10 नदियां समुद्री कचरे के लिए जिम्मेदार , चीन की यांग्त्जे पहली, गंगा दूसरी
दिल्ली. दुनियाभर के वैज्ञानिक इस सवाल का जवाब खोजने में लगे हैं कि समंदरों में प्लास्टिक का कचरा कैसे बढ़ रहा है.
इसका जवाब हाल में हुए एक अध्ययन से मिल गया है. पता चला है कि दुनियाभर के समंदरों में मिल रहे कचरे के लिए 10 नदियां ही सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं. इनमें चीन की यांग्त्जे नदी पहले नंबर पर है. यांग्त्जे चीन की सबसे लंबी नदी है. दूसरे पायदान पर भारत की गंगा नदी है. समंदरों में जो प्लास्टिक कचरा मिल रहा है, उसका करीब 90% इन 10 नदियों से ही आ रहा है. बड़ी बात तो ये है कि इन 10 में से 8 नदियां तो एशिया की ही हैं. यांग्त्जे और गंगा के अलावा इस लिस्ट में सिंधु (तिब्बत और भारत), येलो (चीन), पर्ल (चीन), एमर (रूस और चीन), मिकांग (चीन) और दो अफ्रीका की नाइल और नाइजर नदियां शामिल हैं. हर साल करीब 80 लाख टन कचरा समंदरों में मिल रहा है. रिसर्चर डॉ. क्रिश्चियन स्कीमिट ने बताया कि ज्यादातर कचरा नदी के किनारों की वजह से होता है, जिसका निपटारा नहीं हो पाता है और वह बहता हुआ समंदरों में आ जाता है. ये भी देखने में आया कि बड़ी नदियों के प्रति घन मीटर पानी में जितना कचरा रहता है, उतना छोटी नदियों में नहीं रहता है. एशिया की सबसे लंबी और दुनिया में इकोलॉजी के लिहाज से महत्वपूर्ण नदियों में से एक यांग्त्जे के आसपास चीन की एक तिहाई आबादी यानी 50 करोड़ से ज्यादा लोग बसते हैं. यही समंदर में सबसे ज्यादा कचरा ले जा रही है. चीन ने रिसाइकलेबल वेस्ट का पहले खूब आयात किया, पर बाद में सरकारी नीतियों के कारण यह रुक गया. विदेशी कचरे पर रोक में सबसे पहले धातु के कचरे पर रोक लगाई गई है. इस वर्ष चीन ने 46 शहरों में कचरे को काबू करने का निर्देश दिया है. इसके कारण अगले दो साल में 35% कचरा रिसाइकल हो चुका होगा. संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण कार्यक्रम के प्रमुख एरिक सोलहेम का कहना है- चीन में दुनिया का सबसे ज्यादा प्लास्टिक कचरा होता है. प्लास्टिक कचरा ले जाने में गंगा दुनिया में दूसरे स्थान पर है, जबकि सिंधु नदी छठे स्थान पर आती है. कुछ साल पहले सरकार ने गंगा की सफाई के लिए नमामि गंगे प्रोजेक्ट शुरू किया था, पर हाल ही में एनजीटी ने दो टूक कहा है कि गंगा की एक भी बूंद साफ नहीं हो सकी है. ट्रिब्यूनल ने दिल्ली में हाल ही में डिस्पोसेबल प्लास्टिक पर भी रोक लगा दी है.
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