Friday, 1 June 2018

राजनीति : विकास के साथ बढ़ती आर्थिक असमानता

राजनीति : विकास के साथ बढ़ती आर्थिक असमानता
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भारत के करोड़ों लोग खुशहाली में भी पीछे हैं। यह चिंता की बात है कि खुशहाल देशों की सूची में भारत काफी पीछे है। संयुक्त राष्ट्र की ‘वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2018’ में एक सौ छप्पन देशों की सूची में भारत का स्थान एक सौ तैंतीसवां है, जबकि पिछले साल एक सौ बाइसवां था। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत खुशहाली के मामले में सभी पड़ोसी देशों से पीछे है।

इन दिनों जहां एक ओर देश की विकास दर बढ़ने और आर्थिक विकास अच्छा रहने को लेकर रिपोर्टें छप रही हैं, वहीं दूसरी ओर लगातार आर्थिक असमानता बढ़ने की खबरें भी आ रही हैं। हाल में ‘एफ्रोएशिया बैंक ग्लोबल वेल्थ माइग्रेशन रिव्यू’ की रिपोर्ट में यह निष्कर्ष सामने आया है कि भारत में अरबपतियों की तादाद तेजी से बढ़ रही है। अरबपतियों से मतलब ऐसे लोगों से है जिनकी कुल संपत्ति एक अरब डॉलर या उससे अधिक है। वर्तमान में भारत में एक सौ उन्नीस अरबपति हैं। अगले दशक तक इन अरबपतियों की संख्या बढ़ कर साढ़े तीन सौ के पार हो जाने की उम्मीद है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2027 तक अमेरिका में अरबपतियों की संख्या आठ सौ चौरासी तक पहुंच जाएगी। इसके बाद दूसरे पायदान पर चीन होगा, जहां छह सौ संतानवे और तीसरे पायदान पर भारत होगा जहां तीन सौ सत्तावन अरबपति होंगे। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कुल संपत्ति के आधार पर भारत विश्व का छठा सबसे अमीर देश है और उसकी संपत्ति आठ हजार दो सौ तीस अरब डॉलर है। वैश्विक आर्थिक-सामाजिक विकास का तुलनात्मक अध्ययन करने वाले संगठन वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) ने जो समावेशी विकास सूचकांक (इनक्लूसिव डवलपमेंट इंडेक्स)-2018 बनाया है, उसमें भारत उभरती अर्थव्यवस्थाओं वाले एक सौ तीन देशों की सूची में बासठवें स्थान पर है। पिछले साल साठवें पायदान पर था, यानी इस बार दो पायदान और नीचे आ गया। समावेशी विकास में भारत अपने सभी पड़ोसी देशों से काफी पीछे है। सूचकांक में चीन का छब्बीसवां, नेपाल का बाइसवां, बांग्लादेश का चौंतीसवां, श्रीलंका का चालीसवां और पाकिस्तान का सैंतालीसवां स्थान है। डब्ल्यूईएफ ने इस सूचकांक में सात मानकों को आधार बनाया है। इनमें शिक्षा और प्रशिक्षण, बुनियादी सुविधाएं, भ्रष्टाचार, रोजगार, प्रति व्यक्ति आय और रहन-सहन का स्तर, पर्यावरण सुधार और भविष्य की पीढ़ियों को कर्ज से बचाने के प्रयासों को शामिल किया गया है। डब्ल्यूईएफ ने विश्व नेताओं से कहा कि वे तेजी से समावेशी विकास के नए मॉडल की ओर बढ़ें। यह सूचकांक इस बात का संकेत है कि भारत को अपनी जनता के रोजगार, रहन-सहन के स्तर, पर्यावरण सुधार, नई पीढ़ी के भविष्य, स्वास्थ्य, शिक्षा, प्रशिक्षण और अन्य नागरिक सुविधाओं में सुधार के साथ उनके जीवनस्तर को ऊपर उठाने की दिशा में अभी लंबा सफर तय करना है।

आॅक्सफैम इंडिया ने भी ‘भारतीय असमानता रिपोर्ट-2018’ में कहा है कि भारत में उदारीकरण के बाद आर्थिक असमानता और अधिक भयावह होती जा रही है। इसमें कहा गया है कि वर्ष 2017 में भारत में अरबपतियों की कुल संपत्ति देश की जीडीपी की पंद्रह फीसद के बराबर हो गई। जबकि पांच वर्ष पहले यह दस फीसद थी। रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में देश की जीडीपी 24.40 खरब डॉलर की थी। इसका पंद्रह फीसद हिस्सा अमीरों के खाते में चला गया। रिपोर्ट के मुताबिक भारत विश्व के सबसे अधिक आर्थिक असमानता वाले देशों में से एक है। यह स्थिति आय, खपत व संपत्ति के मामले में है। चौंकाने वाला तथ्य तो यह है कि पिछले साल भारत में जितनी संपत्ति बढ़ी, उसका तिहत्तर फीसद हिस्सा देश के एक फीसद अमीरों के पास पहुंचा। दुनिया के ख्याति प्राप्त अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी और लुकास चांसेल की एक रिपोर्ट में भी भारत में आय असमानता बढ़ने पर चिंता जताई गई है। अर्थशास्त्रियों का शोध निष्कर्ष है कि भारत में 1991 के सुधारों के बाद असमानता में बढ़ोतरी देखी गई। निश्चित रूप से आर्थिक असमानता के विभिन्न मापदंडों में पीछे होने के कारण भारत के करोड़ों लोग खुशहाली में भी पीछे हैं। यह चिंता की बात है कि खुशहाल देशों की सूची में भारत काफी पीछे है। संयुक्त राष्ट्र की ‘वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2018’ में एक सौ छप्पन देशों की सूची में भारत का स्थान एक सौ तैंतीसवां है, जबकि पिछले साल एक सौ बाइसवां था। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत खुशहाली के मामले में सभी पड़ोसी देशों से पीछे है। यह रिपोर्ट 2015 से 2017 के बीच जीवनशैली सहित छह अलग-अलग बिंदुओं के आधार पर तैयार की गई है। इनमें प्रतिव्यक्ति आय, सामाजिक सहयोग, स्वास्थ, जीवन उम्मीद, सामाजिक स्वतंत्रता, उदारता और भ्रष्टाचार का अभाव जैसे बिंदुओं के आधार पर विभिन्न देशों के लोगों की खुशहाली का मूल्यांकन किया गया है। इसमें एक ओर भारत की विकास की रफ्तार वर्ष 2018 में सात फीसद से ज्यादा रहने और दुनिया में उसके सबसे तेज विकास दर वाला देश रहने की बात है, तो दूसरी ओर खुशहाली के पैमाने पर भारत बहुत पीछे है। ब्रिटेन के लेगाटम इंस्टीट्यूट ने एक सौ बयालीस देशों में खुशहाली की स्थिति से संबंधित जो सूचकांक तैयार किया है, उसमें भारत एक सौ छहवें क्रम पर है। इस सूचकांक के तहत शिक्षा, स्वास्थ्य, महंगाई, अर्थव्यवस्था और सामाजिक सुरक्षा को खुशहाली का पैमाना बनाया गया। देश की दो तिहाई आबादी समावेशी विकास की छतरी के बाहर है। आम आदमी के धन का एक बड़ा भाग जरूरी सार्वजनिक सेवाओं, स्वास्थ्य सुविधा और शिक्षा में खर्च हो रहा है। इस कारण बेहतर जीवनस्तर की अन्य जरूरतों की पूर्ति में वे बहुत पीछे हैं। भारत में बेहद गरीबी में जीवन गुजारने वालों की बड़ी तादाद है। कुपोषण के मामले में भारत दुनिया के सबसे निचले पायदान पर खड़े देशों में है।

आर्थिक विकास ने करोड़ों भारतीयों में बेहतर जिंदगी की महत्त्वाकांक्षा जगा दी है। ऐसे में जब देश के करोड़ों लोगों को उपयुक्त समावेशी विकास, उपयुक्त रोजगार और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य व शिक्षा सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं, तो उनकी निराशा बढ़ती जा रही है। देश में भ्रष्टाचार रोकने के कई कदमों के बाद भी स्थिति नियंत्रण में नहीं आई है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने वर्ष 2017 के लिए दुनियाभर के देशों का जो करप्शन इंडेक्स जारी किया है, उसमें भारत इक्यासीवें स्थान पर है। ऐसे में इस समय स्पष्ट रूप से यह अनुभव किया जा रहा है कि देश की अर्थव्यवस्था के विकास की डगर पर बढ़ने के साथ-साथ विकास के लाभ आम आदमी तक पहुंचाने की राह आसान बनानी होगी। साथ ही रोजगार बढ़ाने, बचत योजनाओं पर ब्याज दर घटने से चिंताग्रस्त होते जा रहे करोड़ों छोटे निवेशकों और जरूरतमंद सामान्य लोगों के लिए गुणवत्तापूर्ण सार्वजनिक शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा और नागरिक सुविधाओं में सुधार सहित उपयुक्त रोजगार योजनाओं की डगर पर सरकार को तेजी से आगे बढ़ना होगा। साथ ही देश को भविष्य की ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था में आगे बढ़ने के लिए युवाओं के कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम को धरातल पर लागू करना होगा।

निस्संदेह अपने सस्ते और प्रशिक्षित श्रम बल के कारण चीन लगातार कई वर्षों से आर्थिक विकास के मोर्चे पर दमदार प्रदर्शन कर रहा है, लेकिन अब सस्ते श्रम बल की कमी चीन के विकास की चुनौती बनती जा रही है और सस्ते श्रम की उपलब्धि भारत के लिए नए अवसर पैदा कर रही है। लेकिन सस्ते भारतीय श्रम को देश और दुनिया की रोजगार जरूरतों के मुताबिक कौशल प्रशिक्षण से सुसज्जित किया जाना जरूरी है। एक ओर हमें शैक्षणिक दृष्टि से पीछे रहने वाले युवाओं को कौशल विकास से प्रशिक्षित करना होगा और उन्हें रोजगारोन्मुखी पाठ्यक्रमों से शिक्षित करना होगा। वहीं दूसरी ओर गांवों में काफी संख्या में जो गरीब, अशिक्षित और अर्द्धशिक्षित लोग हैं, उन्हें अर्थपूर्ण रोजगार देने के लिए प्रशिक्षित करके निम्न तकनीक विनिर्माण में लगाना होगा। इन विभिन्न कदमों से देश में तेजी से बढ़ती हुई आर्थिक असमानता में कमी लाई जा सकेगी। हम आशा करें कि सरकार देश के करोड़ों लोगों की वास्तविक खुशहाली के लिए आर्थिक असमानता में कमी लाने के रणनीतिक कदमों के साथ आगे बढ़ेगी।

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