Tuesday, 19 June 2018

कुछ_हट_के =>ग्रीन बिल्डिंग : कार्बन उत्सर्जन कम करने का इनोवेटिव तरीका

#कुछ_हट_के
=>ग्रीन बिल्डिंग : कार्बन उत्सर्जन कम करने का इनोवेटिव तरीका

- औद्योगिकरण के दुष्परिणामों काे जानने के बाद लोग एनवायर्नमेंट फ्रेंडली हुए हैं। ऐसे में ग्रीन बिल्डिंग न केवल देश में बल्कि दुनियाभर की पहली पसंद बन चुकी है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत इस फेहरिस्त में नंबर 2 पर आ चुका है, जबकि अगले 2 सालों में एनवायर्नमेंट फ्रेंडली निर्माण 20 फीसदी की दर से ज्यादा होगा।
90% वक्त एक इंसान किसी बिल्डिंग के अंदर औसत रूप से गुजारता है। अंदरूनी हवा बाहर की तुलना में 5 फीसदी तक ज्यादा नुकसानदायक होती है।
ग्रीन बिल्डिंग निर्माण के दौरान
85% कम एनर्जी की खपत।
60% कम पानी की खपत।
69% कम वेस्ट निकलता है।

=>चार सालों में दोगुना होगा निर्माण
यूएस ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल (यूएसजीबीसी) की ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में आने वाले 2 सालों में ग्रीन बिल्डिंग इंडस्ट्री 20 फीसदी की दर से वृद्धि करेगी। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में वर्ष 2022 तक 10 अरब वर्गफीट का क्षेत्र ग्रीन बिल्डिंग कॉन्सेप्ट कर तैयार हो चुका होगा। 70 देशों पर किए गए इस सर्वे में सामने आया कि हर तीन वर्ष में ग्रीन बिल्डिंग का बाजार दोगुना होता जा रहा है।
- भारत में इससे संबंधित मटैरियल से जुड़ा बाजार वर्ष 2019 तक 234 अरब डॉलर होने की संभावना जताई जा रही है। वैश्विक स्तर पर इस समय करीब 75000 कमर्शियल प्रोजेक्ट इस दिशा में काम कर रहे हैं। जबकि भारत के 82.2 करोड़ वर्ग फीट हिस्से में 4300 प्रोजेक्ट ग्रीन बिल्डिंग कॉन्सेप्ट पर फिलहाल निर्माणरत हैं।

=>क्या है ग्रीन बिल्डिंग
40% बिजली की खपत और 24% कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन के लिए परंपरागत तरीके से निर्मित हो रहीं बिल्डिंग जिम्मेदार हैं। ऐसा मानना है अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का। ऐसे में अपने नाम के अनुरूप ग्रीन बिल्डिंग वह इमारतें हैं जो निर्माण के दौरान न केवल पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचाती हैं, बल्कि इन भवनों के निर्माण में साधारण भवनों की तुलना में कम पानी लगता है, प्राकृतिक ऊर्जा का ज्यादा उपयोग होता, प्राकृतिक संसाधनों की बचत होती है, कम से कम वेस्ट उत्पन्न होता है और रहने वालों को स्वस्थ वातावरण मिलता है। ग्रीन बिल्डिंग एक साधारण घर के मुकाबले 30 से 40 फीसदी बिजली की बचत करता है। वहीं, 30 से 70 फीसदी तक पानी की बचत भी करता है।

=>रेटिंग और लागत
भारत में दो रेटिंग सिस्टम हैं, जो किसी भी इमारत को ग्रीन रेटिंग देते हैं। पहला रेटिंग सिस्टम द लीडरशिप इन एनर्जी एंड एन्वायरमेंटल डिजाइन (लीड) कहलाता है, जो इंडियन ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल (आईजीबीसी) द्वारा प्रमोट किया जाता है। आईजीबीसी एक इंडस्ट्री लॉबी ग्रुप है।
-  दूसरा है द ग्रीन रेटिंग फॉर इंटीग्रेटेड हैबिटेट एसेसमेंट (ग्रिहा)। इस सिस्टम को दिल्ली स्थित नॉन प्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशन, द एनर्जी एंड रिसोर्सेस इंस्टीट्यूट (टेरी) व यूनियन मिनिस्ट्री ऑफ न्यू एंड रीन्यूएबल एनर्जी (एमएनआरई) ने संयुक्त रूप से विकसित किया है। यह रेटिंग सिस्टम एक किस्म से बेंचमार्क है।
- भारत में ग्रीन बिल्डिंग्स की शुरुआत 2001 में हैदराबाद के सीआईआई -सोहराबजी गोदरेज ग्रीन बिजनेस सेंटर के निर्माण के साथ हुई थी। शुरुआत में ग्रीन बिल्डिंग्स की लागत आम बिल्डिंग्स के मुकाबले करीब 18 फीसदी ज्यादा थी लेकिन, टेक्नोलॉजी के बेहतर इस्तेमाल से अब यह अंतर महज 5% तक रह गया है।
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