Monday 11 November 2019

हमने बनाई मिसाल- From NBT


कई शताब्दी पुराने रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को देश ने जिस शांतिपूर्ण और विवेकसम्मत अंदाज में ग्रहण किया है, उसे आने वाले वर्षों में एक मिसाल के रूप में याद किया जाएगा। शनिवार को फैसला आने से पहले सबकी सांसें थमी हुई थीं। सवाल यह तो था ही कि फैसला क्या होगा, यह भी था कि समाज के अलग-अलग हिस्से उस पर कैसे रिऐक्ट करेंगे। जब भी कोई विवाद एक हद से ज्यादा लंबा खिंच जाता है तो समय के साथ उसकी जटिलता बढ़ती चली जाती है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की इस बेंच के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि समाज के गले में लंबे समय से फंसे इस कांटे को किस तरह निकाला जाए कि वह कोई नया जख्म पाए बगैर इससे मुक्त हो जाए।

इसे कोर्ट की परिपक्वता कहेंगे कि पांचो जजों ने सर्वसम्मति से ऐसा फैसला दिया जिससे किसी भी पक्ष को सब कुछ भले न मिला हो, पर कोई भी पक्ष ऐसा नहीं रहा जिसे कुछ न मिला। सबसे बड़ी बात यह कि पीठ ने यह खास सावधानी बरती कि फैसले से कोई गलत प्रस्थापना पुष्ट न हो। इसीलिए विवादित भूमि मंदिर के लिए देते हुए भी कोर्ट ने साफ किया कि अतीत की गलतियों को वर्तमान में सुधारने की कोशिश उचित नहीं है। यह भी कि 1934, 1949 और 1992 में पूजास्थल के साथ हुई छेड़छाड़ गैरकानूनी थी। यह उन तत्वों को साफ संदेश था जो इस फैसले को मंदिर निर्माण के नाम पर की गई अपनी तमाम गतिविधियों के लिए सर्टिफिकेट के रूप में इस्तेमाल कर सकते थे।
मुस्लिम पक्ष को मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ जमीन देने का कोर्ट का आदेश भी बताता है कि भले विवादित भूमि पर उसका दावा स्वीकार न किया गया हो, लेकिन उसके दावे को अदालत ने नजरअंदाज करने लायक नहीं माना। बहरहाल, इस पूरे प्रकरण का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष है इस फैसले पर देशवासियों की प्रतिक्रिया। मुस्लिम समाज ने जो शांति, संयम और समझदारी दिखाई है वह निश्चित रूप से काबिलेतारीफ है। हिंदू पक्ष ने भी पिछले कई मौकों के विपरीत इस बार गौरव प्रदर्शन से परहेज किया। कानून व्यवस्था से जुड़ी एजेंसियों ने फैसला आने से पहले से ही हर संभव सतर्कता बरतते हुए सोशल मीडिया पर नजर रखने और अमन कमेटी वगैरह गठित करने जैसे कदम उठाए।
कुल मिला कर एक देश के रूप में हमने जिस कुशलता, शांतिप्रियता और समझदारी का परिचय देते हुए इस विवाद से अपना पीछा छुड़ाया है वह बताता है कि एक लोकतांत्रिक समाज के रूप में हम पहले से ज्यादा परिपक्व हुए हैं। हालांकि किसी भी समाज के जीवन में ऐसा कोई एक बिंदु स्थायी नहीं होता। आने वाले समय में ऐसी और भी परीक्षाएं हमारे सामने आएंगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि हम अपने ही इस उदाहरण की रोशनी में आगे बढ़ते हुए उन परीक्षाओं में भी सफल होंगे।

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