विभिन्न वस्तुओं की टैक्स श्रेणियों में बड़ा हेर-फेर कर जीएसटी काउंसिल ने एक बार फिर इंडस्ट्री के एक हिस्से और आम लोगों को राहत देने की कोशिश की है। जीएसटी लागू किए एक साल हो गया, लेकिन इससे जुड़े नियम-कानूनों में फेंट-फांट का जो सिलसिला शुरू हुआ था, वह अभी थमा नहीं है।
भर के अंदर यह तीसरा बदलाव है। बार-बार होने वाले यह बदलाव इस धारणा को मजबूती देते हैं कि जीएसटी के तहत विभिन्न वस्तुओं की टैक्स श्रेणियां तय
करने के पीछे सरकार के पास न कोई ठोस तर्क है, न दूरगामी समझ। ताजा बदलाव इस आशंका को भी जन्म देते हैं कि इनके पीछे कहीं चुनावी लाभ लेने की इच्छा तो नहीं काम कर रही।
इस बार जीएसटी काउंसिल ने वॉशिंग मशीन, फ्रिज, टीवी, विडियो गेम्स, जूसर-मिक्सर, वॉटर कूलर जैसी मध्यवर्गीय उपयोग वाली 17 वस्तुओं को 28 फीसदी से 18 फीसदी की श्रेणी में लाकर इनपर लगने वाले टैक्स में सीधे 10 फीसदी की छूट दी है। एसपीवी (स्पेशल परपज वीइकल), ट्रक और ट्रेलर से लेकर हैंडिक्राफ्ट आइटम, सेंट और टॉयलेट स्प्रे तक और भी कई वस्तुओं पर टैक्स में राहत दी गई है। सबसे बड़ी बात यह कि सैनिटरी नैपकिन को टैक्स फ्री कर दिया गया है, जिसकी आक्रोशपूर्ण मांग पहले दिन से ही की जा रही थी।
जाहिर है, सवाल इन राहतों के औचित्य पर नहीं, इस फैसले की टाइमिंग और सरकार के ढुलमुलपन को लेकर है। यह फैसला तब किया गया है जब तीन बड़े राज्यों के विधानसभा चुनाव सिर पर हैं और अगले लोकसभा चुनावों की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। इस संदर्भ में किसी को यह बात भी याद आएगी कि रोज बदलने वाले पेट्रोलियम पदार्थों के भाव कर्नाटक चुनाव से पहले करीब 20 दिन तक एक ही जगह स्थिर हो गए थे। लेकिन जैसे ही वोट पड़े, इनमें तेज बढ़ोतरी का सिलसिला शुरू हुआ जो हाल तक चलता ही जा रहा था। ऐसे में सही या गलत, पर ऐसी राय अगर देश में बनती है कि टैक्स ढांचे के निर्धारण जैसा अहम काम भी चुनावी प्राथमिकताओं से प्रभावित हो रहा है, तो इससे आर्थिक स्थिरता की धारणा कमजोर पड़ेगी।
Source NBT
भर के अंदर यह तीसरा बदलाव है। बार-बार होने वाले यह बदलाव इस धारणा को मजबूती देते हैं कि जीएसटी के तहत विभिन्न वस्तुओं की टैक्स श्रेणियां तय
करने के पीछे सरकार के पास न कोई ठोस तर्क है, न दूरगामी समझ। ताजा बदलाव इस आशंका को भी जन्म देते हैं कि इनके पीछे कहीं चुनावी लाभ लेने की इच्छा तो नहीं काम कर रही।
इस बार जीएसटी काउंसिल ने वॉशिंग मशीन, फ्रिज, टीवी, विडियो गेम्स, जूसर-मिक्सर, वॉटर कूलर जैसी मध्यवर्गीय उपयोग वाली 17 वस्तुओं को 28 फीसदी से 18 फीसदी की श्रेणी में लाकर इनपर लगने वाले टैक्स में सीधे 10 फीसदी की छूट दी है। एसपीवी (स्पेशल परपज वीइकल), ट्रक और ट्रेलर से लेकर हैंडिक्राफ्ट आइटम, सेंट और टॉयलेट स्प्रे तक और भी कई वस्तुओं पर टैक्स में राहत दी गई है। सबसे बड़ी बात यह कि सैनिटरी नैपकिन को टैक्स फ्री कर दिया गया है, जिसकी आक्रोशपूर्ण मांग पहले दिन से ही की जा रही थी।
जाहिर है, सवाल इन राहतों के औचित्य पर नहीं, इस फैसले की टाइमिंग और सरकार के ढुलमुलपन को लेकर है। यह फैसला तब किया गया है जब तीन बड़े राज्यों के विधानसभा चुनाव सिर पर हैं और अगले लोकसभा चुनावों की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। इस संदर्भ में किसी को यह बात भी याद आएगी कि रोज बदलने वाले पेट्रोलियम पदार्थों के भाव कर्नाटक चुनाव से पहले करीब 20 दिन तक एक ही जगह स्थिर हो गए थे। लेकिन जैसे ही वोट पड़े, इनमें तेज बढ़ोतरी का सिलसिला शुरू हुआ जो हाल तक चलता ही जा रहा था। ऐसे में सही या गलत, पर ऐसी राय अगर देश में बनती है कि टैक्स ढांचे के निर्धारण जैसा अहम काम भी चुनावी प्राथमिकताओं से प्रभावित हो रहा है, तो इससे आर्थिक स्थिरता की धारणा कमजोर पड़ेगी।
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