Thursday, 26 July 2018

संरक्षणवाद से सामना

जोहानिसबर्ग में 10वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का आयोजन ऐसे समय में हो रहा है जब पूरा विश्व अमेरिकी संरक्षणवाद के खतरे का सामना कर रहा है। हर तरफ चिंता है कि विश्व व्यापार पर इसका क्या असर पड़ेगा? जाहिर है, अभी ब्रिक्स के सामने व्यापार युद्ध के असर से खुद को और पूरी दुनिया को बचाने की जिम्मेदारी है। हाल में ब्यूनस आयर्स में आयोजित जी-20 के वित्त मंत्रियों के सम्मेलन के बाद चीन ने ब्राजील, रूस, भारत और दक्षिण अफ्रीका से आग्रह किया था कि वे ट्रेड वॉर के खिलाफ एक
मोर्चा बनाकर उसकी धार पलटने का प्रयास करें। अभी चीन के खिलाफ खुलकर और भारत पर छिटपुट हमलों की शक्ल में अमेरिका का ट्रेड वॉर चल रहा है। रूस पर अमेरिका के कई तरह के प्रतिबंध पहले से ही जारी हैं। ब्राजील से अमेरिका का अच्छा व्यापारिक रिश्ता कभी रहा ही नहीं। देखना है, इस सम्मेलन में ब्रिक्स देश अमेरिका के इस आक्रामक रवैये को लेकर क्या रणनीति अपनाते हैं। दुनिया के कई और व्यापारिक ब्लॉक भी ब्रिक्स से उम्मीद लगाए बैठे हैं। यहां जो रणनीति बनेगी उसी के अनुरूप वे भी अमेरिका की संरक्षणवादी नीतियों के खिलाफ कदम उठाएंगे। इस दृष्टि से यह सम्मेलन काफी अहम हो गया है। आर्थिक मुद्दों के अलावा आतंकवाद को समाप्त करने में सभी देशों का सहयोग, संयुक्त राष्ट्र के ढांचे में सुधार, साइबर सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा और वैश्विक व क्षेत्रीय मुद्दों पर भी इस समिट में चर्चा होगी। 

भारत ने एक ब्रिक्स रेटिंग एजेंसी की स्थापना का प्रस्ताव रखा है। इस चिंता के तहत कि एस एंड पी, फिच और मूडीज जैसी आला अमेरिकी रेटिंग एजेंसियां विकासशील देशों के खिलाफ पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाती हैं। 2016 में भारत ने इस पर एक स्टडी भी पेश की थी पर अन्य सदस्य देशों ने ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया। इस बार भारत नए सिरे से इस मुद्दे को उठा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि ब्रिक्स आतंकवाद से लड़ने के लिए रणनीति बनाए। भारत के लिए यह बहुत बड़ा मुद्दा है। ब्रिक्स के सभी देश पूरी ताकत से मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादियों को मिलने वाले धन के खिलाफ संयुक्त कार्रवाई करें और साइबर स्पेस में कट्टरपंथी प्रभाव पर नजर रखें तो इससे आतंकवाद से संघर्ष में काफी सहायता मिलेगी। 2017 में चीन में आयोजित ब्रिक्स समिट में भारत को एक बड़ी कामयाबी मिली थी, जब इसके घोषणापत्र में पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद का नाम शामिल किया गया था। आशा है कि इस बार पिछली बार से कहीं ज्यादा जोरदार ढंग से खुली और समावेशी विश्व अर्थव्यवस्था की मांग दोहराई जाएगी और विश्व को दृढ़तापूर्वक यह संदेश दिया जाएगा कि कारोबार में सिर्फ अपना-अपना हित देखने के घातक प्रभाव होंगे। बहुध्रुवीय दुनिया का निर्माण ब्रिक्स के घोषित लक्ष्यों में एक है, लिहाजा एकाधिकारवादी प्रवृत्ति का मुकाबला तो उसे हर हाल में करना ही होगा।

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