Sunday 22 July 2018

Current affairs

राज्‍यसभा ने 19 जुलाई 2018 को भ्रष्‍टाचार निवारण संशोधन विधेयक 2013 ध्‍वनि-मत से पारित कर दिया. इस विधेयक के जरिए भ्रष्टचार निवारण (संशोधन) अधिनियम 1988 में संशोधन किया गया है.

विधेयक के अनुसार लोकसेवकों पर भ्रष्टाचार का मामला चलाने से पहले केन्द्र के मामले में लोकपाल और राज्यों के मामले में लोकायुक्तों से अनुमति लेनी होगी. सरकार की ओर से कुल 43 संशोधन लाए गए थे जिन्हें सर्वसमति से पारित कर दिया गया.

विधेयक के प्रावधान:

विधेयक में रिश्‍वत देने को प्रत्‍यक्ष अपराध माना गया है.
रिश्‍वत देने के लिए मजबूर किए जाने वाले व्‍यक्ति को अधिकारियों को सात दिन के भीतर सूचना देने की स्थिति में इस कानून के दायरे से मुक्‍त रखा जाएगा.
सदन में हुई बहस का जवाब देते हुए कार्मिक और लोक शिकायत मंत्री डॉक्‍टर जितेन्‍द्र सिंह ने कहा कि इस कानून में भ्रष्‍टाचार के खिलाफ व्‍यापक व्‍यवस्‍था की गई है.
विधेयक एक सरकारी कर्मचारी को रिश्वत देने और वाणिज्यिक संगठन द्वारा रिश्वत देने से संबंधित विशिष्ट प्रावधान है.
यह भी प्रस्ताव किया गया कि सरकारी कार्य करते हुए किसी कर्मचारी द्वारा की गई सिफारिश या लिये गये फैसले से संबंधित मामले की लोकपाल या लोकयुक्त द्वारा जांच के लिए सरकारी कर्मचारी जो सेवानिवृत्ति, इस्तीफा आदि के कारण कार्यालय छोड़ चुका है. उसकी सुनवाई के लिए पूर्व में मंजूर की गई सुरक्षा को बढ़ाया जाएगा.
सरकारी कर्मचारियों द्वारा धन संवर्धन आपराधिक दुराचार और आय से अधिक संपत्ति को सबूत के रूप में लिया जाएगा.
पृष्ठभूमि:

भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम, 1988 वर्ष 1988 में अधिनियमित किया गया था. भ्रष्टाचार निरोधक (संशोधन) अधिनियम, 2013 को इसी उद्देश्य के अंतर्गत 19 अगस्त 2013 को राज्यसभा में पेश किया गया. विधेयक में घूसखोरी से संबंधित अपराधों को परिभाषित करने के एक महत्वपूर्ण बदलाव के चिंतन को देखते हुए प्रस्तावित संशोधनों पर भारतीय विधि आयोग के विचारों को भी मांगा गया. भारतीय विधि आयोग की 254वीं रिपोर्ट के द्वारा की गयी सिफारिशों के अऩुरूप इस विधेयक में आगामी संशोधन प्रस्तावित हैं.

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