Thursday, 15 November 2018

सीबीआई की उठापटक

संपादकीय : सीबीआई की उठापटकसीबीआई के दो शीर्ष अधिकारी जिस तरह एक-दूसरे को कठघरे में खड़ा करने और शह-मात का खेल खेलने में लगे हुए थे, उसे देखते हुए इन दोनों को इनके काम से दूर करने के अलावा और कोई उपाय नहीं रह गया था। ऐसा कोई फैसला इसलिए और आवश्यक हो गया था, क्योंकि सीबीआई की बची-खुची साख मिट्टी में मिल रही थी और सरकार भी सवालों के घेरे में आ गई थी। चूंकि सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना ने एक-दूसरे पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए, इसलिए दोनों की जांच जरूरी हो गई थी। ऐसी कोई जांच तभी हो सकती थी, जब उन्हें उनके काम से दूर किया जाता। सरकार ने ऐसा ही किया और केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की जांच पूरी होने तक अंतरिम निदेशक की नियुक्त कर दी।
बुधवार को यह खबर आई थी कि सरकार ने आपस में उलझे सीबीआई के दोनों शीर्ष अधिकारियों को छुट्टी पर भेजते हुए अंतरिम निदेशक की नियुक्ति की है। इस फैसले के खिलाफ सीबीआई निदेशक सीधे सर्वोच्च न्यायालय भी पहुंच गए। इस मामले में अगले दिन सीबीआई प्रवक्ता द्वारा यह स्पष्ट किया गया कि दोनों अधिकारी अपने पद पर बने रहेंगे और जांच पूरी होने तक अंतरिम निदेश
बहरहाल, यह किसी भी दृष्टि से आदर्श स्थिति नहीं कि सीबीआई के विशेष निदेशक अपने खिलाफ कार्रवाई के विरोध में उच्च न्यायालय के समक्ष नजर आ रहे हैं, वहीं निदेशक सर्वोच्च न्यायालय की शरण में हैं। पता नहीं उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय इन दोनों के मामलों की सुनवाई करते हुए किस नतीजे पर पहुंचेंगे, लेकिन अगर उनके फैसलों से कलह शांत नहीं होती, तो फिर सीबीआई की साख को बहाल करना मुश्किल होगा। कहना कठिन है कि अदालतों का हस्तक्षेप वैसी परिस्थितियां पैदा करता है या नहीं जैसी सरकार चाह रही है, क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो उसके लिए वांछित फैसले लेने में मुश्किल पेश आ सकती है।
जो भी हो, सीबीआई में छिड़ी शर्मनाक रार से यह साफ हो गया कि केंद्रीय सतर्कता आयोग अपनी भूमिका का निर्वाह सही तरह से नहीं कर सका। आखिर जब वह सीबीआई निदेशक और विशेष निदेशक के बीच चल रही उठापटक से अवगत था, तो फिर उसने समय रहते हस्तक्षेप क्यों नहीं किया? क्या ऐसा इसलिए हुआ कि वह हस्तक्षेप करने में समर्थ ही नहीं? यह वह सवाल है, जिस पर सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए। सच तो यह है कि सरकार को सीबीआई के ढांचे और उसकी कार्यप्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन करने पर भी विचार करना चाहिए, ताकि फिर कभी वैसी स्थिति न बने, जैसी अभी बनी और जिसके चलते जनता को यह संदेश गया कि देश की शीर्ष जांच एजेंसी में सब कुछ ठीक नहीं। चूंकि लोकतंत्र की साख उसकी सक्षम संस्थाओं से ही बढ़ती है, इसलिए सीबीआई और ऐसी ही अन्य संस्थाओं का भरोसेमंद होना आवश्यक है।

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