बुलन्द हौसले वाले 'पर्वतपुरुष' #दशरथ_मांझी_जी के 11वीं पुण्यतिथि पर भावभीनी श्रद्धांजलि..❤️🇮🇳💐🙏
दशरथ मांझी, एक ऐसा नाम जो इंसानी जज़्बे और जुनून की मिसाल है. वो दीवानगी, जो प्रेम की खातिर ज़िद में बदली और तब तक चैन से नहीं बैठी, जब तक कि पहाड़ का सीना चीर दिया.
17 अगस्त को दशरथ मांझी यानि माउंटेन मैन की पुण्यतिथि है. मांझी का जन्म बिहार के गया जिले में 1934 में हुआ था. 2007 में वो 73 वर्ष की उम्र में दुनिया छोड़ गए थे. गेहलौर पहाड़ का सीना चीरने से गया के अतरी और वजीरगंज ब्लॉक का फासला 80 किलोमीटर से घटकर 13 किलोमीटर हो गया. आज भी पहाड़ों पर लिखी है उनकी वो कहानी, जो आने वाली कई पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा बन गई.
अकेले दम पर पहाड़ के बीचों बीच से निकाला रास्ता
दशरथ मांझी जाति से दलित थे तथा एक बेहद पिछड़े इलाके से आते थे. शुरुआती जीवन में उन्हें अपना हक मांगने के लिए संघर्ष करना पड़ा. उनके गांव से पास के कस्बे जाने के लिए एक पूरा पहाड़ (गहलोर पर्वत) पार करना पड़ता था. उनके गांव में उन दिनों न बिजली थी, न पानी. ऐसे में छोटी से छोटी जरूरत के लिए उस पूरे पहाड़ का चक्कर लगाकर जाना पड़ता था या तो पार करना पड़ता था. उनकी पत्नी का नाम फाल्गुनी देवी था. दशरथ मांझी को गहलौर पहाड़ काटकर रास्ता बनाने का जूनून तब सवार हुआ जब पत्नी फगुनी पहाड़ के दर्रे में गिर गयी और उनका निधन हो गया. पत्नी की मौत दवाइयों के अभाव में हो गई, क्योंकि बाजार दूर था. यह बात उनके मन में घर कर गई. इसके बाद दशरथ मांझी ने संकल्प लिया कि वह अकेले दम पर पहाड़ के बीचों बीच से रास्ता निकलेगा और अतरी व वजीरगंज की दूरी को कम करेगा.
लोगों ने मुझे पागल कहा – दशरथ मांझी
22 साल की उम्र में यानी 1956 में दशरथ मांझी काफी कम उम्र में अपने घर से भागकर धनबाद की कोयले की खानों में काम किया. फिर अपने घर लौट आए और फाल्गुनी देवी से शादी किया. पत्नी फाल्गुनी के पहाड़ के दर्रे में गिर जाने से निधन हो गया था. फाल्गुनी देवी को समय पर अस्पताल ले जाया गया होता तो शायद वो बच जाती.
पत्नी के चले जाने के गम से टूटे दशरथ मांझी ने अपनी सारी ताकत बटोरी और पहाड़ के सीने पर वार करने का फैसला किया. लेकिन यह आसान नहीं था. शुरुआत में उन्हें पागल तक कहा गया. दशरथ मांझी ने बताया था, 'गांववालों ने शुरू में कहा कि मैं पागल हो गया हूं, लेकिन उनके तानों ने मेरा हौसला और बढ़ा दिया'.
इसके बाद दशरथ मांझी ने संकल्प लिया कि वह अकेले अपने दम पर पहाड़ के बीचों बीच से रास्ता निकालेंगे और साल 1960 से 1982 के बीच दिन-रात दशरथ मांझी के दिलो-दिमाग में एक ही चीज़ ने कब्ज़ा कर रखा था. पहाड़ से अपनी पत्नी की मौत का बदला लेना.और 22 साल जारी रहे जुनून ने अपना नतीजा दिखाया और पहाड़ ने मांझी से हार मानकर 360 फ़ुट-लम्बा (110 मी), 25 फ़ुट-गहरा (7.6 मी) 30 फ़ुट-चौड़ा (9.1 मी)गेहलौर की पहाड़ियों से रास्ता बनाना शुरू किया. एक साझात्कार में बताया, “जब मैंने पहाड़ी तोड़ना शुरू किया तो लोगों ने मुझे पागल कहा लेकिन इस बात ने मेरे निश्चय को और भी मजबूत किया. ”
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली में गॉल ब्लैडर के कैंसर से माँझी का 17 अगस्त 2007 को निधन हो गया. बिहार सरकार ने इनका राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया. बाद में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गहलौर में उनके नाम पर 3 किमी लंबी एक सड़क और हॉस्पिटल बनवाने का फैसला किया.
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