Tuesday, 29 May 2018

1848-56- गवर्नर जनरल लाॅर्ड डलहौजी

भारत के गवर्नर जनरल (Indian Governor General's)
Modern History |

1848-56- गवर्नर जनरल लाॅर्ड डलहौजी:- भारत
का महानतम गवर्नर जनरल माना जाता है।
भारत में अंग्रेजी साम्राज्य के विस्तार एवं
उसको शक्तिशाली बनाने में उनका अपरिमित
योगदान था। भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का
जितना अधिक विस्तार डलहौजी के
शासनकाल में हुआ, उसका आधा भी किसी अन्य
गवर्नर जनरल के कार्याकाल में नहीं हुआ। उसके
द्वारा भारत में ब्रिटिश साम्राज्य में शामिल
किए गए प्रदेशों का विस्तार या आकार इंग्लैण्ड
और वेल्स से दोगुना था।
डलहौजी ने व्यपगत के सिद्धांत (Doctrine of
Lapes)या विलय के सिद्धान्त, जिसे उसने
शान्तिपूर्ण विलय की नीति नाम दिया, का
मुक्त रूप से प्रयोग करके भारतीय राज्यों का
ब्रिटिश साम्राज्य में विलय किया। भारतीय
राज्यों या देशी रियाशतों को यह मानता
था कि उनके राज्यों का ब्रिटिश साम्राज्य
में विलय व्यपगत या विलय के सिद्धांत के
द्वारा नहीं अपितु इण्डिया कम्पनी के नैतिक
मानदण्डों (Lapes of Morals) के कारण किया
गया। जिन भारतीय राज्यों का इस सिद्धात
के द्वारा ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर
लिया गया, उसमे से कुछ थे-सातारा 148, जैतपुर
और सम्भलपुर 1849, बघ 1850, उदयपुर 1852, झांसी
1853 और नागपुर 1854।
डलहौजी ने द्वितीय आंग्ल-सिख युद्ध 1845-49
लड़ा और सम्पूर्ण पंजाब का ब्रिटिश साम्राज्य
में विलय कर लिया। उसने सिक्किम और बर्मा के
विरूद्ध भी युद्ध लड़े। इस प्रकार संपूर्ण पंजाब
निचले बर्मा (म्यांमार) एवं सिक्किम के कुछ
भागों को शस्त्रों के द्वारा विलय किया
गया। उसने कर्नाटक के नवाब एवं तंजौर के राजा
राजपद (Royal titles) को समाप्त कर दिया और
भूतपूर्व पेशवा बाजीराव द्वितीय की मृत्यु के
उपरान्त उसके परिवार एवं उत्तराधिकारी की
पेंशन को बन्द कर दिया।
प्रशासनिक सुधार: – उसने भारत में ब्रिटिश
साम्राज्य के आंतरिक प्रशासन मे भी अनेक और
विविध प्रकार के सुधार किए। अंग्ल प्रान्त का
लेफटीनेट गवर्नर के प्रशासनधीन गठन किया गया
और कलकत्ता को इस प्रान्त का मुख्यालय
बनाया गया। इसके साथ ही कलकत्ता भारत में
ब्रिटिश साम्राज्य की राजधानी भी बना
रहा, चंूकि अब तक ब्रिटिश साम्राज्य में
विशाल भारतीय भू-भाग का विलय किया
जा चुका था। अतः यह निर्णय लिया गया क
प्रत्येक वर्ष कुछ महीनों के लिए शाही ब्रिटिश
राजधानी को शिमला में स्थानान्तरित
किया जाए और ब्रिटिश सैनिक मुख्यालय को
भारत के अन्तर्वर्तीय प्रदेश में स्थानान्तरित
किया जाए। जिन भारतीय प्रदेशों का
ब्रिटिश साम्राज्य में हाल ही में विलय
किया गया था, उनकी देखरेख के लिए विशेष
आयुक्तों को नियुक्त किया गया, जो सीधे
गवर्ननर जनरल के प्रति उत्तरदायी थे।
सैनिक सुधार:- बंगाल के तोपखाने के मुख्यालय
को कलकत्ता से मेरठ स्थानान्तरित कर दिया
गया और धीरे-धीरे सेना के स्थायी मुख्यालय
को शिमला में स्थानान्तरित कर दिया
डलहौजी ने सेना में भारतीयों की संख्या को
मारने का प्रस्ताव किया ताकि अंगेजी और
भारतीय सैन्य छुकड़ियों के बीच संतुलन बनाए रख
जा सके।
शैक्षिक सुधार: – शिक्षा के क्षेत्र में दूरगामी
परिणामों वाले अनेक सुधार लागू किए गए।
प्रसिद्ध बुड्स डिस्पैच (1854) चाल्र्स बुड नियंत्रक
बोर्ड आॅफ कंट्रोल का अध्यक्ष था के सुझावों के
अंतर्गत प्राथमिक स्तर से विश्विद्यालय स्तर
तक की शिक्षा व्यवस्था की एक सुविचारित
योजना को प्रस्तावित किया गया। इस वुड्स
डिस्पैच में सुझाव दिया गया कि प्रत्येक जिले
में एंग्लों वर्नक्यूलॅर विद्यालय एवं महत्वपूर्ण नगरों
में कालेजों की स्थापना की जाए। तीनों
प्रेसीडेस्ी नगरों (कलकत्ता, बम्बई, और मद्रास) में
लंदन विश्वविद्यालय के नमूने पर
विश्वविद्यालय स्थापित करने की सिफारिश
की गई। बुड्स डिस्पैच को भारत में पश्चिमी
शिक्षा का मैग्ना कार्टा कहा जाता है। इन
शिक्षा संबंधी प्रस्तावों में यह भी प्रस्तावित
किया गया कि भारतीय भाषाओं को
शिक्षा का माध्यम बनाया गया जाए और
राजकीय अनुदान सहायता प्रदान करके
शिक्षा के क्षेत्र में व्यक्तिगत प्रयासों को
प्रोत्साहित किया जाए।
रेलवे, डाक और तार व्यवस्था का विस्तार:-
भारत में ब्रिटिश की सुरक्षा व्यवस्था को
सुदृढ़ करने, भारत में ब्रिटिश पूंजी निवेश को
प्रोत्साहित करने और औपनिवेशिक
अर्थव्यवस्था के विकास के लिए भारतीय
आर्थिक संसाधनों को अधिकाधिक दोहन करने
के लिए भारत में रेलवे परिवहन व्यवस्था के
विकास को आवश्क माना गया। परिणामस्वरूप
भारत मे रेलवे लाइनों के निर्माण को विशेष
महत्व प्रदान किया गया और इन रेलवे लाइनों के
निर्माण का कार्य ब्रिटिश निगमों को ठेके
पर दिया गया। बंबई से थाडे़ कोे जोड़ने वाली
प्रथम रेलवे लाइन को 1853 में चालू किया गया
और 1854 मे कलकत्ता को रानीगंज की कोयला
खानों से जोड़ने वाली दूसरी रेलवे लाइन को
चालू किया गया। कलकत्ता को पेशावर से
जोड़ने वाली विद्युत तार संचार लाइनों को
बिछाया गया। इसी प्रकार बम्बई, कलकत्ता,
मद्रास और देश के अन्य सहत्वपूर्ण स्थानों को भी
तार संचार प्रणाली से जोड़ा गया।
1854 में एक नयी पोस्ट आॅफिस एक्ट पारित
किया गया। इस नवीन डाक व्यवस्था के अंतर्गत
समस्त प्रेसिडंेसी नगरों की डाक व्यवस्था की
देखरेख के लिए डायरेक्टर जनरल को नियुक्त
किया गया। डाक टिकटों का समान मूल्य
निधारित किया गया और 1854 में प्रथम डाक
टिकट का प्रचालन किया गया। संचार क क्षेत्र
में इन प्रगतिशील कार्याें के द्वारा सामजिक,
आर्थिक वएवं वाणिज्यिक जीवन को एक नई
दिशा प्राप्त हुई। इस प्रकार डलहौजी को
भारत में रेल, तार एवं डाक व्यवस्था का
संस्थापक कहा जा सकता है।
सार्वजनिक निर्माण विभग:- डलहौजी से पूर्व
सार्वजनिक विभाग एक सैनिक अधीन था। उसने
एक सार्वजनिक निर्माण विभाग का गठन
किया और उनके सिंचाई परियोजनाओं को
प्रारम्भ किया, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण गंगा नहर
थी, जिसे 1854 में पूरा किया गया।
आर्थिक सुधार:- कराची, बम्बई और कलकत्ता के
बन्दरगाहों को विकसित किया गया और
जहाजरानी को सुगम बनाने के लिए अनेक
दीपस्तम्भों का निर्माण कराया। मुक्त
व्यापार नीति का और अधिक विकास किया
गया। और ब्रिटिश उत्पादों को कच्चे माल की
आपूर्ति के लिए भारतीय संसाधनों का खूब
दोहन किया एवं साथ ही ब्रिटिश कारखाने मे
उत्पादित मालका भारत में मुक्त रूप से आयात
किया गय।
1857 का विद्रोह:- डलहौजी के द्वारा व्यपगत
य विलय के सिद्धांत के माध्यम से ब्रिटिश
औपनिवेशिक साम्राज्यवादी नीतियों के
अनुसरण तथा खास तौर पर अपने विस्तारवादी
हथकण्डों के प्रयोग के विरूद्ध तूफान उठ खड़ा
हुआ, जिसने डलहौजी के उत्तराधिकारी कैंनिंग
के कार्यकाल में प्रचण्ड बवण्डर का रूप धारण कर
लिया।
1856-62 लार्ड कैंनिग:- ईस्ट इण्डिया के अंतिम
गवर्नर जनरल एवं ब्रिटिश भारत को शाही ताज
के अन्तर्गत लाए जाने के बाद प्रथम वायसराय
गवर्नर जनरल। कैंनिग गवर्नर जनरल के रूप में सत्ता
ग्रहण करने के बाद ही भारतीय स्थिति के
सम्बन्ध में आशंकित हो गए उन्होंने इस स्थिति
का मूल्यांकन करते हुए कहा कि ’’भारतीय’’
आकाश पर एक बादल का उदय हो सकता है। जो
बढ़ते-बढ़ते इतना बड़ा हो सकता कि हमें सर्वनाश
के कगार पर ले आएगा। उनकी आशंका निर्मूल नहीं
थी। इस वृश्टिस्फोट ने 1857 के विद्रोह के रूप में
बवण्डर का रूप धारण कर लिया। कैंनिग के ही
कार्याकाल में 1857 के विद्रोह विस्फोट हुआ
और उसका दमन किया गया।
1857 के विद्रोह के दमन के उपरान्त प्रद्धि
साम्राज्ञी की घोषणा की गई जिसके
द्वारा भारत से ईस्ट इंडिया कम्पी के शासन
को समाप्त कर दिया गया और भारत को
ब्रिटिश शाही ताज से सीधे प्रशासन के अंतर्गत
ले आया गया। इस साम्राज्ञी की घोशणा
को 1858 के एक्ट के द्वारा वैधानिक स्वरूप
प्रदान किया गया। इस एक्ट में प्रस्तावित
किया गया कि भारत को (ब्रिटिश) शाही
ताज के नाम पर उसके एक प्रमुख सचिव मंत्री
(भारत) (विषयक मंत्री या सचिव) एवं उसकी 15
सदस्यों वाली, परिषद के द्वारा शासित
किया जाएगा। इसप्रकार ईस्ट इण्डिया
कम्पनी के शासन का अंत हो गया और भारत में
ब्रिटिश गवर्नर जनरल को वायासराय प्रदान
किया गया। परन्तु 1858 के एक्ट के द्वारा कोई
मौलिक परिवर्तन नहीं हुआ। अपितु यह
औपचारिकता मात्र थी। क्योंकि शाही ताज
का पहले से ही कम्पनी के मामलों पर काफी
सशक्त नियंत्रण था।
भारतीय परिषद अधिनियम, 1858-1858 के एक्ट
ने भारतीय प्रशासनिक ढाचे में कोई परिवर्तन
नहीं किया गया था। 1857-58 के विद्रोह का
मुख्य कारण शासक और शासितों के मध्य संपर्क
का आभाव था। इसी कमी को देर करने के लिए
1661 के अधिनियम में प्रेसिडेंसी प्रान्तों में
विधायिका (काउन्सिल) की स्थापना एवं
वाइसराय की का काउन्सिल या परिषद के
विस्तार का प्रावधान रखा गया। भारत के
संवैधानिक इतिहास में यह अधिनियम एक
युगप्रवर्तक था क्योंकि इसने भारत की शासन
व्यवस्था के साथ भारतीयों को सम्बद्ध करने
का वाइसराय को अधिकार प्रदान किया।
इसके अधिनियम के द्वारा स्थापित
विधायिका परिषदों (केन्द्रीय एवं प्रनतीय
दोनों) को उनके स्वरूप और कार्यप्रणाली के
आधार पर वास्तविक व्यवस्थापिका नहीं कहा
जा सकता है। इस अधिनियम के द्वारा
स्थापित परिषदों को दरबार मात्र कहा जा
सकता है, जिन्हें भारतीय शासकगण अपनी प्रजा
की राय जाननेके लिए आयोजित करते थे।
कैंनिग के ही कार्यकाल में कुख्यात व्यपगत
या विलय के सिद्धांत को अधिकारिक
रूप से वापस ले लिया गया (1859)।
भारतीय दण्ड सहिता (Indian penal Code,
1858), दण्ड व्यवहार संहिता (Code of
Criminal Procedure, 1859) और भारतीय उच्च
न्यायालय अधिनियम (Indian high Court
Act, 1861), को पारित किया गया।
आयकर को प्रयोगात्मक आधार पर
क्रियान्वित किया गया। कैनिंग के
कार्यालय में बंगाल मे नील खेतिहरों के उपद्रव
एवं श्वेत विद्रोह हुए तथा उत्तर- पश्चिमी में
भयंकर अकाल पड़ा।
1862-63 वायसराय एवं जनरल लाॅर्ड एल्गिन-
उसका शासनकाल बहाबी आन्दोलन के लिए
स्मरणीय है। वहाबी मुसलमानों का एक
धर्मान्धतापूर्ण सम्प्रदाय था, सम्प्रदाय था,
जिसने उत्तर-पिश्चमी सीमान्त प्रदेश में उग्र
उपद्रव किए। ब्रिटिश शासन ने नलम्बी और
कठिन सैनिक कार्यवाही के द्वारा
वहाबियों को पराजित किया और उनके गढ़ों
को नष्ट कर दिया। सर्वाेच्च एवं सदर न्यायलयों
को उच्च न्यायालय के साथ शामिल कर दिया
गया।
1864-69 वायसराय एवं गवर्नर जनरल सर जान
लारेंस:- इस काल में भारत का बहुत बड़ा भाग
विशेषतः 1866 में उड़ीसा और राजपूताना एवं
1868-69में बुन्देलखंड भयंकर आकल की चपेट में रहे।
प्रायिक अकालों से निपटने के लिए आवश्यक
उपाय प्रस्तावित करने के लिए एक अकाल
कमीशन नियुक्त किया गया। इस काल में अनेक
रेलवे लाइनों, नहरों एवं सार्वजनिक निर्माण
कार्यों को प्रारभ किया गया। यूरोप के साथ
तार संचार को चालू किया गया। पंजाब भूधृति
(Tenancy) अधिनियम पारित किया गया,
जिसके द्वारा पंजाब और अवध में बहुत बड़ी
संख्या में बटाईदारों को मालिकाना
अधिकार प्रदान किए गए।
1869-72 वायसराय एवं गवर्नर जनरल लाॅर्ड
मेयो:- उसने भारत में वित्त व्यवस्था का
विकेन्द्रीकरण किया और प्रान्तोय बन्दोबस्त
किया वह भारत के प्रथम गवर्नर जनरल थे,
जिनकी उनके कार्यकाल में हत्या कर दी गई।
अण्डमान मेंएक कैदी ने उनकी हत्या कर डाली।
उनके प्रयासों से भारतीय साशक वर्ग या
राजा महाराजाओं के राजकुमारों के अध्ययन
एवं प्रशिक्षण के लिए प्रसिद्ध मेओं कालेज की
अजमेर में व्यवस्था की गई।
1872-76 वाईसराय एवं गवर्नर जनरल लाॅर्ड
नाथबुक उसके कार्यकाल में भारत में प्र्रिंस आॅफ
वेल्स (जो बाद में एडवर्ड सप्तम के नाम से प्रसिद्ध
हुए) का भारत में आगमन हुआ और ब्रिटिश
रेजीडेण्ट को जहर देने के आरोप में बड़ौदा
(वडोदरा) के गायकवाड़ शासक पर मुकदमा
चलाया गया परन्तु लार्ड नार्थबुक ने
अफगानिस्तान के साथ राजनीतिक संबंधों के
निर्धारण से संबंधित सर्वाधिक महत्वपूर्ण
समस्या का इस कारण सामना किया क्योंकि
रूस केन्द्रीय एशिया की ओर तेजी से बढ़ रहा
था। इसी अवधि में पंजाब मे सिखों के कूका
आन्दोलन ने विद्रोहात्मक रूप ग्रहण कर दिया।
बिहार भयंकर अकाल की चपेट में आ गया।

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