*छत्तीसगढ़ी : छत्तीसगढ़ की विभिन्न बोलियाँ*
*लरिया (या लडिया)* - छत्तीसगढी के उडिया प्रदेश की पश्चिमी सीमा में घुसते हुए और घुसे हुए रूप का प्रयोग रायगढ, महासमुन्द, और रायपुर जिलों के पूर्वी भागों में होता है। उडीसा के संबलपुर के आस-पास तक पहुंचे इस रूप को छत्तीसगढी के मध्य पूर्वी रूप के अंतर्गत रखा जाएगा। ग्रियर्सन ने खलटाही और लरिया दोनों को ’छत्तीसगढी’ का ही दूसरा नाम स्वीकार किया था। आगे छत्तीसगढ़ी के अन्य रूपों को वर्णक्रम से जमाते हुए उन का संकेतात्मक परिचय दिया जा रहा है।
*कलंगा*- उड़िया से अत्यधिक प्रभावित यह रूप रायपुर जिले पूर्वी सीमांत पर, रायगढ जिले के दक्षिण्ण छोर पर, तथा उडीसा की पश्चिमी सीमा पर पटना में कुछ कबीलों द्वारा प्रयुक्त किया जाता है संसय मेंइस का नाम नहीं आया है, पर ग्रियर्सन ने इसे छत्तीसगढ़ी की एक उपबोली कहा था। इस का क्षेत्र छत्तीसगढ से काफी-कुछ बाहर है। अनेक उडिया-भाषी इसे उड़िया के अंतर्गत होने का दावा करते हैं।
*कलंजिया*- इसका चलन अधिकांशतः उडीसा के संबलपुर जिले के दक्षिण-पश्चिम भाग में है, जिसे ’कंजा’ और ’कन्नौजिया ग्वाले’ व्यह्त करते हैं। चूंकि ये लोग घर से बाहर उडिया बोलते हैं, इसलिए इनकी मातृबोली पर उडिया का बहुत प्रभाव पडता है। यह नाम भी संसय में नहीं है।
*गोरो*- छत्तीसगढी का यह उपरूप आसाम पहुंचे हुए छत्तीसगढी लोगांे के द्वारा प्रयुक्त होता है संसय-अधिकारियों ने इस के प्रयोक्ताओं की स्लिपों की छान-बीन करने पर पाया कि ये लोग बैगा जनजाति के हैं । इस दृष्टि से यह मातृभाषा बैगानी के साथ हुई।.............
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