Saturday 18 January 2020

(GS Capsule) - समान नागरिक संहिता (UCC) ( Part-1)


* समान नागरिक संहिता का लक्ष्य व्यक्तिगत कानूनों (धार्मिक ग्रंथों और रीति-रिवाजों पर आधारित कानून) को प्रतिस्थापित करना है
* इन कानूनों को सार्वजनिक कानून के नाम से जाना जाता है और इसके अंतर्गत विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, गोद लेने और संरक्षण जैसे विषयों से संबंधित कानूनों को शामिल किया गया है
* भारत में गोवा एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ समान नागरिक संहिता और विशेष विवाह अधिनियम 1954 लागू है जो किसी भी नागरिक को किसी विशेष धार्मिक कानून के दायरे के बाहर शादी करने की अनुमति देता है
* 1840 में ब्रिटिश सरकार द्वारा “लेक्स लूसी” रिपोर्ट के आधार पर अपराधों, सबूतों और अनुबंधों के लिए एकसमान कानून का निर्माण किया गया था लेकिन उन्होंने जानबूझकर हिंदुओं और मुसलमानों के कुछ निजी कानूनों को छोड़ दिया था
* ब्रिटिश भारतीय न्यायपालिका ने हिन्दू और मुस्लिमों को अंग्रेजी कानून के तहत ब्रिटिश न्यायाधीशों द्वारा आवेदन करने की सुविधा प्रदान की थी
* 1940 के दशक में गठित संविधान सभा में जहाँ एक ओर समान नागरिक संहिता को अपनाकर समाज में सुधार चाहने वाले डॉ. बी. आर. अम्बेडकर जैसे लोग थे वहीं धार्मिक रीति-रिवाजों पर आधारित निजी कानूनों को बनाए रखने के पक्षधर मुस्लिम प्रतिनिधि भी थे जिसके कारण संविधान सभा में समान नागरिक संहिता का अल्पसंख्यक समुदायों द्वारा विरोध किया गया था
* परिणामस्वरूप समान नागरिक संहिता के बारे में संविधान के भाग IV में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के रूप में अनुच्छेद 44 के तहत सिर्फ एक ही लाइन जोड़ा गया था जिसमें कहा गया है कि “राज्य भारत के राज्यक्षेत्र के अंतर्गत निवास करने वाले सभी नागरिकों को सुरक्षित करने के लिए एकसमान नागरिक संहिता लागू करने का प्रयास करेगा”
* चूंकि एकसमान नागरिक संहिता को राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के रूप में शामिल किया गया था अतः इन कानूनों को अदालत के द्वारा लागू नहीं किया जा सकता था
* देश की राजनीतिक विसंगति के कारण किसी सरकार ने इसे लागू करने के लिए उचित इच्छाशक्ति नहीं दिखाई, क्योंकि अल्पसंख्यकों मुख्य रूप से मुसलमानों का मानना ​​था कि एकसमान नागरिक संहिता द्वारा उनके व्यक्तिगत कानूनों का उल्लंघन होगा
* इस बिल में बौद्ध, सिख, जैन के साथ ही हिंदुओं के विभिन्न धार्मिक संप्रदायों से संबंधित कानूनों को शामिल किया गया है, जिसके तहत महिलाओं को तलाक और उत्तराधिकार के अधिकार दिए गए हैं और शादी के लिए जाति को अप्रासंगिक बताया गया है इसके साथ ही द्विविवाह और बहुविवाह को समाप्त कर दिया गया है
* किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2014 को लागू करने का फैसला एकसमान नागरिक संहिता की दिशा में एक प्रयास प्रतीत होता है क्योंकि यह अधिनियम मुस्लिम समुदाय के व्यक्तियों को बच्चों को गोद लेने की अनुमति देता है जबकि मुस्लिमों को उनके व्यक्तिगत कानूनों के तहत बच्चे को गोद लेने की अनुमति नहीं है
शेष भाग - 2 में

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