Monday 19 April 2021

UNFPA की जनसंख्या रिपोर्ट

संदर्भ:

हाल ही में, ‘संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष’ (United Nations Population Fund / UNFPA) द्वारा ‘मेरा शरीर मेरा अपना है’ (My Body is My Own) नामक शीर्षक से अपनी प्रमुख ‘विश्व जनसँख्या स्थिति रिपोर्ट’ (State of World Population Report)- 2021 जारी की गई है।

पहली बार संयुक्त राष्ट्र की किसी रिपोर्ट में ‘दैहिक / शारीरिक स्वायत्तता’ (Bodily Autonomy) पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

‘दैहिक स्वायत्तता’ क्या है?

रिपोर्ट में ‘दैहिक या शारीरिक स्वायत्तता’ को, बगैर किसी हिंसा के डर से अथवा आपके निर्णय किसी अन्य के द्वारा किए जाने के बिना, आपकी देह अथवा शरीर के बारे में स्वयं विकल्प चुनने की शक्ति तथा अभिकरण के रूप में परिभाषित किया गया है।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:

  • 57 विकासशील देशों की लगभग आधी महिलाओं को अपने शरीर के संबंध में निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। ये महिलाएं, गर्भनिरोधक का उपयोग करने, स्वास्थ्य-देखभाल की मांग करने, और यहाँ तक अपनी काम—वासना के संबंध में भी खुद निर्णय नहीं ले सकती है।
  • जिन देशों में आँकड़े उपलब्ध है, उनमे केवल 55% महिलाओं को स्वास्थ्य सेवा, गर्भनिरोधक का उपयोग करने और सेक्स के लिए हां या ना कहने का विकल्प चुनने के लिए पूरा अधिकार हासिल है।
  • केवल 75% देशों में गर्भनिरोधक के लिए पूर्ण और समान पहुंच कानूनी रूप से सुनिश्चित की गयी है।
  • दुनिया भर में अधिकांश महिलाएं ‘शारीरिक स्वायत्तता के मौलिक अधिकार’ से वंचित कर दी जाती है, कोविड-19 महामारी के कारण इनके हालात और ख़राब हुए हैं।

रिपोर्ट में भारत संबंधी तथ्य:

  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत के, ‘राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण’ (National Family Health Survey)- 4 अर्थात  NFHS -4 (2015-2016) के अनुसार, वर्तमान में केवल 12% विवाहित महिलाएं (15-49 वर्ष आयु वर्ग) अपनी स्वास्थ्य-देखभाल के बारे में स्वतंत्र रूप से निर्णय लेती हैं।
  • इसी आयुवर्ग की 63% विवाहित महिलाएं, इस संबंध में अपने जीवनसाथी के परामर्श से निर्णय लेती हैं।
  • एक चौथाई महिलाओं (23%) के जीवनसाथी, मुख्य रूप से उनकी स्वास्थ्य-देखभाल के बारे में निर्णय लेते हैं।
  • केवल 8% विवाहित महिलाएं (15-49 वर्ष आयुवर्ग) गर्भनिरोधक के उपयोग पर स्वतंत्र रूप से निर्णय लेती हैं, जबकि 83% महिलाओं द्वारा अपने जीवनसाथी के साथ मिलकर निर्णय लिए जाते हैं।
  • महिलाओं को गर्भनिरोधक के उपयोग के बारे में दी गई जानकारी भी सीमित होती है।
  • गर्भनिरोधक का उपयोग करने वाली केवल 47% महिलाओं को इस विधि के दुष्प्रभावों के बारे में बताया गया, और मात्र 54% महिलाओं को अन्य गर्भ निरोधक उपायों के बारे में जानकारी प्रदान की गई।

रिपोर्ट में प्रयुक्त की गई कार्यप्रणाली:

‘दैहिक स्वायत्तता’ के संदर्भ में महिलाओं की पहुँच, रिपोर्ट के निम्नलिखित तथ्यों के आधार पर मापी जाती है:

  • उनकी प्रजनन संबंधी स्वास्थ्य-देखभाल, गर्भनिरोधक उपयोग और यौन संबंधों के बारे में अपने निर्णय लेने की उनकी शक्ति; तथा
  • इन फैसलों को लेने संबंधी महिलाओं के अधिकार में किसी देश के द्वारा कानूनी सहयोग अथवा हस्तक्षेप की सीमा।

‘संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष’ (UNFPA) के बारे में:

UNFPA, ‘संयुक्त राष्ट्र की यौन और प्रजनन स्वास्थ्य संस्था’ (United Nations sexual and reproductive health agency) है।

  • इस संस्था का गठन वर्ष 1969 में किया गया था, इसी वर्ष संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा घोषणा की गई थी कि ‘माता-पिता को स्वतंत्र रूप से और जिम्मेदारी पूर्ण तरीके से अपने बच्चों की संख्या और उनके बीच अंतर को निर्धारित करने का विशेष अधिकार है।”
  • UNFPA का लक्ष्य, एक ऐसी दुनिया का निर्माण करना है, जिसमे प्रत्येक गर्भ को स्वीकार किया जाए, प्रत्येक प्रसव सुरक्षित हो तथा हर युवा की संभाव्यतायें पूरी होती है।

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