Friday, 1 January 2021

न्यायाधीशों का सुनवाई से इनकार

 

न्यायाधीशों का सुनवाई से इनकार


(Recusal of Judges)

संदर्भ:

हाल ही में, आंध्र उच्च न्यायालय द्वारा ‘आंध्रप्रदेश निर्माण मिशन’ (Mission Build A.P) के तहत गुंटूर और विशाखापत्तनम जिले में सरकारी भूमि की प्रस्तावित बिक्री के खिलाफ दायर याचिकाओं की सुनवाई के लिए न्यायाधीश को सुनवाई से अलग करने संबंधी याचिका को खारिज कर दिया गया है।

‘न्यायिक निरर्हता’ अथवा ‘सुनवाई से इंकार’ का तात्पर्य:

किसी पीठासीन न्यायायिक अधिकारी अथवा प्रशासनिक अधिकारी द्वारा हितों के टकराव के कारण किसी न्यायिक सुनवाई अथवा आधिकारिक कार्रवाई में भागीदारी से इंकार करने को न्यायिक निरर्हता (Judicial disqualification), ‘सुनवाई से इंकार’ करना अथवा ‘रिक्युजल’ (Recusal) कहा जाता है।

‘सुनवाई से इंकार’ करने हेतु सामान्य आधार:

किसी न्यायाधीश अथवा अन्य निर्णयकर्ता को किसी मामले की सुनवाई से अलग करने हेतु विभिन्न आधारों पर प्रस्ताव पेश किया जाता है।

इन प्रस्तावों में सुनवाई हेतु नियुक्त न्यायाधीश को निम्नलिखित अन्य आधारों पर भी चुनौती दी जाती है:

  1. किसी तर्कशील निष्पक्ष पर्यवेक्षक को लगता है कि, न्यायाधीश किसी एक पक्षकार के प्रति सद्भाव रखता है, अथवा अन्य पक्षकार के प्रति द्वेषपूर्ण है, अथवा न्यायाधीश किसी के प्रति पक्षपाती हो सकता है।
  2. न्यायाधीश का मामले में व्यक्तिगत हित है अथवा वह मामले में व्यक्तिगत हित रखने वाले किसी व्यक्ति से संबंध रखता है।
  3. न्यायाधीश की पृष्ठभूमि अथवा अनुभव, जैसे कि न्यायाधीश के वकील के रूप में किये गए पूर्व कार्य।
  4. मामले से संबंधित तथ्यों अथवा पक्षकारों से व्यक्तिगत तौर पर परिचय।
  5. वकीलों या गैर-वकीलों के साथ एक पक्षीय संवाद।
  6. न्यायाधीशों के अधिनिर्णय, टिप्पणियां अथवा आचरण।

इस संबंध में क़ानून

न्यायाधीशों द्वारा ‘सुनवाई से इंकार’ करने संबंधी कोई निश्चित नियम निर्धारित नहीं हैं।

हालाँकि, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों द्वारा पद की शपथ लेने के समय, न्याय करने हेतु ‘बिना किसी डर या पक्षपात, लगाव या वैमनस्य के’ अपने कर्तव्यों को निभाने का वादा किया जाता है ।

सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी

जस्टिस जे चेलमेश्वर ने सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ (2015) मामले में अपनी राय दी थी कि ’जहां भी किसी न्यायाधीश के आर्थिक हित प्रतीत होते है, वहां पक्षपात संबंधी किसी ‘वास्तविक खतरे’ अथवा ‘तर्कपूर्ण संदेह’ की जांच की आवश्यकता नहीं है।

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