Sunday, 4 November 2018

GS Paper 3 Source: The Hindu

GS Paper 3 Source: The Hindu

*TOPIC : SECTION 7 OF THE RBI ACT*

*संदर्भ*

कहा जा रहा है कि भारत सरकार भारतीय रिज़र्व बैंक को विशेष निर्देश देने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम के अनुभाग 7 (Section 7 of the Reserve Bank of India Act) का प्रयोग करने जा रही है.

*भूमिका*

● इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक वाद की सुनवाई के समय भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम के अनुभाग 7 (Section 7) के प्रयोग का मामला उभरा. यह वाद भारतीय स्वतंत्र ऊर्जा उत्पादक संघ (Independent Power Producers Association) के द्वारा दायर किया गया था और इसमें भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के द्वारा 12 फरवरी को निर्गत एक परिपत्र (circular) को चुनौती दी गई थी. सुनवाई के क्रम में अगस्त में उच्च न्यायालय ने एक टिपण्णी की थी की सरकार चाहे तो भारतीय रिज़र्व बैंक को RBI Act के अनुभाग 7 के तहत निर्देश (directions) दे सकती है.

● न्यायालय के इस आदेश को देखते हुए सरकार ने भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर को एक पत्र दिया था जिसमें उनसे 12 फ़रवरी के परिपत्र के संदर्भ में ऊर्जा कंपनियों को मिलने वाली छूट के विषय में उनका मन्तव्य माँगा गया था. इसके अतिरिक्त 10 अक्टूबर को सरकार ने भारतीय रिज़र्व के गवर्नर से मुद्रा तरलता (liquidity) लाने के लिए RBI के पूँजी भंडार (capital reserve) का उपयोग करने के विषय में भी मन्तव्य माँगा था.

*Section 7 of the RBI Act क्या है?*

RBI Act के अनुभाग 7 के अनुसार केंद्र सरकार को यह शक्ति है कि वह समय-समय पर RBI गवर्नर से परमर्श करके भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) को ऐसे निर्देश दे सके जो उसकी दृष्टि में लोकहित में आवश्यक है. “The Central Government may from time to time give such directions to the Bank as it may, after consultation with the Governor of the Bank, consider necessary in the public interest,” Section 7(1) of the RBI Act reads .

RBI Act के Section 7 में एक उप-अनुभाग भी जो कहता है कि – “भारत सरकार चाहे तो बैंक के सामान्य पर्यवेक्षण और कारोबार को वह एक केन्द्रीय निदेशक बोर्ड (Central Board of Directors) को सौंप सकती है जो बैंक द्वारा किये जाने वाले सभी कार्य कर सकता है और बैंक की सारी शक्तियों का प्रयोग कर सकता है.”

*क्या अनुभाग 7 का प्रयोग एक असाधारण कदम होगा?*

इस अनुभाग का प्रयोग पहले कभी नहीं हुआ है. 1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था सबसे बुरी अवस्था में थी. 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के समय भी भारतीय अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गई थी, फिर भी इस अनुभाग को लागू नहीं किया गया. इसलिए इसका कार्यान्वयन कैसे होगा, यह स्पष्ट नहीं है. इस प्रकार के आक्रामक प्रयोग से कुछ अर्थशास्त्रियों एवं विशेषज्ञों को घबराहट हो सकती है. साथ ही RBI की स्वयत्तता को लेकर सरकार की मंशा पर सवाल उठाये जा सकते हैं.

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