Thursday 23 August 2018

जल्लिककट्टू और कंबाला मे क्या अंतर है..??

जल्लिककट्टू और कंबाला मे क्या अंतर है..??
जलीकट्टू: इस खेल के तहत सांडों या बैलों को काबू में किया जाता है। हर साल जनवरी मध्य में मट्टू पोंगल के दौरान इस खेल का आयोजन होता है। जलीकट्टू तमिल के दो शब्दों जल्ली और कट्टू को जोड़कर बना है। इसका अर्थ होता है, बैल के सींग में बंधे सोने या चांदी के सिक्के। इन सिक्कों को बैल के सींगों से निकालने वाले को विजेता माना जाता है। इस खेल के तीन प्रारूप होते हैं- वाटी मंजू विराट्टू, वेलि विराट्टू और वाटम मंजूविराट्टू।
कंबाला: नवंबर से मार्च महीने के दौरान भैंसों की सालाना दौड़ को कंबाला कहा जाता है। इसका आयोजन केरल से सटे दक्षिण कन्नड़ और उडुपी जिलों में किया जाता है। इन महीनों के दौरान इस खेल का आयोजन राज्य के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग वक्त पर होता है। पहले इस खेल के विजेताओं को नारियल दिए जाते थे, लेकिन अब गोल्ड मेडल और ट्रॉफी आदि देकर सम्मानित किया जाता है।
क्या हैं नियम?
जलीकट्टू: वाटी मंजू विराट्टू के तहत खिलाड़ियों को निश्चित समय और दूरी के भीतर सांड को काबू में करना होता है। वेलि विराट्टू में सांडों को खुले मैदान में छोड़ दिया जाता है और प्रतिस्पर्धियों को इन्हें काबू में करना होता है। वाटम मंजूविराट्टू में बैंलों को लंबी रस्सी से बांधा जाता है और प्लेयर्स को उन्हें काबू में करना होता है।
कंबाला: कंबाला का आयोजन दो समानांतर रेसिंग ट्रैक्स पर होता है। ट्रैक में पानी फैलाकर कीचड़ कर दिया जाता है। ये ट्रैक 120 से 160 मीटर लंबे होते हैं और 8 से 12 मीटर तक चौड़े होते हैं। दो भैंसों को बांधा जाता है और उन्हें प्लेयर्स द्वारा हांका जाता है। भैंसे को लेकर पहले फिनिश लाइन तक पहुंचने वाला विजेता होता है। भैंसों को दौड़ाने के लिए रेसर उन्हें डंडे से पीटते भी हैं और कोशिश की जाती है कि भैंसे 12 सेकंड के भीतर 100 मीटर की दूरी तय कर लें। यह आयोजन कई दिनों तक चलते हैं और क्षेत्रीय स्तर पर ग्रैंड फिनाले का आयोजन होता है। इस फेस्टिवल की शुरुआत उद्घाटन समारोह के साथ होती है, जिसमें किसान अपने भैंसों के साथ जुटते हैं।

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