GS Paper 2 Source: The Hindu
*TOPIC : DEAL INKED FOR BIOFUEL RESEARCH*
संदर्भ
जैव प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Biotechnology – DBT) ने ऊर्जा एवं अनुसंधान संस्थान (The Energy and Research Institute) के साथ एक त्रि-वर्षीय समझौता किया है जिसके अंतर्गत 11 करोड़ रुपयों का व्यय करके एक केंद्र स्थापित किया जाएगा जो उन्नत जैव ईंधन और जैव सामग्रियाँ उत्पादित करेगा.
*मुख्य तथ्य*
● यह इस प्रकार का पाँचवा केंद्र है जिसे जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने जैव ऊर्जा के विषय में अनुसन्धान और विकास करने के लिए स्थापित किया है. अन्य चार ऐसे केंद्र जो पहले से बने हैं, वे हैं –
A. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली,
B. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गुवाहाटी
C. ट्रांसटेक ग्रीन पॉवर लिमिटेड, जयपुर
D. खनिज तेल एवं प्राकृतिक गैस ऊर्जा केंद्र, NCR
●
यह जैव केंद्र न केवल प्रौद्योगिकी का विकास करेगा अपितु इसका
● व्यवसायीकरण भी करेगा.
यह केंद्र ईंधन के अतिरिक्त जिन उत्पादों को तैयार करेगा, वे हैं – खाद्य सामग्री, चारा, पूरक पोषण सामग्री, जैव-प्लास्टिक तथा नए विशिष्ट रसायन.
*जैव ईंधन का महत्त्व*
विश्व-भर में पिछले दशक से लोगों का ध्यान जैव ईंधन की और गया है. अतः यह आवश्यक है कि भारत भी जैव ईंधन के मामले में अन्य देशों से पीछे न रहे. ऐसे ईंधन का भारत में बहुत ही महत्त्व है क्योंकि न केवल यह सरकार के लिए Make in India, स्वच्छ भारत अभियान, कौशल विकास जैसी पहलों के लिए शुभ है अपितु यह इन महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी सहायक होगा – किसानों की कमाई दुगुनी करना, आयात में कमी लाना, रोजगार बढ़ाना, कचरे से संपदा का निर्माण करना आदि.
*जैव ईंधन की श्रेणियाँ*
● पहली पीढ़ी के जैव ईंधन – इसमें किण्वन के पारम्परिक तरीके द्वारा ऐथनॉल बनाने के लिए गेहूँ और गन्ने जैसी खाद्य फसलों और बायोडीजल के लिए तिलहनों का उपयोग किया जाता है.
● दूसरी पीढ़ी के जैव ईंधन – इसमें गैर-खाद्य फसलों का उपयोग किया जाता है और ईंधन के उत्पादन में लकड़ी, घास, बीज फसलों, जैविक अपशिष्ट जैसे फीडस्टॉक का उपयोग किया जाता है.
● तीसरी पीढ़ी के जैव ईंधन – इसमें विशेष रूप से इंजिनियर्ड शैवालों (engineered Algae) का प्रयोग किया जाता है. शैवाल के बायोमास का उपयोग जैव ईंधन में परिवर्तित करने के लिए किया जाता है. इसमें अन्य की तुलना में ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन कम होता है.
● चौथी पीढ़ी के जैव ईंधन – इसका उद्देश्य न केवल टिकाऊ ऊर्जा का उत्पादन करना है बल्कि यह कार्बन डाइऑक्साइड के अभिग्रहण (capturing) और भंडारण (storage) की एक पद्धति भी है.
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