प्रकट रूप में सर्वशक्तिमान भगवान् सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश का प्राचीनतम महापर्व मकर संक्रांति जन-मन में नयी ऊर्जा-आशा और विश्वास का महासेतु बन जाये .... यह सूर्य उत्तरायण प्रवेश देश को सामर्थ्यशाली-सशक्त बनाये और हम मानवता के लिए समर्पित हों ... मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं..
#मकर_संक्रांति (पर्व)
🎯 मकर संक्रांति हिंदुओं का एक प्रसिद्द त्यौहार है
🎯 मकर संक्रांति आमतौर पर हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता है
🎯 मकर संक्रांति भारत के कई हिस्सों में अलग अलग तरीके से मनाई जाती है
🎯 मकर संक्रांति में मकर शब्द मकर राशि को अंकित करता है और संक्रांति शब्द संक्रमण अर्थात प्रवेश से है
🎯 मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है एक राशि को छोड़कर दूसरे राशि में प्रवेश करना ही संक्रांति कराता है
🎯चुकी सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है इसलिए इसे मकर संक्रांति कहते हैं
🎯 हिंदू महीने के अनुसार पौष शुक्ल पक्ष मे मकर सक्रांति मनाया जाता है
🎯 चंद्र के आधार पर माह के दो भाग है कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष उसी प्रकार सूर्य के आधार पर वर्ष के दो भाग हैं उत्तरायन और दक्षिणायन इस दिन सूर्य उत्तरायन हो जाता है
🎯उत्तरायन के दौरान पृथ्वी का उत्तरी ध्रुव सूर्य की ओर मुड़ जाता है
🎯 इसी दिन से वसंत ऋतु की भी शुरुआत होती है
🎯यह पर्व संपूर्ण अखंड भारत में फसलों के आगमन की खुशी के रुप में मनाया जाता है
🎯दक्षिण भारत में इस त्यौहार को पोंगल के रुप में मनाया जाता है
🎯 उत्तर भारत में इसे लोहिड़ी खिचड़ी पर्व पतंग उत्सव आदि के रुप में मनाया जाता है
🎯 मध्य भारत में इसे संक्रांति उत्तरायन माघी खिचड़ी आदि कहा जाता है
🎯 इस दिन गुड़ और तिल से बने पकवान या मिष्ठान बनाए खाए तथा बांटे जाते हैं
🎯उत्तर भारत में इस दिन खिचड़ी का भोग लगाया जाता है
🎯 माना जाता है कि इस दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि देव से नाराजगी त्याग कर उनके घर गए थे इसलिए इस दिन पवित्र नदी में स्नान दान पूजा आदि करने से पुण्य हजार गुना बढ़ जाता है
🎯 इस दिन गंगा सागर में मेला लगता है
🎯 यह दिन सुख और समृद्धि का माना जाता है
🎯इस दिन पतंग उड़ाने के बहाने लोग कुछ घंटे सूरज की प्रकाश में बिताते हैं
🎯 श्रीकृष्ण ने भी सूर्य के उत्तरायन के महत्व के बारे में गीता में बताया है
🎯इसी दिन को महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए चयन किया था
🎯 इसी दिन गंगा जी भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में मिली थी
🎯महाराज भागीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इसी दिन तर्पण किया था।
#मकर_संक्रांति_एक_वैज्ञानिक_दृष्टिकोण!
मित्रो भारत पर्वों एवं त्योहारों का देश है यहाँ कोई भी महीना ऐसा नहीं हैं जिसमें कोई न कोई त्यौहार न पड़ता हो!
इसीलिए अपने देश में यह उक्ति प्रसिद्ध है कि
'सदा दीवाली साल भर सातों बार त्यौहार'!
इन्हीं त्यौहारों में मकर संक्रांति भी है जिसकी अपनी एक अलग ही विशेषता है एवं वैज्ञानिक आधार है!
हम लोगों में से बहुत कम लोग जानते है कि मकर संक्रांति का पर्व क्यों मनाया जाता है और वह भी प्रतिवर्ष 14 जनवरी को ही क्यों?
हम जानते हैं कि ग्रहों एवं नक्षत्रों का प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है इन ग्रहों एवं नक्षत्रों की स्थिति आकाशमंडल में सदैव एक समान नहीं रहती है हमारी पृथ्वी भी सदैव अपना स्थान बदलती रहती है!
यहाँ स्थान परिवर्तन से तात्पर्य पृथ्वी का अपने अक्ष एवं कक्ष-पथ पर भ्रमण से है पृथ्वी की गोलाकार आकृति एवं अक्ष पर भ्रमण के कारण दिन-रात होते है!
पृथ्वी का जो भाग सूर्य के सम्मुख पड़ता है वहाँ दिन होता है एवं जो भाग सूर्य के सम्मुख नहीं पड़ता है वहाँ रात होती है!
पृथ्वी की यह गति दैनिक गति कहलाती है!
किंतु पृथ्वी की वार्षिक गति भी होती है और यह एक वर्ष में सूर्य की एक बार परिक्रमा करती है!
पृथ्वी की इस वार्षिक गति के कारण इसके विभिन्न भागों में विभिन्न समयों पर विभिन्न ऋतुएँ होती है जिसे ऋतु परिवर्तन कहते हैं!
पृथ्वी की इस वार्षिक गति के सहारे ही गणना करके वर्ष और मास आदि की गणना की जाती है इस काल गणना में एक गणना 'अयन' के संबंध में भी की जाती है!
इस क्रम में सूर्य की स्थिति भी उत्तरायण एवं दक्षिणायन होती रहती है!
जब सूर्य की गति दक्षिण से उत्तर होती है तो उसे उत्तरायण एवं जब उत्तर से दक्षिण होती है तो उसे दक्षिणायण कहा जाता है!
संक्रमणकाल और मकर संक्रांति!
इस प्रकार पूरा वर्ष उत्तरायण एवं दक्षिणायन दो भागों में बराबर-बराबर बँटा होता है जिस राशि में सूर्य की कक्षा का परिवर्तन होता है उसे संक्रमण काल कहा जाता है!
चूँकि 14 जनवरी को ही सूर्य प्रतिवर्ष अपनी कक्षा परिवर्तित कर दक्षिणायन से उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करता है!
अत: मकर संक्रांति प्रतिवर्ष 14 जनवरी को ही मनायी जाती है चूँकि हमारी पृथ्वी का अधिकांश भाग भूमध्य रेखा के उत्तर में यानी उत्तरी गोलार्द्ध में ही आता है अत: मकर संक्रांति को ही विशेष महत्व दिया गया!
भारतीय ज्योतिष पद्धति में मकर राशि का प्रतीक घड़ियाल को माना गया है जिसका सिर एक हिरण जैसा होता है किंतु पाश्चात्य ज्योतिषी मकर राशि का प्रतीक बकरे को मानते हैं!
हिंदू धर्म में मकर (घड़ियाल) को एक पवित्र पशु माना जाता है!
चूँकि हिंदुओं में अधिकांश देवताओं का पदार्पण उत्तरी गोलार्द्ध में ही हुआ है इसलिए सूर्य की उत्तरायण स्थिति को शुभ मानते हैं!
मकर संक्रांति के दिन सूर्य की कक्षा में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर हुआ परिवर्तन माना जाता है!
मकर संक्रांति से दिन में वृद्धि होती है और रात का समय कम हो जाता है!
इस प्रकार प्रकाश में वृद्धि होती है और अंधकार में कमी होती है चूँकि सूर्य ऊर्जा का स्रोत है अत: इस दिन से दिन में वृद्धि हो जाती है!
यही कारण है कि मकर संक्रांति को पर्व के रूप में मनाने की व्यवस्था हमारे भारतीय मनीषियों द्वारा की गई है!
गीता के आठवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा भी सूर्य के उत्तरायण का महत्व स्पष्ट किया गया है!
श्रीकृष्ण कहते हैं कि 'हे भरतश्रेष्ठ! ऐसे लोग जिन्हें ब्रह्म का बोध हो गया हो अग्निमय ज्योति देवता के प्रभाव से जब छह माह सूर्य उत्तरायण होता है दिन के प्रकाश में अपना शरीर त्यागते हैं पुन: जन्म नहीं लेना पड़ता है!
जो योगी रात के अंधेरे में, कृष्ण पक्ष में, धूम्र देवता के प्रभाव से दक्षिणायन में अपने शरीर का त्याग करते हैं, वे चंद्रलोक में जाकर पुन: जन्म लेते हैं!
वेदशास्त्रों के अनुसार, प्रकाश में अपना शरीर छोड़नेवाला व्यक्ति पुन: जन्म नहीं लेता जबकि अंधकार में मृत्यु प्राप्त होने वाला व्यक्ति पुन: जन्म लेता है!
यहाँ प्रकाश एवं अंधकार से तात्पर्य क्रमश: सूर्य की उत्तरायण एवं दक्षिणायन स्थिति से ही है!
संभवत: सूर्य के उत्तरायण के इस महत्व के कारण ही भीष्म ने अपना प्राण तब तक नहीं छोड़ा जब तक मकर संक्रांति अर्थात सूर्य की उत्तरायण स्थिति नहीं आ गई!
सूर्य के उत्तरायण का महत्व छांदोग्य उपनिषद में भी किया गया है!
इस प्रकार स्पष्ट है कि सूर्य की उत्तरायण स्थिति का बहुत ही अधिक महत्व है सूर्य के उत्तरायण होने पर दिन बड़ा होने से मनुष्य की कार्य क्षमता में भी वृद्धि होती है!
जिससे मानव प्रगति की ओर अग्रसर होता हैप्रकाश में वृद्धि के कारण मनुष्य की शक्ति में भी वृद्धि होती है और सूर्य की यह उत्तरायण स्थिति चूँकि मकर संक्रांति से ही प्रारंभ होती है!
यही कारण है कि मकर संक्रांति को पर्व के रूप में मनाने का प्रावधान हमारे भारतीय मनीषियों द्वारा किया गया और इसे प्रगति तथा ओजस्विता का पर्व माना गया जो कि सूर्योत्सव का द्योतक है!
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