Friday 6 July 2018

प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट (पॉक्सो):

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प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट (पॉक्सो):


पॉक्सो एक्ट-2012 को बच्चों के प्रति यौन उत्पीड़न और यौन शोषण और पोर्नोग्राफी जैसे जघन्य अपराधों को रोकने के लिए, महिला और बाल विकास मंत्रालय ने बनाया था। वर्ष 2012 में बनाए गए इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा तय की गई है।

देश में बच्चियों के साथ बढ़ते यौन अपराधों को रोकने के लिए 'पॉक्सो ऐक्ट-2012' में संशोधन किया गया है, जिसके तहत अब 12 साल तक की बच्ची से रेप के दोषियों को मौत की सजा मिलेगी। सरकार की ओर से रखे गए इस प्रस्ताव को केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी अप्रैल 2018 में मिल गई है। अब सरकार इसके लिए अध्यादेश लाएगी।

पॉक्सो एक्ट की धारा 7 और 8 के तहत वो मामले पंजीकृत किए जाते हैं जिनमें बच्चों के गुप्तांग से छेडछाड़ की जाती है, इस धारा के आरोपियों पर दोष सिद्ध हो जाने पर 5 से 7 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।

पॉक्सो एक्ट की धारा 3 के तहत पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट को भी परिभाषित किया गया है। जिसमें बच्चे के शरीर के साथ किसी भी तरह की हरकत करने वाले शख्स को कड़ी सजा का प्रावधान है।

इस एक्ट को बनाना इसलिए भी जरूरी था क्योंकि बच्चे बहुत ही मासूम होते हैं और आसानी से लोगों के बहकाबे में आ जाते हैं। कई बार तो बच्चे डर के कारण उनके साथ हुए शोषण को माता पिता को बताते भी नही है।

पॉक्सो कनून के तहत सभी अपराधों की सुनवाई, एक विशेष न्यायालय द्वारा कैमरे के सामने बच्चे के माता पिता या जिन लोगों पर बच्चा भरोसा करता है, उनकी उपस्थिति में की कोशिश करनी चाहिए।

यदि अभियुक्त एक किशोर है, तो उसके ऊपर किशोर न्यायालय अधिनियम, 2000 (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) में मुकदमा चलाया जाएगा।

पोक्सो के अंतर्गत बच्चों के खिलाफ यौन अपराध के 6118 मामले 2012 से 2016 के बीच दर्ज किये गए हैं। इसमें 85% मामले अभी भी कोर्ट में लंबित पड़े हुए है जबकि अपराधी को सजा मिलने की दर सिर्फ 2% है जो कि किसी भी तरह से ठीक नही ठहराया जा सकता है।

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