भ्रष्टाचार उन्मूलन (संशोधन) विधेयक 2018 को पारित कर लोकसभा ने कदम तो बड़ा उठाया है, पर इसके खतरे भी कम नहीं हैं। राज्यसभा यह बिल पहले ही पास कर चुकी है, यानी राष्ट्रपति की मंजूरी मिलते ही यह कानून बन जाएगा। इसकी खासियत यह है कि पहली बार इसमें रिश्वत लेने के साथ-साथ रिश्वत देने को भी संज्ञेय अपराध घोषित किया गया है।
यानी अब अगर किसी बड़ी कंपनी या कॉर्पोरेट हाउस की ओर से सरकारी नीति को तोड़ने-मरोड़ने के लिए
ऑफिसरों को रिश्वत दी गई तो न केवल वे अधिकारी नपेंगे बल्कि उस कंपनी या कॉर्पोरेट हाउस के जवाबदेह लोग भी अंदर हो सकते हैं। स्वतंत्र भारत में रिश्वतखोरी के न जाने कितने बड़े मामले सामने आए हैं, लेकिन पैसों के बल पर सरकारी तंत्र को भ्रष्ट करने वाले तत्वों के खिलाफ विरले ही कोई कार्रवाई हो पाई है। रिश्वत लेने वाले छोटे-बड़े कर्मचारी भले कार्रवाई के फंदे में आ जाएं, रिश्वत देने वालों का कुछ नहीं बिगड़ता था, क्योंकि रिश्वत देना खुद में कोई अपराध ही नहीं था।
साफ है कि यह कानून लंबे समय से महसूस की जा रही एक कमी पूरी करेगा। मगर इसकी सार्थकता तभी है जब इसे उपयुक्त मामलों में उपयुक्त व्यक्तियों के खिलाफ लागू करने की मिसालें पेश की जाएं। वरना यह कोई छुपी हुई बात नहीं है कि छोटे-मोटे मामलों में अपना जायज हक भी समय पर हासिल करने के लिए लोगों को रिश्वत देनी पड़ती है। पहले से परेशान ऐसे लोगों को ही इस कानून के हत्थे चढ़ा देने का सिलसिला न शुरू हो जाए, यह सुनिश्चित करने का कोई तरीका निकालना जरूरी है। दूसरी बात यह कि इस संशोधन विधेयक के जरिए ‘ईमानदार अफसरों को सुरक्षा की गारंटी देने’ की आड़ में अब सभी अफसरों को पूर्वानुमति की ढाल मुहैया करा दी गई है। यानी किसी भी अफसर के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच पूर्वानुमति के बगैर शुरू नहीं हो सकेगी। पहले यह प्रावधान केवल जॉइंट सेक्रेटरी और उससे ऊपर की रैंक के अधिकारियों तक सीमित था। सभी संबंधित पक्षों को यह गारंटी करना होगा कि भ्रष्टाचार समाप्त करने के मकसद से लाए गए इस कानून का नतीजा कहीं यह न निकले कि अफसर सारे सुरक्षित रहें, जबकि घोटाले उजागर करने वाले विसिल ब्लोअर्स जेल में डाल दिए जाएं।
Source NBT
यानी अब अगर किसी बड़ी कंपनी या कॉर्पोरेट हाउस की ओर से सरकारी नीति को तोड़ने-मरोड़ने के लिए
ऑफिसरों को रिश्वत दी गई तो न केवल वे अधिकारी नपेंगे बल्कि उस कंपनी या कॉर्पोरेट हाउस के जवाबदेह लोग भी अंदर हो सकते हैं। स्वतंत्र भारत में रिश्वतखोरी के न जाने कितने बड़े मामले सामने आए हैं, लेकिन पैसों के बल पर सरकारी तंत्र को भ्रष्ट करने वाले तत्वों के खिलाफ विरले ही कोई कार्रवाई हो पाई है। रिश्वत लेने वाले छोटे-बड़े कर्मचारी भले कार्रवाई के फंदे में आ जाएं, रिश्वत देने वालों का कुछ नहीं बिगड़ता था, क्योंकि रिश्वत देना खुद में कोई अपराध ही नहीं था।
साफ है कि यह कानून लंबे समय से महसूस की जा रही एक कमी पूरी करेगा। मगर इसकी सार्थकता तभी है जब इसे उपयुक्त मामलों में उपयुक्त व्यक्तियों के खिलाफ लागू करने की मिसालें पेश की जाएं। वरना यह कोई छुपी हुई बात नहीं है कि छोटे-मोटे मामलों में अपना जायज हक भी समय पर हासिल करने के लिए लोगों को रिश्वत देनी पड़ती है। पहले से परेशान ऐसे लोगों को ही इस कानून के हत्थे चढ़ा देने का सिलसिला न शुरू हो जाए, यह सुनिश्चित करने का कोई तरीका निकालना जरूरी है। दूसरी बात यह कि इस संशोधन विधेयक के जरिए ‘ईमानदार अफसरों को सुरक्षा की गारंटी देने’ की आड़ में अब सभी अफसरों को पूर्वानुमति की ढाल मुहैया करा दी गई है। यानी किसी भी अफसर के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच पूर्वानुमति के बगैर शुरू नहीं हो सकेगी। पहले यह प्रावधान केवल जॉइंट सेक्रेटरी और उससे ऊपर की रैंक के अधिकारियों तक सीमित था। सभी संबंधित पक्षों को यह गारंटी करना होगा कि भ्रष्टाचार समाप्त करने के मकसद से लाए गए इस कानून का नतीजा कहीं यह न निकले कि अफसर सारे सुरक्षित रहें, जबकि घोटाले उजागर करने वाले विसिल ब्लोअर्स जेल में डाल दिए जाएं।
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