केरल बाढ़ विभीषिका:प्राकृतिक कहर या मानव हस्तक्षेप
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राज आर्या के कलम से साभार:-
केरल भारत के दक्षिण पश्चिम कोने का एक राज्य है। इस राज्य को “गॅाड्स ओन कंट्री“ भी कहा जाता है। केरल का क्षेत्रफल 38,863 वर्ग किमी है और जनसंख्या लगभग 33,406,061 है। राज्य को तीन विशेष क्षेत्रों में बाँटा जा सकता है: पूर्वी हाइलैंड, सेंट्रल मिडलैंड और वेस्टर्न लोलैंड। राज्य के पूर्वी क्षेत्र में उँचे पहाड़, नाले और घाटियाँ है, जो कि पश्चिमी घाट के बिलकुल पश्चिम में हैं। इस क्षेत्र से 41 पश्चिम की ओर और 3 पूर्व की ओर बहने वाली नदियाँ निकलती है। इन नदियों पर 80 छोटे बड़े बांध का निर्माण किया गया है! पश्चिमी घाटों की उँचाई समुद्र तल से लगभग 4920 फीट (1500 मीटर) है इसकी सबसे उँची चोटी 8200 फीट (2500) है। तटीय बेल्ट लगभग सपाट है और इसमें कई नहरों, झीलों और नदियों का बड़ा नेटवर्क है जिसे केरल का बेकवाॅटर कहा जाता है।
राज्य की सीमा एक ओर से समुद्र के साथ और इसके अलावा कर्नाटक और तमिलनाडु से भी जुड़ी है। तिरुवनंतपुरम जिसे त्रिवेंद्रम भी कहते हैं, केरल की राजधानी है और इसका कोवलम समुद्र तट दुनिया भर में मशहूर है। केरल राज्य 14 जिलों में बँटा हैै।
क्यों चर्चा में है केरल?
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● 8 अगस्त से 18 अगस्त के बीच हुए मूसलाधार बारिश ने केरल में बाढ़ जैसी आपदा को जन्म दिया!
●1931 के बाद सदी का सबसे बड़ी विभीषिका के रूप में देखा जा रहा है!
●वर्षा की दर सामान्य से 140 प्रतिशत अधिक होने के कारण प्रलय जैसी स्थिति जिससे केरल का जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया!
●500 अधिक लोगो की बाढ़ और भूस्खलन से मृत्यु
●10 लाख 78 हज़ार से अधिक लोग को 5645 राहत शिविरों में प्रतिस्थापन
●केंद्र सरकार की ओर से गृह मंत्रालय ने इस विभीषिका को "गम्भीर प्राकृतिक आपदा घोषित किया है!
बाढ़ से नुकसान का आंकलन:-
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विनाशकारी बाढ़ के बाद केरल में बारिश से फिलहाल राहत है। राहत और बचाव कार्यों के साथ राज्य को वापस खड़ा करने की कोशिशें भी की जाने लगी हैं। हालांकि, यह बड़ी चुनौती साबित होने वाली है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के आंकड़ों के मुताबिक पिछले 87 साल के दौरान अगस्त के महीने में ऐसी मूसलाधार बारिश पहली बार हुई है। राज्य ने 100 साल में पहली बार ऐसी बाढ़ देखी है जिसका मंजर भूलना बिलकुल आसान नहीं होगा। बाढ़ का पानी निकलने के बाद राज्य में हुए नुकसान का आकलन करने से पता चलता है कि कितना बड़ा पहाड़ सामने खड़ा है। अंदाजा लगाया जा रहा है कि राज्य को करीब 20,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।
क्या-क्या हुआ तबाह?
●सबसे बड़ा नुकसान तो लोगों के रूप में ही हुआ है। करीब 350 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है!
● 10.78 लाख से भी अधिक लोग विस्थापित हो गए हैं। इन लोगों को 5,645 राहत शिविरों में रोका गया है।
●यही नहीं, 40,000 हेक्टेयर से भी अधिक की फसलों का नुकसान हो चुका है।
●26,000 से भी अधिक मकान तहस-नहस हो गए हैं। इंसानों के साथ ही करीब 46,000 मवेशी और 2 लाख से अधिक पोल्ट्री (मुर्गी, आदि) का नुकसान हुआ है।
●बाढ़ ने राज्य के इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमर किस हद तक तोड़ दी है इसका पता इस बात चलता है कि लगभग एक लाख किलोमीटर सड़कें तबाह हो चुकी हैं। इनमें 16,000 किलोमीटर लोक निर्माण विभाग की और 82,000 किलोमीटर स्थानीय सड़कें शामिल हैं।
●साथ ही 134 पुल भी बुरी तरह ध्वस्त हैं।
कितने करोड़ बहे?
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●अगर इस तबाही की कीमत लगाई जाए तो अब तक राज्य को कुल 19,512 करोड़ का नुकसान झेलना पड़ा है। ●औद्योगिक इकाई एसोचैम के मुताबिक यह नुकसान 20,000 हजार करोड़ का है।
●सबसे ज्यादा पर्यटन को हुआ है जो राज्य की जीडीपी में 1/10 योगदान देता है। पहले से ही निपास वायरस के कारण नुकसान झेल रहे पर्यटन पर बाढ़ की दोहरी मार पड़ी है।
●बताया जा रहा है कि करीब 80% बुकिंग कैंसल की जा चुकी हैं।
●साथ ही पर्यटन में काम आने वाले इन्फ्रास्ट्रक्चर भी बुरी तरह ढहा है। जानकारों की मानें तो इसे दोबारा खड़े होने में कई साल लग सकते हैं।
●पर्यटन के अलावा चाय, कॉफी, इलायची और रबड़ के कारण खेती से भी राज्य का करीब 10% जीडीपी आता है। खेतों को हुए नुकसान से किसानों और राजस्व को बड़ी चोट खानी पड़ी है।
●भूस्खलन के कारण कृषि में हुए 600 करोड़ नुकसान में से चाय के बागानों को 150 से 200 करोड़ का नुकसान हुआ है।
●सड़कों के टूटने से कराीब 13,000 करोड़ और पुलों के ढहने से 800 करोड़ रुपये का नुकसान अनुमानित है।
कितनी राशि की जरूरत?
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●सदी की सबसे भयानक त्रासदी में हुए नुकसान से निपटने के लिए केरल को बड़ी आर्थिक सहायत की जरूरत पड़ने वाली है।
●इस साल राज्य के बजट में इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए 11,000 करोड़ रुपये तय किए गए थे।
●केरल सरकार ने केंद्र सरकार से 26000 सकरोड़ रुपये की मदद की मांग की है!
● माना जा रहा है कि लोगों के व्यक्तिगत बीमा से 500 करोड़ रुपये की मदद भी मिल सकती है।
●वहीं, कोच्चि एयरपोर्ट का भी 2,500 करोड़ का बीमा कवर है लेकिन क्लेम की राशि इससे कम बताई जा रही है।
राहत एवं बचाव कार्य
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केरल की त्रासदी में पूरा देश एक जुट है, देश के हर राज्य से बाढ़ पीड़ितों के लिए राहत सामग्री के साथ ही साथ अन्य सहायता पहुचने लगी है!
1. सरकार ने तात्कालिक तौर पर 12 अगस्त को 100 करोड़ रुपये बाढ़ राहत की घोषणा की! 17 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन ने हवाई सर्वेक्षण की जरिये बढ़ के हालात का जायज़ा लेने के बाद 500 रुपये की करोड़ की राशि केरल सरकार को उपलब्ध केंद्र सरकार द्वारा कराया गया!
2.सुप्रीम कोर्ट के जज द्वारा 25-25 हजार रुपया बढ़ राहत कोष में देने की घोषणा किया गया!
3.उपराष्ट्रपति एवम लोकसभा अध्यक्ष अपने 1 महीने का वेतन बाढ़ राहत कोष में देने की घोषणा की तथा देश से सांसदों से भी एक महीने का वेतन बाढ़ राहतकोष ने देने की अपील की!
4.वित्तमंत्रालय ने केरल सरकार को जीएसटी से छूट प्रदान की है!
5.रेल मंत्रालय ने राहत सामग्री पर किसी तरहः का परिवहन चार्ज न लेने की घोषणा की है!
6.गैरसरकारी संगठन संगठनो.धार्मिक संगठन आदि ने भी केरल के राहत एवं बचाव कार्यों में बढ़चढ़कर हिसा ले रहे है!
6.विपरीत परिस्थितियों में मेडिकल एवम अन्य सहायता के लिए जाने जाने वाली वैश्विक संगठन भी बढ़ पीड़ितों के बीच कार्य कर रही है!
8.दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान(एम्स) ने दवाइयों सहित मेडिकल टीम केरल भेजने का निर्णय लिया है!
9.कई राज्यो सरकारों की ओर से आर्थिक एवम अन्य सहायता सामग्री उपलब्ध कराने की घोषणा की गई है!
10.सेना के तीनों अंग:-थल सेना,वायु सेना,जल सेना, और कोस्टगार्ड सहित कई समाज सेवी संगठन बाढ़ पीड़ितों के मदद के लिए कार्य रहे हैं!
11.सामान्य प्रशासन,स्थानीय लोगो के साथ ही साथ मछुआरा समुदाय बाढ़ में फसे लोगो तक तत्काल सहायता उपलब्ध करा रहे है!
इन सबके अलावा देश-दुनिया से मिल रहे डोनेशन से भी मदद मिलने की उम्मीद है। संयुक्त अरब अमीरात ने केरल बाढ़ राहत के लिए 700 करोड़ रुपये का योगदान दिया है!अभी तक पूरे नुकसान का अलग से आकलन नहीं किया गया है।
इससे पहले चेन्नै में 2015 में (5000 करोड़ रुपये) और जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड में 2014 में (2000 करोड़ रुपये) आई बाढ़ में हुए नुकसान से विभीषिका का अंदाजा लगाया जा सकता है।
केरल में बाढ़ विनाशकारी कैसे बन गया
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●तात्कालिक कारक केरल में अरब सागर से आने वाली दक्षिण-पश्चिम मानसून से सामान्य दिनों में भी देश के अन्य भागों से अधिक वर्षा होती है!
●पहले के वर्षों में जितना वर्षा4 महीने में होते थे इस बार ढ़ाई महीने में ही औसत से 37 फीसदी अधिक!
● मौसम विभाग के अनुसार 8 अगस्त से 15 अगस्त तक सामान्य से साढ़े तीन गुना अधिक वर्षा ज्यादा!
●16 अगस्त को137 मिलीमीटर बारिश जो सामान्य से 10 गुना अधिक था!
●17 अगस्त तक औसत से 175 फ़ीसदी ज्यादा था!
●केरल में 41 नदियॉ पर 80 छोटे बड़े बांध है, जिसमे बारिश के कारण जल की अधिकता!!
●समयबद्ध तरीके से बांधों का न खोल जाना!
●जब पिछले हफ़्ते बाढ़ उफान पर था, तब 80 से अधिक बांधों से पानी छोड़ा गया. इस राज्य में कुल 41 नदियां बहती हैं! विशेषज्ञों का कहना है कि यदि प्रशासन कम से कम 30 बांधों से समयबद्ध तरीके से धीरे-धीरे पानी छोड़ता तो केरल में बाढ़ इतनी विनाशकारी नहीं होती.
●केरल के प्रमुख बांधों जैसे इडुक्की के पांच गेटों का एक साथ खोला जाना और इडामाल्यार से पानी छोड़े जाने से पहले से भारी बारिश में घिरे केरल में बाढ़ की स्थिति और भी ख़राब हो गई है!
●इससे बचा जा सकता था, यदि बांध ऑपरेटर्स (संचालक) पहले से ही पानी छोड़ते रहते ना कि उस वक्त का इंतजार करते कि बांध में पानी पूरी तरह से भर जाए और उसे बाहर निकालने के अलावा कोई और चारा न रह जाए."!
●यह भी स्पष्ट है कि केरल में बाढ़ आने से पहले ऐसा काफी वक्त था जब पानी को छोड़ा जा सकता था.
क्यों स्थिति और ख़राब हुई?
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●इस साल की शुरुआत में केंद्रीय गृह मंत्रालय के एक आंकलन में केरल को बाढ़ को लेकर सबसे असुरक्षित 10 राज्यों में रखा गया था.
●केरल में पिछले हफ़्ते आई विनाशकारी बाढ़ से ठीक एक महीने पहले एक सरकारी रिपोर्ट ने चेतावनी दी थी कि यह राज्य जल संसाधनों के प्रबंधन के मामले में दक्षिण भारतीय राज्यों में सबसे ख़राब स्तर पर है.
●इस अध्ययन में हिमालय से सटे राज्यों को छोड़कर 42 अंकों के साथ केरल 12वां स्थान मिला है.
● जल संसाधनों के प्रबंधन के मामले में 79, 69 और 68 स्कोर के साथ गुजरात, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश शीर्ष तीन राज्य हैं.
●इस लिस्ट में केरल से भी नीचे के पायदान पर चार गैर-हिमालयी, हिमालयी और चार पूर्वोत्तर राज्य हैं.
●देश में आपदा प्रबंधन नीतियां भी हैं लेकिन इस रिपोर्ट के आने के बावजूद केरल ने किसी भी ऐसी तबाही के ख़तरे को कम करने के लिए कोई कदम नहीं उठाए.
●जबकि राज्य प्रशासन को उनके बेअसर बांध प्रबंधन और आपदा के ख़तरों को कम करने के लिए अपर्याप्त कामों की आलोचना की गई है, वहीं केंद्र के कामों की भी कोई अच्छी ख़बर नहीं है!
सरकारी समितियों का रिपोर्ट
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●वर्ष 2010 यह आकलन किया गया कि पश्चिमी घाट मानवीय हस्तक्षेप के कारण सिकुड़ रहा है!इसके मद्देनजर केंद्र सरकार ने माधव गाडगिल समिति गठित की! समिति ने अपना रिपोर्ट2011 में सरकार को प्रस्तुत की!
रिपोर्ट की सिफारिश:-
1.पश्चिमी घाट के कई इलाकों को पूर्ण रूप से संवेदनशील घोषित किया जाए!
2.इन इलाकों में खनन और अन्य दूसरे गतिविधियों को सीमित किया जाए!
पश्चिमी घाट के तहटाने वाले राज्यों-महाराष्ट्र, गोआ,कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल ने गाडगिल समिति का विरोध किया था! फलतः नदी किनारे अवैध निर्माण कार्य जारी रहे!
फलतः 2013 में केंद्र सरकार ने इसरो के पूर्व अध्यक्ष के.कस्तूरी रंगन की अध्यक्षता मेदूसरी समिति का गठन किया! इस समिति ने अप्रैल 3013 में अपना रिपोर्ट सरकार को सौपी!
रिपोर्ट के अनुसार;- जोनल वर्गीकरण में कुछ बदलाव करके परिस्थितिकीय संवेदनशील क्षेत्रों का इलाका 64 फीसदी से घटाकर37 फीसदी कर दिया गया!लेकिन कई राज्यों ने इस रिपोर्ट का यह कहते हुए विरोध किया कि इस रिपोर्ट के लागू होने से पशिचमी घाट का संवेदनशील इलाकों में रहने वाली आबादी को उनके रहवास उजाड़ दिया जाएगा!
परिस्थितिकी रूप से नाज़ुक इन पहाड़ी क्षेत्रों में संरक्षित करने को लेकर गाडगिल समिति के रिपोर्ट लागू की गई होती टॉस तरह त
●ये उत्तराखंड, कश्मीर, गुजरात, मुंबई और चेन्नई में पिछले दशक में अपनी जगह के लिए इंसानों को किनारे पर धकेलते पानी से उपजी आपदा से बिल्कुल अलग नहीं है. इन सभी जगहों पर पानी ने अपनी जगह वापस पाने के लिए इंसानों और उनके 'विनाशकारी विकास' को बुरी तरह किनारे कर दिया है.
●ये सच है कि इस साल केरल में मॉनसून आने के बाद से वाक़ई असाधारण रूप से बहुत ज़्यादा बारिश हुई है. लेकिन इंसानों ने जानमाल के ऩुकसान को बढ़ाने में एक बड़ी भूमिका निभाई है.
●ये अभूतपूर्व बारिश नहीं बल्कि ऐसी आपदा है जिसकी मिसाल कम ही देखने को मिली है. ये कहना है जानी-मानी मौसम वैज्ञानिक और भारतीय विज्ञान संस्थान में सेंटर ऑफ़ ऐटमॉस्फ़ेरिक ऐंड ओशिएनिक साइंसेज़ की पूर्व चेयरपर्सन डॉक्टर सुलोचना गाडगिल का.
बाढ़ के कारण
1.पर्यावरणीय छेड़छाड़
●भारत के दक्षिण भारतीय राज्य केरल पर इस वक़्त जो विपदा आई है वो इंसान और पानी के बीच अपने अस्तित्व और अपनी जगह की लड़ाई का सबसे ताज़ा उदाहरण है. ये बिल्कुल वैसा ही है जैसा इंसानों और जंगली जानवरों के बीच जंगल के लिए होने वाली लड़ाई होती है.
●पश्चिमी घाट में वन की कटाई को पर्यावरणविद विनाशकारी मान रहे हैं! जिन-जिन राज्यों मेवन की कटाई हुई है,वहां कम समय मे बढ़ से तबाही मची है! विनाशकारी बढ़ सीधे तौर पर पर्यावरण से छेड़छाड़ के नतीजे के रूप में देखा जा सकता है!
2.इंसान हैं ज़िम्मेदार?
●केरल फ़ॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट (KFRI) के पूर्व निदेशक डॉक्टर पीएस. एसा का भी मानना है कि ये सब इंसानों का किया-धरा है.
● "प्राकृतिक आपदाएं हमेशा आती रही हैं, लेकिन हम इंसानों ने मुश्किलों को बढ़ा दिया है. पहाड़ी इलाकों में धड़ल्ले से होता निर्माण कार्य और ढलानों पर बनी इमारतों ने नदियों और नहरों के रास्ते संकरे कर दिए हैं. नदियों के पानी को बहने के लिए जगह ही नहीं बची है."
●चेन्नई स्थित एनजीओ केयर अर्थ रिसर्च बायोडायवर्सिटी की प्रमुख डॉक्टर जयश्री वेंकटेशन का कहना है, "पिछले 20-25 सालों में विकास या यूं कहें कि इमारतें पहाड़ियों पर ऊपर बनने लगी हैं. यही उत्तराखंड में हुआ था जहां आपने देखा कि बाढ़ के पानी ने कैसे इमारतों को उनकी नींव समेत नीचे गिरा दिया."
ऐसा भी नहीं है कि नदियों और नहरों के पास होने वाले निर्माण कार्य को सीमित करने के लिए कोई क़ानून नहीं है
3.नदी के रास्ते में घनी आबादी की बसावट
भूमि और आपदा प्रबंधन संस्थान, तिरुवनंतपुरम के आपदा प्रबंधन केंद्र में पूर्व प्रमुख रही डॉक्टर केजी ताराके अनुसार, "हमने कई राज्यों से साल 2004 में ही संपर्क किया था. हमने कहा था बाढ़ वाले इलाकों को ज़ोनों में बांटा जाएगा. लेकिन, न तो केरल और न ही किसी राज्य ने इस बारे में कोई परवाह दिखाई."
नदी अपने रास्ते पर ही है. यह अपना रास्ता नहीं बदल रही है. लेकिन बढ़ती हुई आबादी को नदियों के तटों पर बस जाना !साथ ही साथ नदियों के रास्ते में इमारतों का बनना और यही वजह है कि इमारतें आख़िरकार बाढ़ के पानी में बही जा रही हैं. इसलिए अगर सबसे संवेदनशील इलाकों में (जैसे उत्तराखंड और केरल) में छोटी-मोटी प्राकृतिक घटनाएं भी होती हैं तो इसे बड़ी आपदा बनते देर नहीं लगती."
लेकिन केरल समेत बाकी जगहों पर बाढ़ के अलावा भी ऐसी चीजें हैं जिन्होंने मुसीबतों को बढ़ाया.
"इसकी दो बड़ी वजहें हैं- उत्खनन और कृत्रिम झीलें. जब महाराष्ट्र में किसान पानी मांगते हैं तो उन्हें यह नहीं मिलता, लेकिन जब बारिश होती है तो यही पानी बह जाता है और बाढ़ आ जाती है."
उत्खनन की वजह से भूस्खलन का ख़तरा हमेशा बना रहता है क्योंकि इससे ज़मीन कहीं न कहीं ढीली पड़ जाती है."
केंद्रीय जल आयोग की नाकामी
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●"केरल को केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) से पहले बाढ़ की चेतावनी नहीं दी गई थी जो इसके लिए अधिकृत एकमात्र सरकारी एजेंसी है."
●, "भीषण बाढ़ और उस पर बांध से पानी का छोड़ा जाना केंद्रीय जल आयोग के पूर्वानुमानों और इस पर पहले से की गई उसकी कार्रवाई पर प्रश्न उठाता है."
●हम यह जान कर चौंक गए कि केंद्रीय जल आयोग के पास कोई पूर्वानुमान साइट नहीं है, ना तो पानी के स्तर को लेकर और ना ही पानी का बहाव कितना है इसे लेकर.
●केरल में इसकी केवल बाढ़ निगरानी साइटें हैं. वक्त आ गया है कि केंद्रीय जल आयोग इडुक्की और इडामाल्यार जैसे कुछ प्रमुख बांधों को भी शामिल करे."
हालांकि राज्य बाढ़ रोकने के उपायों को लेकर बहुत ढीला पड़ गया, लेकिन बात यह भी उतनी ही सच है कि इस साल मानसून में हुई बारिश भी खास तौर पर कहीं अधिक हुई ह
4.समस्या पानी के प्रबंधन की भी
●"बांधों और कृत्रिम जलाशयों से पानी तभी छोड़ा जाता है जब यह ख़तरे के निशान से ऊपर पहुंच जाता है. पानी ख़तरे के निशान से ऊपर पहुंचे, इसके बाद 22 बांधों से पानी छोड़ने से अच्छा है कि ऐसी स्थिति आने से पहले ही 39 बांधों से समान मात्रा में थोड़ा-थोड़ा करके पानी थोड़ दिया जाए."
●इकोलॉजिस्ट (पारिस्थिकी तंत्र विशेषज्ञ) एस. फैज़ी के अनुसार"केरल सबसे ज़्यादा जनसंख्या घनत्व वाले राज्यों में से एक है. इसका मुकाबला सिर्फ़ पश्चिम बंगाल ही कर सकता है.
●पूरा राज्य सेमी-अर्बन है. यहां घरों की कतारों के बीच में रुका हुआ पानी और धान के खेत देखने को मिलते हैं. जहां पहले धान की खेती होती थी वहां छह मंजिला इमारत खड़ी है!
●कोच्चि एयरपोर्ट उस जगह पर बना है जहां पहले धान की खेती होती थी.
●कुदरत को किनारे नहीं धकेला जा सकता है! पानी उन जगहों पर पहुंच गया जहां उसे हटाकर इमारतें बनाई गई थीं और अतिक्रमण किया गया था. बाढ़ से होने वाली तबाही के बाद तमिलनाडु सरकार ने एहसास किया कि चेन्नई के दो-तिहाई हिस्से में कोई ड्रेन सिस्टम ही नहीं है. इसके लिए 4,000 करोड़ रुपये इकट्ठे किए गए, लेकिन 20 महीनों में बहुत काम हुआ है.
शहरी योजना विशेषज्ञ और आर्किटेक्स नरेश नरसिम्हन ने कहा, "वास्तव में तक़रीबन सभी भारतीय शहरों के पास बाढ़ के पानी से बचने की कोई योजना नहीं है. उनके पास पुराने ज़माने का ड्रेनेज सिस्टम है जो सीवेज से भरा है. इसलिए जब बारिश होती है तो पानी निकलने के लिए कोई जगह ही नहीं होती. यह सीवेज में मिलकर बड़े इलाकों में बाढ़ के रूप में फैल जाता है."
नरसिम्हन के मुताबिक, "दूसरी बात ये कि हम झीलों और टैंकों को बाढ़ का पानी इकट्ठा करने के लिए इस्तेमाल नहीं करते, लेकिन ऐसा मुमकिन है. हमें नाली का पानी बहने लिए अलग पाइप की ज़रूरत होगी. पानी को निकलने के लिए कोई जगह तो चाहिए. अगर इसे जगह नहीं मिलेगी तो ये आपके घरों में ही आएगा."
डॉक्टर एसा का कहना है कि शहरों को बसाते वक़्त वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों को हमेशा दरकिनार किया जाता है.
डॉक्टर तारा, माधव गाडगिल की उस रिपोर्ट का ज़िक्र करती हैं जिसमें उन्होंने पंचायत या स्थानीय निकायों को उन इलाकों को चिह्नित करने की सलाह दी थी. लेकिन इस सलाह को राजनीतिक वजहों से ठुकरा दिया गया.
डॉक्टर तारा कहती हैं, "इस रिपोर्ट में दिए गए सुझावों को अमल में लाना ही एक रास्ता है जिससे केरल और बाकी देश को बचाया जा सकता है. वरना, कुदरत तो बदला लेगी
...तो दोबारा आ सकती है इतनी बड़ी बाढ
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इतने कम समय में इस तरह की भारी बारिश के कारण राज्य में भूस्खलन भी हुए जिसमें कई लोगों की मौत हुई है. पर्यावरणविद इसके लिए जंगलों की कटाई को दोष दे रहे हैं.
भारत के उन दूसरे हिस्सों में भी जहां वनों की कटाई की गई है, वहां बहुत कम समय में भारी बारिश की वजह से पहले भी तबाही मची है.
इनमें से कुछ जगहें तो नितांत असहाय हैं क्योंकि तेज़ी से होते शहरीकरण और बुनियादी ढांचों के निर्माण की वजह से बाढ़ की विभीषिका से प्राकृतिक तौर पर रक्षा करने वाली दलदली ज़मीनें और झीलें गुम होती जा रही हैं. ठीक ऐसा ही 2015 में चेन्नई में हुआ था.
लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि, इस बार केरल में आई बाढ़ ने आपदा के नए आयाम को जोड़ा है- और ये है बांधों से ख़तरा.
अगर इनका संचालन अच्छे से नहीं किया गया और बारिश लगातार जारी रहती है तो जलवायु परिवर्तन वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी के मुताबिक सौ वर्षों बाद आई यह आपदा निकट भविष्य में दोबारा आ सकती है.
बाढ़ से बचने के दीर्घकालिक उपाय
1.पर्यावरण को दुरुस्त करने की जरूरत
जलवायु परिवर्तन के कारण असमान्य मानसून की बारिश से बाढ़ खतरा उत्पन्न होता है अपने भारत देश में किसी स्थान पर मानसून का बारिश जरूरत से ज्यादा हो जाता है तो कहीं पर समान्य से बारिश बहुत कम होता है ! जिस क्षेत्र में ज्यादा मानसून की बारिश होता है वहां पर बाढ़ जाए जैसे हालात बन जाते हैं !
2.नदियों का एकीकरण
भारत के सबसे बड़े वैज्ञानिक डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम ने सुझाव दिया था कि भारत के सभी नदियों को एक साथ जोड़ा जाना चाहिए जिस पर तटबंध एवं बांध का निर्माण किया जाना चाहिए ! भारत के किस क्षेत्र में पानी की बहुत ज्यादा किल्लत है तो किसी क्षेत्र में जोर से बहुत ज्यादा पानी है ! अगर सभी नदियों को जोड़ दिया जाए तो भारत में
कहीं पर पानी ज्यादा नहीं होगा या कहीं पर पानी का कभी भी नहीं होगा जिससे बाढ़ जैसे हालात भी उत्पन्न नहीं होंगे !
3.नहर का निर्माण करने की जरूरत
नहर का पहला फायदा तो यह है कि सिंचाई के लिए किसानों को सस्ता पानी उपलब्ध होता है उसके साथ रिहायशी क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा भी कम हो जाता है क्योंकि यह एक बांध का भी काम करता है !
4.उपायआपदा प्रबंधन संस्थाओं के बीच बेहतर समन्वय:-
समान्यतः आपदा प्रबंधन इकाइयों में समन्वय का अभाव देखा गया है! केंद्र स्तर पर NDRMC, राज्य स्तर पर SDMC और जिला स्तर पर NDMC में समन्वय स्थापित करने की आवश्यकता है ताकि प्राकृतिक आपका के प्रभावों को यथासंभव कम किया जा सके!
5.नदी तटीय क्षेत्रों से मानव बसावट को विस्थापित किया जाए ताकि भविष्य में ऐसी त्रासदी से कम नुकसान हो सके!
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