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राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन की मानें तो उसने ढाई साल में प्रदूषण रोधी नियमों का पालन न करने वाली 350 से अधिक औद्योगिक इकाइयों को बंद करने का आदेश दिया है। इसका मतलब यह भी है कि उसे गंगा को गंदा करने वाले कारखानों को काबू में करने में समय लग रहा है। बेहतर है कि ढिठाई का परिचय दे रहे कल-कारखानों के खिलाफ और सख्ती बरती जाए। ऐसी ही सख्ती गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के अन्य उपायों के अमल के मामले में भी दिखाई जानी चाहिए। इसकी जरूरत इसलिए है, क्योंकि एक तो गंगा के प्रदूषण में अपेक्षित कमी नहीं आ पाई है और दूसरे, इस नदी को साफ-सुथरा करने का वादा किए चार साल से अधिक का समय बीत चुका है। लिहाजा बेहतर यही है कि गंगा को स्वच्छ करने के जो भी उपाय किए गए हैं, उन सबके अमल पर और जोर दिया जाए। ऐसा करते समय गंगा सफाई अभियान की सतत निगरानी का कोई तंत्र विकसित किया जाना चाहिए और निगरानी के दायरे में केवल कल-कारखाने ही नहीं, सीवेज शोधन संयंत्र भी आने चाहिए।
कल-कारखानों के अलावा खराब या कम क्षमता वाले सीवेज शोधन संयंत्र गंगा के दूसरे सबसे बड़े गुनहगार हैं। इसके लिए मूलत: राज्य सरकारों के तहत काम करने वाले नगर निकाय जिम्मेदार हैं। आज जब नगर निकाय तमाम संसाधनों से लैस किए जा रहे हैं, तब फिर यह आवश्यक है कि उन्हें जवाबदेही के दायरे में भी लाया जाए। बेहतर है मोदी सरकार यह समझे कि उसे केवल गंगा को साफ ही नहीं करना, बल्कि एक उदाहरण भी पेश करना है। ऐसा करके ही देश की अन्य नदियों को प्रदूषण से बचाया जा सकता है।
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