Saturday 1 February 2020

दो टाइम जोन

भारत में रणनीतिक कारणों से संभव नहीं हैं दो टाइम जोन
पिछले वर्ष एक अध्ययन में यह बात उभरकर आई थी कि देश को दो टाइम जोन में बांट दिया जाए तो पूर्वोत्तर भारत में कामकाज की उत्पादकता में सुधार के साथ-साथ बिजली की खपत कम करने में मदद मिल सकती है। हालांकि अब कहा जा रहा है कि रणनीतिक कारणों से देश को दो हिस्सों में बांटा जाना संभव नहीं है। यह जानकारी विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ हर्ष वर्धन ने संसद में पूछे गए एक प्रश्न के जवाब में प्रदान की है।
डॉ हर्ष वर्धन बताया है कि “वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की राष्ट्रीय भौतिक वैज्ञानिक प्रयोगशाला (एनपीएल) के वैज्ञानिकों द्वारा बिजली की बचत और व्यावहारिक कारणों का हवाला देते हुए दो टाइम जोन से संबंधित जानकारियां विभिन्न विज्ञान शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित की गई हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव, सीएसआईआर-एनपीएल के निदेशक और त्रिपुरा सरकार के मुख्य सचिव वाली उच्च स्तरीय समिति द्वारा इस विषय पर विचार करने के बाद समिति ने रणनीतिक कारणों की दृष्टि से भारत के लिए दो टाइम जोन न होने की सिफारिश की है।”
वर्तमान में दो टाइम ज़ोन का प्रस्ताव स्वयं राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला द्वारा किया है जो कि भारत में आधिकारिक मानक समय का निर्धारण करता है।  
राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला ने भारत में दो टाइम ज़ोन की आवश्यकता के संदर्भ में एक शोध लेख प्रकाशित किया है, इस शोध में एक नए टाइम ज़ोन का प्रस्ताव है जो कि वर्तमान टाइम ज़ोन से एक घंटा आगे होगा।  
करेंट साइंस में प्रकाशित इस लेख ने एक बार फिर से अलग टाइम ज़ोन की मांग संबंधी बहस को फिर से हवा दे दी है।इस शोध में बताया गया है कि कैसे दो टाइम ज़ोन की समय-सीमा को अलग-अलग निर्धारित किया जा सकता है।
राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला का प्रस्ताव
राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला द्वारा जारी शोध पत्र दो टाइम ज़ोन IST-1 (UTC+ 5.30 h) और IST-2 (UTC+ 6.30 h) निर्धारित करने की माँग करता है।  
सीमांकन की प्रस्तावित रेखा 89०52'E असम और पश्चिम बंगाल के बीच संकीर्ण सीमा रेखा है।  
इस रेखा के पश्चिम में स्थित राज्य भारतीय मानक समय अर्थात् IST-1 का पालन करना जारी रखेंगे। रेखा के पूर्व में स्थित राज्य - असम, मेघालय, नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह IST-2 का पालन करेंगे।  
शोधकर्त्ताओं का अनुमान है कि लेख में बताए गए सूत्र के आधार पर सालाना 20 मिलियन किलोवाट ऊर्जा की बचत होगी। राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला के इस विचार को संभव बनाने के लिये नए टाइम ज़ोन में दूसरी प्रयोगशाला की आवश्यकता होगी।
मानक समय
प्रत्येक देश का एक मानक समय होता है जो अक्षांश और देशांतर में अंतर के आधार पर मापा जाता है। भारत में आधिकारिक भारतीय मानक समय का निर्धारण उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद को केंद्र में रखकर होता रहा है जिसका निर्धारण दिल्ली स्थित राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला द्वारा किया जाता है।
कश्मीर से कन्याकुमारी और अरुणाचल से गुजरात तक भारत में एक ही टाइम ज़ोन मान्य है। यह व्यवस्था वर्ष 1906 में बनाई गई थी। हालाँकि 1948 तक कोलकाता का आधिकारिक समय अलग से निर्धारित होता था और इसका कारण यह था कि वर्ष 1884 में वॉशिंगटन में विश्व के सभी टाइम ज़ोन्स में एकरूपता लाने के उद्देश्य से हुई इंटरनेशनल मेरिडियन कॉन्फ्रेंस में तय हुआ कि भारत में दो टाइम ज़ोन होंगे। इसलिये कोलकाता का टाइम ज़ोन दूसरे मान्य टाइम ज़ोन के रूप में प्रचलित रहा। गौरतलब है कि मुंबई का समय भी 1955 तक अलग से मापा जाता था, हालाँकि उसे आधिकारिक तौर पर कभी लागू नहीं किया गया।
भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में सूरज जल्दी उगता है और शाम को जल्दी अस्त हो जाता है। सर्दियों के मौसम में सूरज के जल्दी छिपने से पूर्वोत्तर राज्यों में काम के घंटे कम हो जाते हैं। इसका सीधा असर कामकाज के घंटों पर पड़ता है, जिससे उत्पादकता कम होने के साथ-साथ बिजली की खपत भी अधिक होती है। एक निश्चित समय सारिणी के अनुसार खुलने वाले दफ्तरों में काम करने वाले लोगों को परेशानी का सामना तो करना ही पड़ता है साथ ही वायुयानों की उड़ानों आदि के संचालन में भी असुविधा होती है। यही वजह है कि पूर्वोत्तर भारत के लिए एक अलग टाइम जोन की मांग लंबे समय से की जा रही है। कई वैज्ञानिक अध्ययनों में भी इस बात की पुष्टि हुई है कि देश को दो अलग-अलग टाइम जोन में बांट देने से इस स्थिति में सुधार हो सकता है।
ऊर्जा क्षेत्र से जुड़े शोधकर्ता वर्ष 1980 के दशक के उत्तरार्ध से ही भारत में दो टाइम जोन बनाने की व्यवहारिकता पर विचार कर रहे हैं। हालांकि, वैज्ञानिकों द्वारा सुझाए गए अधिकतर प्रस्ताव अकादमिक पत्रिकाओं तक सीमित रहे हैं और इस पर अब तक अमल नहीं किया जा सका है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव, सीएसआईआर-एनपीएल के निदेशक और त्रिपुरा सरकार के मुख्य सचिव वाली उच्च स्तरीय समिति द्वारा इस विषय पर विचार करने के बाद समिति ने रणनीतिक कारणों की दृष्टि से भारत के लिए दो टाइम जोन न होने की सिफारिश की है।
भारतीय मानक समय (आईएसटी) का निर्धारण करने वाली नई दिल्ली स्थित सीएसआईआर-एनपीएल के एक विश्लेषण के आधार पर पिछले वर्ष जून में असम, मेघालय, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा और अंडमान निकोबार द्वीप समूह के लिए अलग समय क्षेत्र (टाइम जोन) निर्धारित करने का सुझाव दिया गया था।
पूर्वोत्तर राज्यों के सांसद और अन्य समूह काफी समय से एक अलग समय क्षेत्र की मांग कर रहे हैं। सीएसआईआर-एनपीएल के वैज्ञानिकों ने बंगाल के अलीपुर द्वार में 89 डिग्री 52 मिनट पूर्व देशांतर पर दो अलग समय क्षेत्रों को अलग करने वाली सीमा का पहचान की थी। वैज्ञानिकों ने उस समय कहा था कि देश के विस्तृत हिस्से के लिए आईएसटी-I और पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए आईएसटी-II को एक घंटे के अंतर पर अलग-अलग किया जा सकता है।
एनपीएल के वैज्ञानिकों के अनुसार, देश में दो भारतीय मानक समय प्रदान करने की क्षमता है और दो समय क्षेत्रों के होने पर भी दिन के समय के साथ मानक समय को संयोजित किया जा सकता है। हालांकि, अब रणनीतिक कारणों से इस पर अमल करना फिलहाल संभव नहीं लग रहा है।
भारतीय मानक समय की उत्पत्ति और प्रसार के लिए वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के अंतर्गत कार्यरत एनपीएल की भूमिका अहम है। दूसरे समय क्षेत्रों के लिए एनपीएल को पूर्वोत्तर में एक और प्रयोगशाला स्थापित करने और इसे यूटीसी के साथ सिंक करने का सुझाव दिया गया था। 
अलग टाइम ज़ोन का वैश्विक परिदृश्य
विभिन्न देशों में समय को किसी कठोर नियम के माध्यम से ही नहीं बल्कि लोगों की सुविधा के अनुसार भी निर्धारित किया जाता है।
वैश्विक स्तर पर देखा जाए तो विश्व में सर्वाधिक टाइम ज़ोन फ्राँस में हैं यहाँ 12 टाइम ज़ोन हैं तो अमेरिका में 9 टाइम ज़ोन हैं।
रूस में 11 टाइम जोन हैं।
बर्फीले देश अंटार्कटिका की विशालता के कारण वहाँ 10 टाइम ज़ोन हैं।
ब्रिटेन भी 9 टाइम ज़ोन का इस्तेमाल करता है।
ऑस्ट्रेलिया में केवल 8 टाइम जोन हैं। यहाँ के एक हिस्से में जब सुबह के 5 बजते हैं तो उसी समय दूसरे हिस्से में सुबह के 11 बजे चुके होते हैं।
छोटा सा देश डेनमार्क भी 5 टाइम ज़ोन में विभाजित है।
इंडिया साइंस वायर, Lalit sharma

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