मजबूत होती भारत की विदेश नीति
वैसे तो सन् 2014 में प्रधानमंत्री पद की शपथ में सार्क देशों के प्रमुखों को आमंत्रित करके प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विदेश नीति में होने वाले अपने बदलावों के संकेत दे दिये थे, लेकिन 2019 के अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान उन्होंने विदेश सेवा से जुड़े राजनयिक जयशंकर प्रसाद को अपना विदेश मंत्री बनाकर विश्व को यह संदेश दिया कि विदेश नीति उनकी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है। इसके बाद के अपने छोटे-से ही अब तक के कार्यकाल के दौरान वैश्विक मामलों में भारत ने जिस तरीके से अपनी भूमिका निभाई है, उसे देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि अब भारत की विदेश नीति पहले की अपेक्षा अधिक मजबूत, स्वायत्त तथा राष्ट्रीय हितों को साधने वाली बनती दिखाई दे रही है।
इसका पहला प्रमाण हमें वर्तमान की चार महाशक्त्यिों के बीचे के परस्पर संघर्ष को साधने की भारत की कूटनीतिक सफलता में दिखाई दे रहा है। ये चार महाशक्तियाँ हैं-अमेरीका, रूस, चीन तथा चैथा भारत स्वयं। अमेरीका, रूस और चीन का विरोधी है। रूस और चीन में मित्रता है। भारत और चीन में प्रतिद्वंदितापूर्ण मित्रता है। रूस का विरोधी होने के बावजूद अमेरीका से भारत के संबंध लगातार बेहतर होते जा रहे हैं। खासकर अमेरीका और ईरान के बीच उत्पन्न वर्तमान गंभीर संकट को भारत ने जिस तरीके से साधा है, वह उसके व्यावहारिक विदेश नीति का एक बहुत अच्छा उदाहरण कहा जा सकता है। चीन द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का विरोध किये जाने के बावजूद उससे अपने संबंधों को सामान्य बनाये रखना, कोई सामान्य बात नहीं है, जिसे भारत फिलहाल कर रहा है।
इन सारी स्थितियों के संदर्भ में यह कहना गलत नहीं होगा कि इसके माध्यम से भारत ने पूरे विश्व को यह बता दिया है कि भारत भविष्य में परस्पर विरोधी देशों के साथ संबंधों में संतुलन बनाकर चलेगा। साथ ही उसने बहुत अच्छी तरह यह भी स्पष्ट कर दिया है कि विदेश नीति के मामले में भारत विश्व की महाशक्ति के हाथों की कठपुतली नहीं बनेगा। वह अपनी विदेश नीति का संचालन पूरी तरह अपने राष्ट्रीय हितों के लिए करेगा न कि किसी अन्य देश के हितों की पूर्ति के लिए।
इस बात का सबसे अच्छा उदाहरण उस समय देखने को मिला, जब रायसीना वाद के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने ईरान के विदेश मंत्री के प्रति इस बात के लिए अपना आभार व्यक्त किया कि ईरान चाबहार बन्दरगाह के संचालन को बाधित नहीं होने देगा और वह इसे एक विशेष आर्थिक क्षेत्र घोषित करेगा। वैसे भी इसी दौरान हमारे विदेश मंत्री जयशंकर प्रसाद ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि हमारे निर्णयों के बारे में विश्व के लोगों को अपनी राय रखने का अधिकार है, लेकिन हमारा भी यह अधिकार है कि हम उनकी राय के बारे में अपनी राय रखें।
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को समाप्त करने के भारत सरकार के निर्णय की विश्वव्यापी प्रतिक्रिया हुई। लेकिन अत्यंत महत्वपूर्ण बात यह है कि पश्चिमी देशों ने आधिकारिक स्तर पर सरकार के इस फैसले का विरोध नहीं किया। जिन्होंने ऐसा करने की कोशिश की, भारत ने अपने स्तर पर उनके प्रति तीखी प्रतिक्रिया दिखाई। उदाहरण के तौर पर तुर्की के राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 370 का विरोध किये जाने पर प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी तुर्की यात्रा तत्काल रद्द कर दी। जब इसी प्रकार की प्रतिक्रिया मलेशिया ने दिखाई, तो भारत ने इसका जवाब मलेशिया से आयात होने वाले खाद्यान तेल पर प्रतिबंध लगाकर दिखाया। हाल ही में अमेजान के मालिक बेजोस जब भारत आये थे, तो प्रधानमंत्री ने उन्हें मिलने का समय इसलिए नहीं दिया, क्योंकि उनका प्रतिष्ठित अखबार ‘‘वाशिंगटन पोस्ट’’ लगातार सरकार के निर्णयों की तीखी आलोचना करता रहा है।
यहाँ तक कि हमारे विदेश मंत्री ने अपनी अमेरीका यात्रा के दौरान अमेरीकी सांसद प्रमिला जयपाल से निर्धारित मुलाकात को इसलिए रद्द कर दिया, क्योंकि उन्होंने अनुच्छेद 370 हटाये जाने की आलोचना की थी।
रायसीना संवाद ही नहीं, बल्कि इससे पहले सरकार के अनेक निर्णय इस बात को संकेतीत करते हुए मालूम पड़ते हैं कि भारत अपनी विदेश नीति में रूस तथा पश्चिम एशिया को विशेष प्राथमिकता देगा। ईरान और इस्राइल के साथ ही सउदी अरब देशों के साथ बढ़ते भारत के आर्थिक एवं राजनयिक संबंध इसी उद्देश्य की ओर इंगित करते हैं।
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