Thursday 11 October 2018

एक और रेल दुर्घटना

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हर हादसा बुरा होता है। उन लोगों के लिए तो बहुत बुरा, जो अपने किसी नजदीकी को हादसे में खो देते हैं, और उन लोगों के लिए भी, जो दुर्घटना की चपेट में आकर घायल हो जाते हैं। बुधवार की सुबह रायबरेली में हुए रेल हादसे की कहानी भी यही है। हालांकि न्यू फरक्का एक्सप्रेस के पटरी से उतर जाने के तुरंत बाद जिस तरह से और जिस तेजी से गतिविधियां चलीं, वे आश्वस्त भी करती हैं। तुरंत ही राष्ट्रीय आपदा राहत बल की दो टीमें लखनऊ और वाराणसी से घटनास्थल की ओर रवाना हो गईं। डॉक्टरों का एक दल भी बहुत तेजी से वहां पहुंच गया। प्रधानमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने जिस तेजी से संवेदना व्यक्त की और सारे जरूरी इंतजाम करने का आश्वासन दिया,
उससे यह भरोसा बना कि इतने उच्च स्तर की सक्रियता के बाद दुर्घटनास्थल पर कोई बदइंतजामी नहीं हो सकेगी। हर दुर्घटना अपने पीछे बहुत सारे रोते-बिलखते व डरे हुए लोग और कई सवाल छोड़ जाती है। लोगों के घाव तो समय के साथ भर जाते हैं, लेकिन दुर्भाग्य है कि ये सवाल हमेशा ही अनुत्तरित रह जाते हैं। बावजूद इसके कि हर दुर्घटना के बाद जांच के लिए बाकायदा एक समिति बनती है। फिर उसकी रिपोर्ट किस ठंडे बस्ते में चली जाती है, यह अक्सर हमें पता भी नहीं चलता। इन हादसों और रिपोर्टों की याद भी हमें तभी आती है, जब कोई अगली दुर्घटना हमारी तंद्रा को झटके से तोड़ती है।
बुधवार को हुई दुर्घटना में न्यू फरक्का एक्सप्रेस उस रेलमार्ग पर पटरी से उतरी, जो देश के सबसे व्यस्त रेल मार्गों में से एक है। यह पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर भारत को बिहार, उत्तर प्रदेश व देश की राजधानी नई दिल्ली से जोड़ता है। जाहिर है कि इस दुर्घटना का असर उस रेलमार्ग पर चलने वाली बाकी गाड़ियों पर भी पड़ा होगा और सबका टाइम-टेबल गड़बड़ा गया होगा। लेकिन यह एक तात्कालिक समस्या है और शायद एक आध दिन में यह टाइम-टेबल भी पटरी पर आ जाएगा। अभी पता नहीं है कि यह ट्रेन पटरी से क्यों उतरी, लेकिन अगर ऐसे मुख्य मार्ग पर रेल पटरी से उतर रही है, तो यह गंभीर मसला तो है ही। सचेत हो जाने की जरूरत इसलिए भी है कि आगे सर्दियों का मौसम आ रहा है, जब कोहरे और ठंड के कारण पटरियों में क्रैक की वजह से ऐसी दुर्घटनाओं की आशंका बढ़ जाती है।
कहा जाता है कि कोई भी दुर्घटना अक्सर सिर्फ एक दुर्घटना भर नहीं होती। उसके पीछे होती है कोई चूक, कोई भूल, कोई लापरवाही या फिर कोई व्यवस्थागत खामी। हर दुर्घटना के बाद उम्मीद यही बांधी जाती है कि लापरवाहों को सजा मिलेगी, भूल-चूक से तौबा होगी और व्यवस्थागत खामियों को दूर कर दिया जाएगा। और फिर जब अगली दुर्घटना होती है, तो पता लगता है कि इनमें से कुछ भी नहीं हुआ। हुआ भी, तो इतना असरदार नहीं था कि उसी तरह की अगली दुर्घटना न होने का सबब बन पाता। पहले जब रेल बजट अलग से पेश किया जाता था, तो हर रेल बजट के एक हिस्से में इस बात का औपचारिक पाठ जरूर किया जाता था कि रेल दुर्घटनाओं को रोकने के लिए आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा। पता नहीं, वह आधुनिक तकनीक कभी रेल पटरियों पर उतरी या नहीं, लेकिन दुर्घटनाएं होती रहीं औ

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