Tuesday, 10 July 2018

आईपीसी की धारा 377 को अंसवैधानिक करार देने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों का संविधान पीठ 10 जुलाई 2018 से सुनवाई शुरू करेगा.

आईपीसी की धारा 377 को अंसवैधानिक करार देने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों का संविधान पीठ 10 जुलाई 2018 से सुनवाई शुरू करेगा.

चार प्रमुख मामलों को सुनने के लिए संविधान पीठ का पुनर्गठन:

•    भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को समलैंगिक यौन संबंध स्थापित करने को अपराध करार देती है.

•    पीठ केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 साल की उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध से जुड़े विवादित मुद्दे की भी सुनवाई करेगी.

•    पीठ भारतीय दंड संहिता की धारा 497 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली अर्जी पर भी सुनवाई करेगी.

•    संविधान पीठ उस याचिका पर भी सुनवाई करेगी जिसमें यह फैसला करना है कि किसी सांसद या विधायक के खिलाफ किसी आपराधिक मामले में आरोप - पत्र दायर करने के बाद उन्हें अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए या दोषी करार दिए जाने के बाद ही अयोग्य करार दिया जाना चाहिए.

नवगठित पांच सदस्यीय संविधान पीठ की अध्यक्षता प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा करेंगे और न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा इसके सदस्य होंगे.

पृष्ठभूमि:

दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2009 में अपने एक फैसले में कहा था कि आपसी सहमति से समलैंगिकों के बीच बने यौन संबंध अपराध की श्रेणी में नहीं होंगे. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को दरकिनार करते हुए समलैंगिक यौन संबंधों को आईपीसी की धारा 377 के तहत ‘अवैध' घोषित कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में समलैंगिकों के बीच यौन संबंधों को अपराध घोषित कर दिया था.

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद पुनर्विचार याचिकाएं दायर की गयीं और जब उन्हें भी खारिज कर दिया गया तो प्रभावित पक्षों ने सुधारात्मक याचिका (क्यूरेटिव पिटीशन) दायर की ताकि मूल फैसले का फिर से परीक्षण हो.

सुधारात्मक याचिकाओं के लंबित रहने के दौरान मांग की गयी कि खुली अदालत में इस मामले पर सुनवाई की मंजूरी दी जानी चाहिए और सुप्रीम कोर्ट जब इस पर राजी हुआ तो कई रिट याचिकाएं दायर कर मांग की गई की धारा 377 (अप्राकृतिक अपराध) को अपराध की श्रेणी से बाहर किया जाये.

  धारा-377 क्या है?

भारतीय दंड संहिता की धारा 377 अप्राकृतिक अपराध को संदर्भित करती है और कहती है कि जो भी स्वेच्छा से किसी भी पुरुष, महिला या पशु के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाता है, उसे आजीवन कारावास और जुर्माने की सजा सुनाई जा सकती है.

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