बर्लिन की दीवार👇
(बर्लिन की दीवार क्यों बनाई गई, कैसे गिरी और उसके वैश्विक परिणाम)
चर्चा में क्यों?
लगभग 30 वर्ष पूर्व आज ही के दिन (9 नवंबर) 1989 में बर्लिन की दीवार को ध्वस्त किया गया था। इस घटनाक्रम ने न केवल विभाजित जर्मनी के लोगों को एक करने का कार्य किया, बल्कि यह उस 'आयरन कर्टन’ के विरोध का प्रतीक भी था जिसने शीत युद्ध के दौरान पश्चिमी यूरोप से पूर्वी ब्लॉक को अलग किया।
बर्लिन की दीवार का निर्माण द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद वर्ष 1961 में किया गया था और इसने बर्लिन को भौतिक एवं वैचारिक रूप से दो हिस्सों में विभाजित कर दिया था।
क्यों बनाई गई थी बर्लिन की दीवार?
द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी की हार के बाद मित्र राष्ट्रों- अमेरिका, यूके, फ्राँस और सोवियत संघ ने जर्मनी की क्षेत्रीय सीमाओं पर नियंत्रण कर लिया और इसे प्रत्येक मित्र शक्ति द्वारा प्रबंधित चार क्षेत्रों में विभाजित कर दिया गया।
प्रत्येक ने देश के एक अलग हिस्से की ज़िम्मेदारी ली। जर्मनी के पश्चिमी क्षेत्रों पर ब्रिटेन, अमेरिका और फ्राँस ने कब्ज़ा कर लिया, जबकि सोवियत संघ ने पूर्वी जर्मनी पर नियंत्रण स्थापित किया।
ध्यातव्य है कि बर्लिन सोवियत संघ के अधिकार क्षेत्र में आता था, परंतु जर्मनी की राजधानी होने के कारण यह तय किया गया कि इसे भी चार क्षेत्रों में भी विभाजित किया जाएगा।
बर्लिन विभाजन के पश्चात् अमेरिकी, ब्रिटिश और फ्राँसीसी क्षेत्र पश्चिम बर्लिन बन गए और सोवियत क्षेत्र पूर्वी बर्लिन बन गया।
मित्र देशों द्वारा जर्मनी पर नियंत्रण प्राप्त करने के दो वर्षों बाद कई सामाजिक-राजनीतिक पहलुओं पर मित्र राष्ट्रों और सोवियत संघ के बीच राजनीतिक मतभेद उत्पन्न होने लगे।
इनमें सबसे अधिक विवादास्पद अमेरिका द्वारा मार्शल प्लान का विस्तार था। गौरतलब है कि मार्शल प्लान वर्ष 1948 में अमेरिका द्वारा द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पश्चिमी यूरोप के पुनर्निर्माण के लिये आर्थिक सहायता प्रदान करने से संबंधित था।
अमेरिकी प्रस्ताव पूर्वी ब्लाक के भीतर साम्यवादी जर्मनी के स्टालिन दृष्टि के साथ मेल नहीं खाता था और इसीलिये सोवियत संघ ने इस योजना को मंज़ूरी नहीं दी।
वर्ष 1948 में बर्लिन की नाकाबंदी ने बर्लिन की दीवार के निर्माण की ज़मीन तैयार कर दी जिसके बाद वर्ष 1949 में सोवियत संघ ने जर्मन लोकतांत्रिक गणराज्य के अस्तित्व की घोषणा की, जिसे पूर्वी जर्मनी भी कहा जाता है।
वर्ष 1961 में पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी के मध्य की सीमा को पूरी तरह बंद कर दिया गया था और दोनों क्षेत्रों के बीच दीवार खड़ी कर दी गई। इस राजनीतिक घटना की कीमत वहाँ के स्थानीय लोगों को अपने घर, परिवार और नौकरी के रूप में चुकानी पड़ी तथा इसने उनके जीवन को पूरी तरह बदल दिया।
बर्लिन की दीवार क्यों गिरी?
पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी में नागरिकों के बीच फैली अशांति के कारण पूर्वी जर्मनी के प्रशासन पर दबाव पड़ा कि वे दोनों क्षेत्रों के मध्य यात्रा प्रतिबंधों को शिथिल करें।
पूर्वी जर्मनी के एक राजनीतिक नेता गुंटर शहाबॉस्की को यात्रा प्रतिबंधों में ढील देने की घोषणा करने का कार्य सौंपा गया था, परंतु इस संबंध में कोई जानकरी नहीं दी गई कि नए यात्रा नियमों को कब लागू किया जाएगा।
पूर्वी जर्मनी के लोगों को जब इस घोषणा के बारे में जानकारी हुई तो वे बड़ी तदाद में बर्लिन की दीवार के पास पहुँच गए और पश्चिमी जर्मनी में प्रवेश की मांग करने लगे।
बड़ी संख्या में होने के कारण लोग दीवार को कूदकर उस पार जाने लगे तथा माहौल पूरी तरह बदल गया। उस दिन यानी 9 नवंबर, 1989 को बर्लिन की दीवार को गिरा दिया गया।
घटनाक्रम के वैश्विक परिणाम
ज्ञातव्य है कि दशकों के अलगाव और असमान सामाजिक-आर्थिक विकास के कारण पूर्व और पश्चिम बर्लिन के बीच कई अंतर पैदा हो गए थे।
बर्लिन की दीवार गिरने के बाद 3 अक्तूबर, 1990 को पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी ने एक साथ मिलकर एकीकृत जर्मनी का निर्माण किया।
राजनीतिक परिवर्तनों के कारण पूर्वी यूरोप लगभग बदल चुका था और इन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप वर्ष 1992 की मास्ट्रिच संधि हुई जिसके कारण वर्ष 1993 में यूरोपीय संघ का गठन किया गया।
द्वितीय विश्वयुद्ध और कोरियाई युद्ध के अंत के बाद पूर्वी एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया धीरे-धीरे युद्धों के कहर से उबरने लगे थे।
सोवियत संघ के पतन के बाद चीन ने न केवल एशिया में बल्कि विश्व राजनीतिक व्यवस्था में भी अभूतपूर्व वृद्धि देखी।
इसके अलावा सोवियत संघ के पतन ने क्यूबा और उसकी अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित किया जो कि मास्को से प्राप्त वित्तीय सब्सिडी पर निर्भर था।
उल्लेखनीय है कि संयोगवश बर्लिन की दीवार का गिरना भी अफगानिस्तान से रूस की वापसी के साथ हुआ।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
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