Saturday, 18 January 2020

(GS Capsule) - सामान नागरिक संहिता (भाग-2)

सामान नागरिक संहिता (भाग-2)
* सामान नागरिक संहिता के तहत कानूनों का एक ऐसा समूह तैयार किया जाएगा जो धर्म की परवाह किए बगैर सभी नागरिकों के व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करेगा
* वास्तव में यह सच्ची धर्मनिरपेक्षता की आधारशिला है इस तरह के प्रगतिशील सुधार से न केवल धार्मिक आधार पर महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को समाप्त करने में मदद मिलेगी बल्कि देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को मजबूत बनाने और एकता को बढ़ावा देने में भी मदद मिलेगी
* वर्तमान परिपेक्ष्य की बात करें तो हमारा देश समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर तीन शब्दों अर्थात राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक आधार पर दो श्रेणियों में बँटा हुआ दिखाई देता है
* राजनीतिक रूप से, जहाँ भाजपा समान नागरिक संहिता के पक्ष में है वहीं कांग्रेस एवं गैर भाजपा दल UCC का विरोध कर रही है
* सामाजिक रूप से, जहाँ देश के पेशेवर एवं साक्षर व्यक्ति UCC के लाभ-हानि का विश्लेषण कर सकते हैं वहीं दूसरी ओर अनपढ़ लोग राजनीतिक दलों द्वारा लिए गए फैसले के आधीन है क्योंकि UCC के मुद्दे पर इनका कोई अपना विचार नहीं है
* धार्मिक रूप से, बहुसंख्यक हिंदुओं और अल्पसंख्यक मुसलमानों के बीच समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर मतभेद है
* वास्तव में हमारी सामाजिक व्यवस्था अन्याय, भेदभाव और भ्रष्टाचार से भरी हुई है एवं हमारे मौलिक अधिकारों के साथ उनका टकराव चलता रहता है, अतः उसमें सुधार करने की जरूरत है
* अभी हमारे देश में एक दण्ड संहिता है जो देश में धर्म, जाति, जनजाति और अधिवास की परवाह किए बगैर सभी लोगों पर समान रूप से लागू होती है लेकिन हमारे देश में तलाक एवं उत्तराधिकार के संबंध में एकसमान कानून नहीं है और ये विषय व्यक्तिगत कानूनों द्वारा नियंत्रित होते हैं
* अनुच्छेद 25 हमें अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता प्रदान करती है अतः समान नागरिक संहिता लोगों पर जबरदस्ती थोपा नहीं जा सकता है क्योंकि यह स्पष्ट रूप से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन होगा
* 1985 में सुप्रीम कोर्ट ने सर्वप्रथम संसद को समान नागरिक संहिता से संबंधित कानून बनाने का निर्देश दिया था और अब तक कई बार निर्देश दे चुका है
* वास्तव में समान नागरिक संहिता में मौजूदा व्यक्तिगत कानूनों के आधुनिक और प्रगतिशील पहलुओं का समावेश किया गया है
* बदलते परिस्थितियों के बीच आज वह समय आ गया है कि सभी नागरिकों के मौलिक और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए धर्म की परवाह किए बगैर समान नागरिक संहिता को लागू किया जाना चाहिए, क्योंकि समान नागरिक संहिता द्वारा धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रीय अखंडता को भी मजबूत किया जा सकता है
* अंत में हमें महात्मा गांधी के उन शब्दों को याद करना चाहिए, कि "मैं नहीं चाहता हूँ कि मेरे सपनों के भारत में सिर्फ एक धर्म का विकास हो, बल्कि मेरी दिली इच्छा है कि मेरा देश एक सहिष्णु देश हो जिसमें सभी धर्म कन्धे-से-कन्धा मिलाकर आगे बढ़े|”

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