देश की सभी अदालतों में यौन उत्पीड़न निरोधक समितियां गठित की जायें: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने देश की सभी अदालतों में दो महीने के भीतर यौन उत्पीड़न निरोधक समितियां गठित करने का निर्देश दिया है. शीर्ष कोर्ट ने कहा है कि हाई कोर्ट निर्धारित अवधि के भीतर अपने यहां और अधीनस्थ न्यायालयों में यौन उत्पीड़न निरोधक समितियां गठित करना सुनिश्चित करें.
इन समितियों का गठन कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध एवं निवारण) अधिनियम 2013 के आधार पर करने का निर्देश दिया गया है.
सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
• मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक महिला वकील की याचिका का निस्तारण करते हुए उपरोक्त निर्देश दिया.
• अपनी याचिका में महिला वकील ने आरोप लगाया है कि हड़ताल के दौरान कुछ वकीलों ने दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में उनके साथ बदसलूकी की.
• मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा , न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने तीस हजारी अदालत की महिला वकील और बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों से कहा कि वे अपने विवाद मिलजुल कर सुलझायें.
• सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट की कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल से आग्रह किया है कि वह उच्च न्यायालय और राष्ट्रीय राजधानी की सभी जिला अदालतों में यौन उत्पीड़न निरोधक समितियों का गठन एक हफ्ते में करें.
कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध एवं निवारण) अधिनियम, 2013
• वर्ष 2013 में कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न अधिनियम को पारित किया गया था. यह अधिनियम उन संस्थाओं पर लागू होता है जिन में दस से अधिक लोग काम करते हैं.
• यह क़ानून कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को अवैध करार देता है. यह क़ानून यौन उत्पीड़न के विभिन्न प्रकारों को चिह्नित करता है, और यह बताता है कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की स्थिति में शिकायत किस प्रकार की जा सकती है.
• इस अधिनियम के अनुसार अश्लील तस्वीरें, फिल्में या अन्य अश्लील सामग्री दिखाना, असहज प्रकार से छूना आदि यौन उत्पीड़न है.
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