Monday, 21 August 2017

मौलिक अधिकारों का अर्थ- UPSC Aspirants Only

GO BACK HOME



मौलिक अधिकारों का अर्थ
मौलिक अधिकार उन अधिकारों को कहा जाता है जो व्यक्ति के जीवन के लिये मौलिक होने के कारण संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किये जाते हैं और जिनमें राज्य द्वार हस्तक्षेप नही किया जा सकता। ये ऐसे अधिकार हैं जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिये आवश्यक हैं और जिनके बिना मनुष्य अपना पूर्ण विकास नही कर सकता। ये अधिकार कई करणों से मौलिक हैं:-
1. इन अधिकारों को मौलिक इसलिये कहा जाता है क्योंकि इन्हे देश के संविधान में स्थान दिया गया है तथा संविधान में संशोधन की प्रक्रिया के अतिरिक्त उनमें किसी प्रकार का संशोधन नही किया जा सकता।
2. ये अधिकार व्यक्ति के प्रत्येक पक्ष के विकास हेतु मूल रूप में आवश्यक हैं, इनके अभाव में व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास अवरुद्द हो जायेगा।
3. इन अधिकारों का उल्लंघन नही किया जा सकता।
4. मौलिक अधिकार न्याय योग्य हैं तथा समाज के प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से प्राप्त होते है।
साधारण कानूनी अधिकारों को राज्य द्वारा लागू किया जाता है तथा उनकी रक्षा की जाती है जबकि मौलिक अधिकारों को देश के संविधान द्वारा लागू किया जाता है तथा संविधान द्वारा ही सुरक्षित किया जाता है।

Some Important Link-

वर्ष 2017 के करेंट अफेयर से कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न - यूपीएससी हेतु

IAS की परीक्षा मे पूछे गये 100 प्रश्नो का संग्रह

राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार प्राप्त खिलाड़ियों की सूची (1991 से 2017 तक)


साधारण कानूनी अधिकारों में विधानमंडल द्वारा परिवर्तन किये जा सकते हैं परंतु मौलिक अधिकारों में परिवर्तन करने के लिये संविधान में परिवर्तन आवश्यक हैं।
भारतीय संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों का वर्णन संविधान के तीसरे भाग में अनुच्छेद 12 से 35 तक किया गया है। इन अधिकारों में अनुच्छेद 12, 13, 33, 34 तथा 35 क संबंध अधिकारों के सामान्य रूप से है। 44 वें संशोधन के पास होने के पूर्व संविधान में दिये गये मौलिक अधिकारों को सात श्रेणियों में बांटा जाता था परंतु इस संशोधन के अनुसार संपति के अधिकार को सामान्य कानूनी अधिकार बना दिया गया। भारतीय नागरिकों को छ्ह मौलिक अधिकार प्राप्त है :-
1. समानता का अधिकार : अनुच्छेद 14 से 18 तक।
2. स्वतंत्रता का अधिकार : अनुच्छेद 19 से 22 तक।
3. शोषण के विरुध अधिकार : अनुच्छेद 23 से 24 तक।
4. धार्मिक स्वतंत्रता क अधिकार : अनुच्छेद 25 से 28 तक।
5. सांस्कृतिक तथा शिक्षा सम्बंधित अधिकार : अनुच्छेद 29 से 30 तक।
6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार : अनुच्छेद 32

मूल अधिकार एक दृष्टि में


मूल अधिकार साधारण
अनुच्छेद 12 (परिभाषा)
अनुच्छेद 13 (मूल अधिकारों से असंगत या उनका अल्पीकरण करने वाली विधियां।)

समता का अधिकार

Some Important Links-

भारत की प्रमुख स्वतंत्र संस्थाओं के नाम और वर्तमान अध्यक्षों की सूची

जैन धर्म का इतिहास


अनुच्छेद 14 (विधि के समक्ष समता)
अनुच्छेद 15 (धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध)
अनुच्छेद 16 (लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता)
अनुच्छेद 17 (अस्पृश्यता का अंत)
अनुच्छेद 18 (उपाधियों का अंत)

स्वातंत्रय–अधिकार
अनुच्छेद 19 (वाक्–स्वातंत्र्य आदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण)
अनुच्छेद 20 (अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण)
अनुच्छेद 21 (प्राण और दैहिक स्वतन्त्रता का संरक्षण)

शोषण के विरूद्ध अधिकार

अनुच्छेद 23 (मानव के दुर्व्यापार और बलात्श्रय का प्रतिषेध)
अनुच्छेद 24 (कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध)

धर्म की स्वतन्त्रता का अधिकार

अनुच्छेद 25 (अंत: करण की और धर्म के अबोध रूप में मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता)
अनुच्छेद 26 (धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता)
अनुच्छेद 27 (किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि के लिए करांे के संदाय के बारे में स्वतंत्रता)
अनुच्छेद 28 (कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्वतंत्रता)

संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार

अनुच्छेद 29 (अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण)
अनुच्छेद 30 (शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करनेका अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार)
अनुच्छेद 31 (निरसति)

Some Important Link-

भारतीय खेल और खेलों में प्रथम भारतीय पर आधारित महत्वपूर्ण सामान्य ज्ञान

प्रमुख स्थानीय पवनें, प्रकृति एवं उनके स्थान की सूचीl

*भारतीय नदी(INDIAN RIVERS)* l

कुछ विधियों की व्यावृत्ति

अनुच्छेद 31क (संपदाओं आदि के अर्जन के लिए उपबंध करने वाली विधियों की व्यावृत्ति)
अनुच्छेद 31ख (कुछ अधिनियमों और विनिमयों का विधिमान्यकरण)
अनुच्छेद 31ग (कुछ निदेशक तत्वों को प्रभावी करने वाली विधियों की व्यावृत्ति)
अनुच्छेद 31घ (निरसित)
सांविधानिक उपचारों का अधिकार
अनुच्छेद 32 (इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को प्रवर्तित करने के लिए उपचार)
अनुच्छेद 32क (निरसति) ।
अनुच्छेद 33 (इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों का, बलों आदि को लागू होने में, उपांतरण करने की संसद की शक्ति)
अनुच्छेद 34 (जब किसी क्षेत्र में सेना विधि प्रवृत्त है तब इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों का निर्बधन
अनुच्छेद 35 (इस भाग के उपबंधों को प्रभावी करने के लिए विधान)

Also Read- विश्व 1919 से 1939 तक पर आधारित सामान्य ज्ञान प्रश्न और उतर

No comments: