Friday 16 November 2018

प्रदूषण पर सख्ती (दैनिक ट्रिब्यून)

स्वच्छ और प्रदूषण रहित पर्यावरण के लिये सर्वोच्च न्यायालय ने अंतत: देश में डेढ़ साल के भीतर वाहन और ईंधन गुणवत्ता को विश्वस्तरीय बनाने की दिशा में सख्त कदम उठा ही लिया। देश में ईंधन और इंजन गुणवत्ता के हिसाब से चौथे चरण मानदंडों वाले वाहन दौड़ रहे हैं जबकि विकसित देशों ने वे गुणवत्ता मानक अपने देशों में लागू कर दिये हैं, जिन्हें भारतीय मानक बीएस-5 से भी पूरा नहीं किया जा सकता। बीएस-6 का मतलब है यूरो 6 स्टैंडर्ड, जिसे भारत स्टेज-5 नाम दिया गया है। सन‍् 2000 में सरकार ने इंडिया 2000 नाम से प्रदूषण मानक निर्धारण प्रारंभ किया था, जिसे अगले ही साल 2001 में भारत स्टेज दो नाम से अपग्रेड कर दिया गया। 2005 में बीएस 3 और 2010 में आया बीएस-4। दस साल बाद सीधे आधुनिकतम मानक लागू करने की सोच के साथ सुप्रीमकोर्ट ने एक चरण आगे बढ़कर सीधे बीएस-6 मानदंडों को वाहन निर्माण से ईंधन उपलब्धता तक लागू करने में छूट देने से इनकार कर दिया।
अधिकांश मेट्रो व बड़े शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति किसी से छुपी नहीं है। बीएस-6 मानदंड लागू होने के बाद पीएम 2.5 उत्सर्जन में 68 प्रतिशत सुधार की उम्मीद है।
दरअसल, दो साल पहले, सुप्रीमकोर्ट ने बीएस-5 मानदंडों को छोड़ने वाहन निर्माताओं को कहा था। उन्होंने एक साल की छूट अवधि मांगी थी। चूंकि ऑटो निर्माता 1 अप्रैल, 2020 तक बीएस-4 श्रेणी के सभी तैयार वाहनों से मुक्ति पाना चाहेंगे, लिहाजा उपभोक्ताओं को सस्ते वाहन खरीदने का एक अवसर भी मिलेगा। 31 मार्च 2020 के पहले सभी नए बीएस-4 वाहनों पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा। सरकार भी इस मुद्दे पर अदालत के समान ही दृढ़ संकल्प दिख रही है। निश्चय ही 2019 में आम चुनावों के बाद जो भी सरकार आएगी, उसे वाहन निर्माताओं या रिफाइनरों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण और ज्यादा मोहलत की मांग व दबाव का सामना करना पड़ेगा। इसका एक ही उपाय है गुणवत्ता सुधार की प्रक्रिया को तेज करना, ताकि आम चुनावों से पहले बीएस-6 गुणवत्ता का रोडमैप आकार ले ले।
सौजन्य – दैनिक ट्रिब्यून।

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