकल कर ब्रांडेड शोरुम में आ गई। अब मेधा प्राकृतिक न होकर कृत्रिम हो गई । अर्थात् गधों को घोड़ा बनाया जाने लगा। ज्ञान(कोचिंग), पैसे वालों की चीज बन गई। प्राइवेट कालेजो में तो, यदि टीचर, स्टूडेंट को डांट दे तो, मैनेजमेंट टीचर को बाहर का रास्ता दिखा देता है ।क्योंकि स्टूडेंट की फीस से ही, टीचर को वेतन और स्कूल का खर्चा चलता है ।शिक्षा इतनी सोफेस्टीकेटेड हो गई कि बच्चे को गुलाब के फूल की तरह ट्रीट किया जाने लगा। मतलब बच्चा 50% लाएगा तो भी साइंस में ही पढ़ेगा। हमारा मुन्ना तो डॉक्टर ही बनेगा। हमारा बच्चा IIT से B.tech ही करेगा । शिक्षक अगर हल्के से भी मार दे तो पापा-मम्मी मानवाधिकार की किताब लेकर मीडिया वालों के साथ स्कूल पर चढ़ाई कर देते हैं कि हमारे मुन्ना को हाथ भी कैसे लगा दिया? मीडिया वाले शिक्षक के गले में माइक घुुसेड़ कर पूछने लग जाते हैं कि आप ऐसा कैसे कर सकते हैं? यहाँ से आपका बच्चा सॉफ्ट टॉय बन गया। ऐसे बच्चे आईएएस, आईपीएस, पीसीएस, पीपीएस आदि, तो हो गए पर जरा सा विभागीय तनाव मिला, अपनी कनपटी पर गोली मार बैठते हैं।
बिलकुल टेडी बियर की तरह। अब बच्चा स्कूल के बाद तीन-चार कोचिंग सेंटर में भी जाने लग गया। खेलकूद तो भूल ही गया। फलाने सर से छूटा तो ढिमकाने सर की क्लास में पहुंच गया। बचपन किताबों में उलझ गया और बच्चा कॉम्पटीशन के चक्रव्यूह में ही उलझ गया बेचारा।
क्यों भाई आपका मुन्ना केवल डॉक्टर और इंजीनियर ही क्यों बनेगा वो आर्टिस्ट,सिंगर,खिलाड़ी, किसान और दुकानदार से लेकर नेता और कारखाने का मालिक क्यों नहीं बनेगा। हजारों फील्ड हैं अपनी योग्यता के अनुसार कार्य करने के वो क्यों ना चुने। अभी कुछ दिनों पहले मेरे महंगे जूते थोड़े से फट गए पता किया एक लड़का अच्छी तरह से रिपेयर करता है कि ये पता ही नहीं चलता कि जूते रिपेयर भी हुए हैं । उसके पास गया तो उसने 200 रुपये मांगे रिपेयर करने के और कहा एक हफ्ते बाद मिलेगें जी। उस लड़के की आमदनी का हिसाब लगाया तो पता चला की लगभग एक लाख रुपये महीने कमाता है।
यानी की पूरा बारह लाख पैकेज। वो तो कोटा नहीं गया। उसने अपनी योग्यता को हुनर में बदल दिया और अपने काम में मास्टर पीस बन गया। कोई शेफ़ बन कर लाखों के पैकेज़ में फाइव स्टार होटल में नौकरी कर रहा है*
तो कोई हलवाई बन कर बड़े-बड़े इवेंट में खाना बना कर लाखों रुपये ले रहा है कोई डेयरी फार्म खोल कर लाखों कमा रहा है। कोई दुकान लगा कर लाखों कमा रहा है तो कोई कंस्ट्रक्शन के बड़े-बड़े ठेके ले रहा है। तो कोई फर्नीचर बनाने के ठेके ले रहा है। कोई रेस्टोरेंट खोल कर कमा रहा है तो कोई कबाड़े का माल खरीद कर ही लाखों कमा रहा है तो कोई सब्जी बेच कर भी 20-25 हजार महीने का कमा रहा है तो कोई चाय की रेहड़ी लगा कर ही 40-50 हजार महीने के कमा रहा है तो कोई हमारे यहाँ कचौरी-समोसे और पकौड़े-जलेबी बेच कर ही लाखों रुपये महीने के कमा रहा है। तो कुछ ज्योतिषी बनकर, कुछ घर-घर कथा कहकर, प्रवचन - सत्संगकर , कुछ शादी -विवाह कराकर लाखों से करोड़ों रुपये मानसम्मान के साथ पीट रहे हैं। लेकिन हाँ इस पेशे में रहकर, औरतों से सावधानी रखनी होगी,अन्यथा बहुतों के सिर पर जूते बज चुके हैं।
मतलब साफ है भैया कमा वो ही रहा है जिसने अपनी योग्यता और उस कार्य के प्रति अपनी रोचकता को हुनर में बदला और उस हुनर में मास्टर पीस बना। जरुरी नहीं है कि आप डॉक्टर और इंजीनियर ही बनें आप कुछ भी बन सकते हैं आपमें उस कार्य को करने का जुनून हो बस। हाँ तो अभिभावकों/प्रियजनों अपने बच्चों को टैडीबीयर नहीं बल्कि लोहा बनाओ लोहा। अपनी मर्जी की भट्टी में मत झोंको उसको।
उसे पानी की तरह नियंत्रित करके छोंड़ो वो अपना रास्ता खुद बनाने लग जाएगा।
पर बच्चों पर नियंत्रण जरुर रखो । अगर वो अनियंत्रित हुआ तो पानी की तरह आपके जीवन में बाढ़ ला देगा।
कहने का मतलब ये है कि शिक्षा को नेचुरल ही रहने दो,क्यों सिंथेटिक बना कर बच्चे का जीवन और अपनी खुशियों को बरबाद कर रहे हो।बच्चों को उनकी रूचि के अनुसार आगे बढ़ने में सहयोग देंl
No comments:
Post a Comment