सीबीआई के भीतर और उसको लेकर आए दिन जैसे विवाद देखने को मिल रहे हैं, उससे देश की इस सर्वोच्च जांच एजेंसी की साख पाताल में चली गई है। यह सवाल भी पूछा जाने लगा है कि अगर सीबीआई का हाल ऐसा ही बना रहा तो आने वाले दिनों में गंभीर अपराधों की जांच कैसे हो पाएगी? ताजा मामला पश्चिम बंगाल सरकार के साथ इसके टकराव का है। रविवार शाम सीबीआई की एक टीम शारदा चिटफंड और रोज वैली घोटाले में पूछताछ करने कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के सरकारी निवास पर पहुंची। वहां सुरक्षा के लिए तैनात पुलिस ने सीबीआई टीम को राजीव कुमार के घर में दाखिल नहीं होने दिया और उन्हें शेक्सपियर सरणी थाने ले आई।
कोलकाता पुलिस का दावा है कि सीबीआई की टीम बिना किसी वॉरंट या अदालती आदेश के आई थी। राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सीबीआई की इस कार्रवाई के विरोध में धरने पर बैठ गईं। वर्ष 2013 में शारदा चिट फंड और रोज वैली घोटाले की जांच का जिम्मा ममता सरकार ने विशेष जांच दल (एसआईटी) को सौंपा था, जिसके मुखिया राजीव कुमार थे। 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने ये मामले सीबीआई को सौंप दिए, जिसका आरोप है कि राजीव कुमार ने कई डॉक्यूमेंट, लैपटॉप, पेन ड्राइव और मोबाइल फोन उसे नहीं सौंपे। इस बारे में उन्हें कई बार समन भेजा गया, फिर भी वह सीबीआई के सामने पेश नहीं हुए। ममता बनर्जी का कहना है कि उन्होंने बीजेपी को राज्य में रैली करने से रोका, इसलिए केंद्र सरकार के इशारे पर सीबीआई यह कार्रवाई कर रही है। उनकी आपत्ति यह भी है कि सीबीआई ने उनकी अनुमति के बगैर यह कदम उठाया। पिछले एक-दो महीनों में पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सरकारों ने अपने यहां सीबीआई की कार्रवाई पर रोक लगा दी है। इस संस्था का गठन दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम-1946 के तहत हुआ है, जिसकी धारा-5 के तहत सीबीआई को पूरे देश में जांच का अधिकार दिया गया है।
लेकिन धारा-6 में साफ कहा गया है कि राज्य सरकार की अनुमति के बिना सीबीआई उसके अधिकार क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकती। अभी की स्थिति में सुप्रीम कोर्ट ही बता सकता है कि इन तीनों राज्यों में सीबीआई कैसे काम करे। सीबीआई को अपने कार्यक्षेत्र में न घुसने देना का राज्य सरकारों का फैसला केंद्र द्वारा उसके राजनीतिक इस्तेमाल के आरोप से जुड़ा है। इस झगड़े से सीबीआई की विश्वसनीयता को वैसा ही आघात लगा है, जैसा कुछ समय पहले इसके दो आला अफसरों के झगड़े से लगा था। जाहिर है, देश की आला जांच एजेंसी का कमजोर पड़ना, उस पर लोगों का भरोसा कम होना हमारे समूचे सिस्टम के लिए बहुत खतरनाक संकेत है। फिलहाल पहली जरूरत बंगाल में पैदा गतिरोध को दूर करने की है, लेकिन बाद में राजनीतिक दलों को साथ बैठकर सीबीआई की साख बहाली के तरीके भी खोजने होंगे।
कोलकाता पुलिस का दावा है कि सीबीआई की टीम बिना किसी वॉरंट या अदालती आदेश के आई थी। राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सीबीआई की इस कार्रवाई के विरोध में धरने पर बैठ गईं। वर्ष 2013 में शारदा चिट फंड और रोज वैली घोटाले की जांच का जिम्मा ममता सरकार ने विशेष जांच दल (एसआईटी) को सौंपा था, जिसके मुखिया राजीव कुमार थे। 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने ये मामले सीबीआई को सौंप दिए, जिसका आरोप है कि राजीव कुमार ने कई डॉक्यूमेंट, लैपटॉप, पेन ड्राइव और मोबाइल फोन उसे नहीं सौंपे। इस बारे में उन्हें कई बार समन भेजा गया, फिर भी वह सीबीआई के सामने पेश नहीं हुए। ममता बनर्जी का कहना है कि उन्होंने बीजेपी को राज्य में रैली करने से रोका, इसलिए केंद्र सरकार के इशारे पर सीबीआई यह कार्रवाई कर रही है। उनकी आपत्ति यह भी है कि सीबीआई ने उनकी अनुमति के बगैर यह कदम उठाया। पिछले एक-दो महीनों में पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सरकारों ने अपने यहां सीबीआई की कार्रवाई पर रोक लगा दी है। इस संस्था का गठन दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम-1946 के तहत हुआ है, जिसकी धारा-5 के तहत सीबीआई को पूरे देश में जांच का अधिकार दिया गया है।
लेकिन धारा-6 में साफ कहा गया है कि राज्य सरकार की अनुमति के बिना सीबीआई उसके अधिकार क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकती। अभी की स्थिति में सुप्रीम कोर्ट ही बता सकता है कि इन तीनों राज्यों में सीबीआई कैसे काम करे। सीबीआई को अपने कार्यक्षेत्र में न घुसने देना का राज्य सरकारों का फैसला केंद्र द्वारा उसके राजनीतिक इस्तेमाल के आरोप से जुड़ा है। इस झगड़े से सीबीआई की विश्वसनीयता को वैसा ही आघात लगा है, जैसा कुछ समय पहले इसके दो आला अफसरों के झगड़े से लगा था। जाहिर है, देश की आला जांच एजेंसी का कमजोर पड़ना, उस पर लोगों का भरोसा कम होना हमारे समूचे सिस्टम के लिए बहुत खतरनाक संकेत है। फिलहाल पहली जरूरत बंगाल में पैदा गतिरोध को दूर करने की है, लेकिन बाद में राजनीतिक दलों को साथ बैठकर सीबीआई की साख बहाली के तरीके भी खोजने होंगे।
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