Thursday 20 February 2020

प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक और उनके आविष्कार

#_प्रसिद्ध_भारतीय_वैज्ञानिक_और_उनके_आविष्कार

#_डॉ_सी_वी_रमन
चंद्र्शेखार वेंकटरमन का जन्म 7 नवंबर 1888 में हुआ, तथा उनका निधन 21 नवंबर 1970 में हुआ था। ये भारतीय भौतिकशास्त्री थे। उनका अविष्कार उनके ही नाम पर रमन प्रभाव के नाम से जाना जाता है। इन्होने इस खोज की घोषणा 29 फरवरी 1928 ई को की। प्रकाश के प्रकीर्णन पर उत्कृष्ट कार्य के लिए वर्ष 1930 में उन्हें भौतिकी पर प्रतिष्ठित #_नोबेल_पुरस्कार दिया गया। 

1954 ई में उन्हें भारत सरकार द्वारा #_भारत_रत्न की उपाधि से विभूषित किया गया तथा 1957 में #_लेनिन_शांति_पुरस्कार प्रदान किया गया था।

#_डॉ_ए_पी_जे_अब्दुलकलाम

भारत के पूर्व राष्ट्रपति एवं भारत रत्न डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम #_मिसाइल_मैंन ' के नाम से जाने जाते है। 
1962 में वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में शामिल हुए। 

डॉ. कलाम को प्रोजेक्ट डायरेक्टर के रूप में भारत का पहला स्वदेशी उपग्रह ( एस. एल. वी. -3 )प्रक्षेपात्र बनाने का श्रेय प्राप्त है।

 1980 में कलाम ने रोहणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया था और इन्ही के प्रयासों की वजह से भारत भी अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष क्लब का सदस्य बन सका। 
इसरो लांच व्हीकल प्रयोग को परवान चढ़ाने का श्रेय भी इन्हे ही प्रदान किया जाता है। 
डॉ. कलाम ने स्वदेशी लक्ष्य भेदी (गाइडेड मिसाइल )को डिजाइन किया। ख़ास बात यह है की इन्होने अग्नि एवं पृथ्वी जैसी मिसाइलों को स्वदेशी तकनीक से बनाया।
1997 मे भारत रत्न दिया गया 

#_विक्रम_साराभाई

विक्रम अम्बालाल साराभाई भारत के अंतरिक्ष इतिहास के जनक  
इन्होने भारत के अंतरिक्ष प्रोग्राम की नीव रखी। उन्होंने देश में 40 अंतरिक्ष और शोध से जुड़े संस्थानों को खोला। उन्होंने आणविक ऊर्जा ,इलेक्ट्रॉनिक और अन्य अनेक क्षेत्रों में भी बराबर का योगदान किया। 
गुजरात के अहमदाबाद से आने वाले साराभाई पर तिरुवनंतपुरम में स्थापित थुम्बा इक्वटोरियल रॉकेट लांचिंग स्टेशन और संबध अंतरिक्ष संस्थानो का नाम बदलकर विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र रख दिया गया। यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के एक प्रमुख अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र के रूप में उभरा।

#_डॉ_जगदीश_चंद्र_बोस

डॉ. जगदीश चंद्र बोस को सर बोस भी कहा जाता था। उन्हें भौतिकी ,जीव विज्ञान ,वनस्पति विज्ञान तथा पुरातत्व का गहन ज्ञान था। 
वे दुनिया के पहले ऐसे वैज्ञानिक थे जिन्होंने रेडिओ और सूक्ष्म तरंगो की प्रकाशिकी का कार्य किया। वे भारत के पहले वैज्ञानिक थे जिन्हे अमेरिकी पेटेंट मिला। पूरी दुनिया में उन्हें रेडिओ विज्ञान का पिता कहा जाता है। इन्होने बेतार के संकेत भेजने में असाधारण प्रगति की और सबसे पहले रेडिओ संदेशो के आदान -प्रदान के लिए अर्द्ध चालकों का प्रयोग प्रारम्भ किया। इन्होने वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में क्रेस्कोग्राफ का अविष्कार किया और इससे विभिन्न उत्तेजको के प्रति पौधो की प्रतिक्रिया का अध्ययन किया जा सकता है।

#_डॉ_होमी_जहाँगीर_भाभा

डॉ होमी जहाँगीर भाभा के बिना भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की कल्पना भी नहीं की जा सकती। उन्हें आर्किटेक्ट ऑफ़ इंडियन एटॉमिक एनर्जी प्रोग्राम भी कहा जाता है। डॉ होमी जहाँगीर भाभा 1947 में भारत सरकार द्वारा गठित परमाणु ऊर्जा आयोग के प्रथम अध्यक्ष नियुक्त हुए तथा 1953 में जेनेवा में संपन्न विश्व परमाण्विक वैज्ञानिक महासम्मेलन की अध्यक्षता की। उन्ही के कारण 1974 में देश पहला परमाणु परीक्षण करने में सफल रहा। उन्होंने एक तरह से देश को परमाणु शक्ति सम्पन्न बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चौकाने वाली बात यह थी की उन्होंने नाभिकीय विज्ञान में तब कार्य आरम्भ किया , जब इसके बारे में ज्ञान न के बराबर था जबकि उनकी नाभिकीय ऊर्जा से विद्द्युत उतपादन की कल्पना को तो कोई मानने को तैयार नहीं था।

#_सत्येन्द्रनाथ_बोस

इस महान भारतीय वैज्ञानिक की महानता का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है की भौतिकशास्त्र में #_बोसान_और_फर्मियान नाम के दो अणुओ में से से बोसान सत्येन्द्रनाथ बोस के नाम पर ही है। उन्होंने अपने समय के महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन के साथ मिलकर बोस -आइंस्टीन स्टैटिस्टिक्स की खोज की। हिग्स - बोसॉन ,
जिसे गॉड पाटिकल की संज्ञा दी जाती है ,का विचार इन्होने पीटर हिग्स के साथ दिया।

#_डॉ_शांतिस्वरूप_भटनागर

डॉ. शांति स्वरुप भटनागर का जन्म 1894 में शाहपुर पकिस्तान में हुआ था। 1941 में ब्रिटिश सरकार ने इन्हे नाइट हुड की उपाधि दी। इनके शोध विषय में एमल्ज़न कोलाइड्स एवं ओद्योगिक रसायनशास्त्र थे किन्तु प्रमुख योगदान चुंबकीय रसायनकी के क्षेत्र में था। 1947 में भारतीय स्वतंत्रता के उपरान्त वैज्ञानिक एवं अनुसंधान परिषद (सी. एस. आई. आर. )की स्थापना डॉ. शांति स्वरुप भटनागर की अध्यक्षता में की की गई। इन्हे शोध प्रयोगशाला का जनक भी कहा जाता है। इनकी मृत्यु के पश्चात् सी.एस.आई.आर. ने राष्ट्रीय पुरस्कार की शुरुआत की।

#_बीरबल_साहनी

बीरबल साहनी का जन्म नवंबर 1891 में शाहपुर पकिस्तान में हुआ था। इनके पिता रुचिराम साहनी ने कैम्ब्रिज के प्रोफ़ेसर अर्नेस रदरफोर्ड एवं कोपेनहेगन के नाइल्स बोर के साथ रेडिओ सक्रियता पर शोध कार्य किया। इसी से प्रेरणा लेकर बीरबल लन्दन एवं कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से डीएससी की उपाधि प्राप्त की। इनके अनुसंधान में जीव विज्ञान तथा जीवाश्म की अधिकता है।

#_बेंकटरमन_रामकृष्णन

तमिलनाडु के चिदंबरम जिले से आने वाले भारतीय मूल के वेंकटरमन रामकृष्ण को 2009 में रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार दिया गया। रामन को यह पुरस्कार कोशिका के अंदर प्रोटीन का निर्माण करने वाले
राइबोसोम की कार्य प्रणाली व संरचना के उत्कृष्ट अध्ययन के लिए दिया गया।

#_सुब्रह्ण्यम_चंद्रशेखर

सुब्रह्ण्यम चंद्रशेखर को 1983 में भौतिकशास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया। डॉ. सुब्रहण्यम चंद्रशेखर ने तारे की अवस्थाओं का अध्ययन करके यह बताया की कौन - सा तारा श्वेत वामन परिवर्तित होगा। इसके लिए उन्होंने 2.8 सौर्यिक दृव्यमान की अवधारणा दी। उनके द्वारा दी गई इस सीमा को चंद्रशेखर सीमा कहा जाता है। इस भारतीय वैज्ञानिक की इस खोज ने दुनिया की उतपत्ति के रहस्यों को सुलझाने में बहुत योगदान दिया। वे महान भारतीय वैज्ञानिक सी. वी. रमन के भतीजे थे। 
उनका नाम 20 वी शताव्दी के महान वैज्ञानिको की सूची में शुमार किया जाता है। उन्होंने खगोल , भौतिकशास्त्र तथा सौरमंडल से सम्बंधित विषयो पर अनेक पुस्तके लिखी।

#_हरगोविंद_खुराना

भारतीय मूल के इस अमेरिकी नागरिक और वैज्ञानिक डॉ. हरगोविंद खुराना को 1968 में चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार दिया गया। उन्होंने आनुवांशिक कोड ( डीएनए ) की व्याख्या की और उसका अनुसंधान किया।
 खुराना ने मार्शल ,निरेनबग और रॉबर्ट होल्ले के साथ मिलकर चिकित्सा के क्षेत्र में काम किया। खुराना के इस अनुसंधान से चिकित्सा क्षेत्र को यह पता लगाने में मदद मिली की कोशिका के अनुवांशिक कूट (कोट ) को ले जाने वाले न्यूक्लिक अम्ल (एसिड ) न्यूक्लिओटाइटस कैसे कोशिका के प्रोटीन संश्लेषण को नियंत्रित करते है।

#_मेघनाद_साहा

मेघनाद साहा का जन्म 1893 को ढाका के निकट हुआ था। यह सुप्रसिद्ध भारतीय खगोलीय वैज्ञानिक थे ,जो साहा समीकरण के लिए प्रसिद्द है। यह समीकरण तारो में भौतिक एवं रासायनिक स्थिति की व्याख्या करता है। विद्यार्थी जीवन में उन्होंने जगदीशचंद्र बासु एवं प्रफुलचन्द्र राय से शिक्षा प्राप्त की। वे 1934 के भारतीय विज्ञान कांग्रेस के अध्यक्ष रहे।

#_चिंतामणि_नागेश_रामचन्द्रराव

चिंतामणि नागेश रामचन्द्रराव का जन्म 30 जून 1934 में बैंगलुरु में हुआ। इन्होने  संरचनात्मक रसायनशास्त्र के क्षेत्र में मुख्य रूप से काम किया है। वह भारत के प्रधानमन्त्री के वैज्ञानिक सलाहकार परिषद् के प्रमुख के रूप में सेवा कि 

 डॉ. राव को दुनियाभर के 60 विश्व विद्यालयों से मानद डॉक्टरेट प्राप्त है। इन्होने लगभग 1500 शोधपत्र और 45 वैज्ञानिक पुस्तके लिखी है। 

वर्ष 2014 में भारत सरकार ने उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्म्मानित किया  

सी. वी. रमन और ऐ.पि.जे. अब्दुल कलाम के बाद इस पुरस्कार से सम्मानित किय जाने वाले वे तीसरे ऐसे वैज्ञानिक है। डॉ. राव अंतर्राष्ट्रीय पदार्थ विज्ञान केंद्र (इंटरनेशनल सेंटर फॉर मटेरियल साइंस )के निदेशक भी थे

            

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