Wednesday, 22 August 2018

एशियाई ओलंपिक परिषद (ओसीए) ने भारत के पारंपरिक खेल खो-खो को मान्यता प्रदान की है.

एशियाई ओलंपिक परिषद (ओसीए) ने भारत के पारंपरिक खेल खो-खो को मान्यता प्रदान की है.
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खो-खो को मान्यता देने का फैसला ओसीए की आम सभा में लिया गया.

इस निर्णय से खो-खो को एशियन इंडोर गेम्स में प्रदर्शनी खेल के तौर पर शामिल किया जाएगा. सूत्रों का कहना है कि इससे खो खो का अगले एशियाई खेलों में शामिल होने की संभावना बढ़ गई है.

इस अवसर पर केंद्रीय खेल मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने कहा कि यह शानदार है कि खो-खो को मान्यता मिल गई है. इससे वैश्विक स्तर पर भारत का दबदबा बढ़ेगा. इससे अब यह देसी खेल एशियाई देशों में भी खेला जाने लगेगा और जल्द ही पूरी दुनिया में लोकप्रिय होगा.

एशियाई ओलम्पिक परिषद
एशियाई ओलम्पिक परिषद एशिया में खेलों की सर्वोच्च संस्था है और एशिया के 45 देशों की राष्ट्रीय ओलम्पिक समितियां इसकी सदस्य हैं. इसके वर्तमान अध्यक्ष शेख फहद अल-सबा हैं. परिषद के अन्दर सबसे पुरानी राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति जापान की है जिसे अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति की मान्यता 1912 में मिली थी, जबकि पूर्वी तिमोर की राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति सबसे नई है, जो 2003 में इसकी सदस्य बनी. इसका मुख्यालय कुवैत में स्थित है.

खो-खो खेल के बारे में जानकारी
खो-खो मैदानी खेलों के सबसे प्राचीनतम रूपों में से एक है जिसका आरंभ प्रागैतिहासिक भारत में माना जाता है. मुख्य रूप से आत्मरक्षा, आक्रमण व प्रत्याक्रमण के कौशल को विकसित करने के लिए इसकी खोज हुई थी. ऐसी मान्यता है कि इस खेल की उत्पत्ति महाराष्ट्र में हुई.

सन् 1914 में डेकन जिमखाना पूना द्वारा इस खेल मे प्रारम्भिक नियमों का प्रतिपादन किया गया था. महाराष्ट्र फ़िज़िकल एजुकेशन समिति द्वारा इस खेल से संबंधित साहित्य को क्रमशः को सन् 1935, 1938, 1943 एवं 1949 में विभिन्न चरणों में प्रकाशित कराकर प्रसारित किया गया. सन् 1960 में विजयवाड़ा में प्रथम राष्ट्रीय खो-खो चैंपियनशिप का आयोजन किया गया.

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