Monday 24 February 2020

थायराइड

#थायराइड

●  *परिचय* :  जब यह रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो उसकी थाइराइड ग्रन्थि में वृद्धि हो जाती है। जिसके कारण शरीर के कार्यकलापों में बहुत अधिक परिवर्तन आ जाता है। यह रोग स्त्रियों में अधिक होता है। यह रजोनिवृति के समय, शारीरिक तनाव, गर्भावस्था के समय, यौवन प्रवेश के समय बहुत अधिक प्रभाव डालता है।

● *थाइराइड रोग निम्न प्रकार का होता है-*

● *थायराइड का बढ़ना-* इस रोग के होने पर थायराइड ग्रन्थि द्वारा ज्यादा हारमोन्स स्राव होने लगता है।

● *थायराइड के बढ़ने के लक्षण*: इस रोग से पीड़ित रोगी का वजन कम होने लगता है। शरीर में अधिक कमजोरी होने लगती है, गर्मी सहन नहीं होती है, शरीर से अधिक पसीना आने लगता है, अंगुलियों में अधिक कंपकपी होने लगती है तथा घबराहट होने लगती है। इस रोग के कारण रोगी का हृदय बढ़ जाता है, रोगी व्यक्ति को पेशाब बार-बार आने लगता है, याददाश्त कमजोर होने लगती है, भूख नहीं लगती है तथा उच्च रक्तचाप का रोग हो जाता है। कई बार तो इस रोग के कारण रोगी के बाल भी झड़ने लगते हैं। इस रोग के हो जाने पर स्त्रियों के मासिकधर्म में गड़बड़ी होने लगती है।

● *थाइराइड का सिकुड़न*-इस रोग के हो जाने पर थाइराइड ग्रन्थि के द्वारा कम हारमोन बनने लगते हैं।

● *थाइराइड के सिकुड़ने के लक्षण*:  इस रोग के होने पर रोगी व्यक्ति का वजन बढ़ने लगता है तथा उसे सर्दी लगने लगती है। रोगी के पेट में कब्ज बनने लगती है, रोगी के बाल रुखे-सूखे हो जाते हैं। इसके अलावा रोगी की कमर में दर्द, नब्ज की गति धीमी हो जाना, जोड़ों में अकड़न तथा चेहरे पर सूजन हो जाना आदि लक्षण प्रकट हो जाते हैं।

● *घेँघा (गलगंड)*- इस रोग के कारण थाइराइड ग्रन्थि में सूजन आ जाती है तथा यह सूजन गले पर हो जाती है। इस रोग से पीड़ित रोगी के गले पर कभी-कभी यह सूजन नज़र नहीं आती है लेकिन त्वचा पर यह महसूस की जा सकती है।

● *घेघा (गलगंड) रोग होने के लक्षण*:-

इस रोग से पीड़ित रोगी की एकाग्रता शक्ति (सोचने की शक्ति) कमजोर हो जाती है। रोगी को आलस्य आने लगता है तथा उसे उदासी भी हो जाती है। रोगी व्यक्ति चिड़चिड़ा हो जाता है, मानसिक संतुलन खो जाता है और वजन भी कम होने लगता है। किसी भी कार्य को करने में रोगी का मन नहीं करता है। धीरे-धीरे शरीर के भीतरी भागों में रुकावट आने लगती है।

● *थाइराइड रोग होने का कारण*:-

यह रोग अधिकतर शरीर में आयोडीन की कमी के कारण होता है।
यह रोग उन व्यक्तियों को भी हो जाता है जो अधिकतर पका हुआ भोजन करते हैं तथा प्राकृतिक भोजन बिल्कुल नहीं करते हैं। प्राकृतिक भोजन करने से शरीर में आवश्यकतानुसार आयोडीन मिल जाता है लेकिन पका हुआ खाने में आयोडीन नष्ट हो जाता है।
मानसिक तनाव, भावनात्मक तनाव, गलत तरीके से खान-पान तथा दूषित भोजन का सेवन करने के कारण भी यह रोग हो सकता है।

★ *उपचार* ★                              

● *थाइराइड ग्रंथी बढ़ जाए, उसकी क्रिया उच्च या निम्न हो जाए तो दो चम्मच सूखा साबुत धनिया एक गिलास पानी में तेज उबालकर छानकर  सुबह शाम दो बार नित्य पिलाने से लाभ होता है। 2 सप्ताह लेकर देखें। लाभ होने पर कुछ दिन और लें। साथ ही 1 घंटे का अंतर देकर एक मुनक्का रात में भीगी हुई एक बादाम तथा एक काली मिर्च इन तीनों को खूब चबा - चबाकर दिन में 1 बार खाएं। चबाने में असमर्थ हैं तो बारीकतम पीसकर चाट लें।*          

इसके  अतिरिक्त सिंहासन दिन में दो बार करने से थायराइड की समस्या में बहुत लाभ होता है। कपालभाती प्राणायाम और उज्जायी प्राणायाम के नियमित अभ्यास करने से हाइपोथायरॉइड तथा हाइपरथायरायड दोनों पूरी तरह ठीक होते हैं।                                

आसन एवं प्राणायाम किसी योग शिक्षक की देखरेख में करें।

              
● *थायराइड ग्रंथि के अतिस्त्राव से उत्पन्न अनिद्रा घबराहट अथवा कंपन* जैसी उत्तेजनापूर्ण स्थिति शांत करने में शंखपुष्पी का प्रयोग अत्यंत सफल सिद्ध हुआ है। स्त्राव संतुलन बनाए रखना इस ओषधी का प्रमुख कार्य है। शंखपुष्पी सीधे थायराइड की कोशिकाओं पर प्रभाव डाल कर स्त्राव का नियमन करती है तथा साथ ही एलोपैथिक एंटीथायराइड दवा के सेवन से उत्पन्न दुष्प्रभाव को भी यह दूर करने में सक्षम है।

 शंखपुष्पी का प्रयोग दिमागी ताकत, याददाश्त बढ़ाने, अनिद्रा, उन्माद, भृम आदि को नष्ट करने में लाभदायक सिद्ध होता है। इसका महीन पिसा हुआ चूर्ण 1-1 चम्मच सुबह - शाम मीठे दूध के साथ या मिश्री की चाशनी के साथ सेवन करना चाहिए।

● *थायराइड में पथ्य(क्या खाएं)* - सेब, मौसमी, संतरा, आंवला, जामुन, अनार, अमरूद, अनानास सिंघाडा, मुलहठी, बहेड़ा, त्रिफला, त्रिकुटा, करेला  मूली, गाजर, टमाटर, पालक, आलू, मटर, प्याज, ककड़ी, टिंडा, परवल, दूध, दही, छाछ, पनीर आदि। ज्यादा आयोडीन वाले पदार्थ जैसे सिंघाड़ा विशेष रूप से सेवनीय है।
 
● *अपथ्य (क्या न खाएं)* - तले, खट्टे और ज्यादा ठंडे पदार्थ, सभी प्रकार के बोतलबंद ठंडे पेय, सीताफल, अधिक मात्रा में आम, मूंगफली के लाल छिलके, सुपारी की ऊपरी परत, काजू, शराब, धूम्रपान तथा नशीले व सिंथेटिक और कृत्रिम पदार्थ।

✍️ योग से निरोग

"करें योग, रहें निरोग "

No comments: