Friday, 21 September 2018

राज्यव्यवस्था : प्रस्तावना का मूल्यांकन

राज्यव्यवस्था : प्रस्तावना का मूल्यांकन


इसका महत्व

  • यह सरकार के मार्गदर्शक का कार्य करती है।
"प्रस्तावना देश की राजनीतिक जन्मपत्री है" -- के०एम० मुंशी (Kanaiyalal Maneklal Munshi)

क्यों कहा गया?

  • न्यायमूर्ति गजेंद्र गडकर कहते है की प्रस्तावना संविधान की कुंजी है इनके अनुसार प्रस्तावना संविधान की व्याख्या में सहायता करती है|
  • ठाकुर दास भागर्व के अनुसार "यह संविधान की आत्मा है।" जिस प्रकार आत्मा बिन शरीर का महत्व नहीं है उसी प्रकार संविधान प्रस्तावना में वर्णित आदर्शो को यदि संविधान से अलग करे तो संविधान को अनपयुक्त माना जाएगा।
प्रस्तावना में भारत के राष्ट्रीय आंदोलन के आदर्श पाये जाते है और यह सरकार के कार्यो के मूल्यांकन का आधार प्रदान करती है।
प्रस्तावना की संशोधनीयता के संदर्भ में विश्व में दो प्रकार के मत है कुछ विचारक इसे संशोधनीय नहीं मानते क्योंकि इसमे संविधान निर्माताओ की भविष्य सम्बंधी सोच पाई जाती है अतः इसे अपरिवर्तनीय होना चाहिए।  बेरुबारी विवाद  में न्यायाधीश गजेन्द्र गड़कर ने कहा की "यह संविधान निर्माताओं के मस्तिष्क को समझने की कुंजी है"अतः इसमे संशोधन नहीं हो सकता।
लेकिन केशवानंद भारती वनाम केरल मामले में (1973 ) न्यायालय ने प्रस्तावना को संविधान का अंग मानकर संशोधनीय बताया पर मूल ढांचे के सिद्धान्त के तहत प्रस्तावना सहित संविधान के जिन हिस्सों में संविधान का मूल ढांचा पाया जाता है उसमें संशोधन नहीं होगा।
न्यायपालिका का मत सही लगता है क्योंकि यदि प्रस्तावना को संशोधनीय न माना जाये तो बदलते समयनुसार इसकी प्रांसगिकता व गतिशीलता समाप्त हो जाएगी व लंबे अंतराल बाद ऐसी स्थिति आ सकती है जब प्रस्तावना व अन्य प्रावधान परस्पर विरोधी लगे। प्रस्तावना में अभी तक 1 बार संशोधन हुआ है। 1976 में 42 वे संशोधन द्धारा समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, अखंडता, इन्हें प्रस्तावना में जोड़ा गया।

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