Thursday 27 February 2020

बिहार की चट्टानें

#बिहार_की_चट्टानें #बिहार_विशेष(#BPSC)

#भूगर्भीय_संरचना_के_आधार_पर_बिहार_में_चार_प्रकार_की_चट्टानें_पाई_जाती_हैं:

•धारवाड़ चट्टान (Dharwad rock)
•विंध्यन चट्टान, (Vindhyan Rocks)
•टर्शियरी चट्टान, (Tertiary rock)
•क्वार्टरनरी चट्टान (Quaternary rock)

🌺#धारवाड़_चट्टान (DHARWAD ROCK)

प्री-कैंब्रियन (Pre-Cambrian) काल की धारवाड़ चट्टान बिहार के दक्षिण-पूर्वी भाग में #मुंगेर जिला के खड़गपुर पहाड़ी, #जमुई, #बिहारशरीफ, #नवादा, #राजगीर, #बोधगया आदि क्षेत्रों में विस्तृत है। इन क्षेत्रों में पाई जानेवाली पहाड़ियाँ #छोटानागपुर_पठार का ही भाग हैं। हिमालय पर्वत के निर्माण के समय मेसोजोइक काल (Mesozoic Age) में इस पर दबाव बढ़ने के कारण, कई भ्रंश घाटियों का निर्माण हुआ। कालांतर में जलोढ़ मृदा के निक्षेपण से ये पहाड़ियाँ मुख्य पठार से अलग हो गई। धारवाड़ चट्टानी क्रम में स्लेट, क्वार्टजाइट और फिलाइट आदि चट्टानें पाई जाती हैं। ये मूलतः आग्नेय प्रकार की चट्टान हैं, जो लंबे समय से अत्यधिक दाब एवं ताप के प्रभाव के कारण रूपांतरित हो गई हैं। इन चट्टानों में अभ्रक का निक्षेप पाया जाता है।

🌺#विंध्यन_चट्टान (VINDHYAN ROCKS)

विंध्यन चट्टानो का निर्माण प्री-कैंब्रियन युग (Pre-Cambrian era) में हुआ। यह चट्टानें बिहार के दक्षिण-पश्चिमी भाग में पाई जाती है तथा इनका विस्तार सोन नदी के उत्तर में #रोहतास और #कैमूर जिले में है। (इस तरह की चट्टानें #पश्चिम_चम्पारण में भी अल्प मात्रा में मिलती हैं), सोन घाटी में इन चट्टानों के ऊपर जलोढ़ का निक्षेप पाया जाता है। इसमें कैमूर क्रम और सिमरी क्रम की चट्टानें पाई जाती हैं। इन चट्टानों में पायराइट खनिज पाया जाता है, जिससे गंधक निकलता है। जीवाश्मयुक्त इन चट्टानों में चूना-पत्थर, डोलोमाइट, बलुआपत्थर और क्वार्टजाइट चट्टानें पाई जाती हैं। ये चट्टानें लगभग क्षैतिज अवस्था में हैं। चट्टानों में जीवाश्म की अधिकता यह प्रमाणित करती है कि यह अतीत में समुद्री निक्षेप का क्षेत्र रहा है। औरंगाबाद जिले के नवीनगर क्षेत्र में ज्वालामुखी संरचना के भी प्रमाण पाए जाते हैं।

🌺#टर्शियरी_चट्टान (TERTIARY ROCK)

यह चट्टानें #हिमालय की सबसे दक्षिणी श्रेणी #शिवालिक_श्रेणी में पाई जाती है। इसके निर्माण का संबंध मेसोजोइक (Mesozoic Era) कल्प के मायोसीन (Myosin) और  प्लायोसीन भूगर्भिक काल (Ploocene geologic era)  से है, जो हिमालय पर्वत के निर्माण के द्वितीय और तृतीय उत्थान से संबंधित है। इस श्रेणी में बालू (Sand), पत्थर (Stone) तथा बोल्डर (Bolder), क्ले (Clay) चट्टानें पाई जाती हैं। निचले भाग में कांगलोमरेट चट्टान (Conglomerate Rock) की प्रधानता है। टेथिस सागर (Tethys Sea) के अवसाद से निर्मित होने के कारण इसमें पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस (Petroleum and Natural Gas) संचित है।

🌺#क्वार्टरनरी_चट्टान (QUATERNARY ROCK)

क्वार्टरनरी चट्टान #गंगा_के_मैदानी_क्षेत्र में परतदार चट्टान के रूप में पाई जाती है, जिसका निर्माण कार्य आज भी जारी है। गंगा का मैदान टेथिस सागर (Tethys Sea) का अवशेष है, जिसका निर्माण गंगा और उसकी सहायक नदियों द्वारा अवसाद (निक्षेप) जमा करने से हुआ है। हिमालय पर्वत का निर्माण भी टेथिस सागर के मलबे पर संपीडन शक्ति से हुआ है। संपीडन (दबाव) शक्ति द्वारा जिस समय हिमालय का निर्माण हो रहा था, उसी समय हिमालय के दक्षिण में एक विशाल गर्त का निर्माण हुआ। इसी गर्त में गोंडवाना लैंड (Gondwana Land) के पठारी भाग से तथा हिमालय से निकलनेवाली नदियों के द्वारा अवसादों का निक्षेपण प्रारंभ हुआ, जिससे विशाल गर्त ने मैदान का स्वरूप ग्रहण कर लिया।

मैदान का निर्माण जलोढ़, बालू-बजरी-पत्थर और कांगलोमरेट (Canglomerate) से बनी चट्टानों से हुआ है। यह अत्यंत मंद ढालवाला मैदान है, जिसमें जलोढ़ की गहराई सभी जगहों पर समान नहीं है। इस मैदान में जलोढ़ की गहराई 100 मीटर से 900 मीटर तथा अधिकतम गहराई 6000 मीटर तक है। सर्वाधिक गहरे जलोढ़ का निक्षेप पटना के आसपास पाया जाता है।

No comments: