Friday 15 June 2018

Ottoman_Empire سلطنت عثمانیہ सल्तनत-ए-उस्मानिया 【1299–1923】 ‎by ‎History - تاریخ - इतिहास‎ #ख़िलाफते_उस्मानिया

#‎Ottoman_Empire سلطنت عثمانیہ सल्तनत-ए-उस्मानिया 【1299–1923】
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#ख़िलाफते_उस्मानिया

1258 ई0 में खिलाफते अब्बासिया का तातारियों के हाथों कत्लेआम के साथ खातमा हुआ और आखिरी अब्बासी खलीफा मुस्तअसिम बिल्लाह को जानवर की खाल में लपेट कर घोडे दौड़ा कर कुचल दिया गया...!!

है अयां युरिश ए तातार के अफसाने से..
पासबां मिल गए काबे को सनम खाने से..!!

बाद में यही तातारी कौम मुसलमान हो गई और तुर्क नस्ल के नाम से मशहूर हुई... इन्हीं तुर्को में फिर तीन शाही खानदान अलग-अलग इलाकों में हुकूमत पजीर हुए...
1.. तुर्काने तैमूरी... जिसकी नस्ल में बाबर पैदा हुआ और भारत में मुगल साम्राज्य की बुनियाद डाली।
2.. तुर्काने सफवी... जिसकी हुकूमत ईरान में क़ायम हुई
3.. तुर्काने सलजूकी... इस खानदान की बहुत मजबूत हुकूमत तुर्की के इलाके में...इस्ताम्बूल (कुस्तुनतुनिया ) को छोड़कर.. आसपास क़ायम हुई..!!

वक्त के साथ साथ सलजूकी हुकूमत जब कमजोर होने लगी तो कई छोटी छोटी रियासतों में बंट गई... आसपास मौजूद छोटे सुल्तान... सलजूकी सुल्तान पर हमले करने लगे.... और सन् 1300 ई0 तक सेल्जुकों का पतन हो गया था...!!

इन्ही रियासतों में मगरिबी अनातोलिया की छोटी सी रियासत में अल तुगरल बेग नाम का एक तुर्क सुल्तान था...!!

एक बार जब वो एशिया माइनर की तरफ़ कूच कर रहा था तो रास्ते में एक जगह पर दो छोटी फौजों को जंग करते हुए देखा... जिसमें से एक तरफ की फौज शिकस्त के करीब थी... उसने अपनी चार सौ घुड़सवारों की सेना को किस्मत की कसौटी पर आजमाया.. उसने हारते हुए पक्ष का साथ दिया और लडाई जीत ली... उसने जिनका साथ दिया वे सल्जूक थे...!!

सल्जूक सुल्तान ने अल तुगरल बेग को तोहफा बतौर अपनी बेटी निकाह में दी.. उसके बाद सल्जूकी सल्तनत का बाकी बचा हिस्सा भी तुगरल बेग की सुल्तानी में आ गया...यह सन 1288 का वाकया है...!!

तुगरल बेग के बाद उसका बेटा उसमान बेग सुल्तान बना और उसने 1299 में उस्मानी साम्राज्य की बुनियाद रखी .. इसी को अंग्रेजी में ऑटोमन, Ottoman Empire कहा जाता है..!!

पन्द्रहवीं और सोलवी सदी में उस्मानी साम्राज्य का विस्तार हुआ...उस दौरान यूरोप और एशिया के बीच के तिजारती रास्तो पर कंट्रोल की वजह से यह सल्तनत और मजबूत होती गई..!!

1453 ई0 में उस्मानी सुल्तान मुहम्मद फातेह ने कुस्तुनतुनिया का मुहासरा किया और कुछ दिनों की लडाई के बाद कुस्तुनतुनिया ( इस्ताम्बूल ) फतह कर लिया जो कि बाजनतीनी सल्तनत का दारुल खिलाफा चला आ रहा था....!!

यहां एक बात क़ाबिले गौर है कि... बाजनतीनी सल्तनत में रोमन कैथोलिक और ग्रीक ओर्थोडाक्स के फिरकों में बहुत सालों से फिरकेवाराना लडाई होती आ रही थी... रोमन कैथोलिक... ग्रीक ओर्थोडाक्स पर हावी रहते थे... जब सुल्तान मुहम्मद फातेह ने बाजनतीनी सल्तनत पर हमला किया तो ग्रीक ओर्थोडाक्स ने मुसलमानों का साथ दिया था... इसलिए सुल्तान ने ग्रीक चर्च को मज़हबी मामलात में ओटोनोमी दी.... बदले में चर्च ने उस्मानी सल्तनत की बरतरी कुबूल कर ली..!!

वक्त के साथ साथ यह सल्तनत और फैलती चली गयी...
सुल्तान सलीम (1512 - 1520) ने मशरिकी और जनूबी मोर्चों पर चल्द्रान की लड़ाई में फारस के सफवी खानदान के शाह इस्माइल को हराया..और इसके बाद उसने मिस्र में उस्मानी सल्तनत की तौसीअ की....!!

फिर वो वक्त भी आया जब उसमानी सल्तनत बढते हुए बगदाद और हिजाज तक फैल गयी...तब जाकर सन 1520 ई0 में... उसमानी सल्तनत.. खिलाफते उसमानिया में तब्दील हो गई...!!

जब सन 1453 में सुल्तान मुहम्मद फातेह ने कुस्तुनतुनिया फतेह किया तो ग्रीक ओर्थोडोक्स चर्च ने मुसलमानों का साथ दिया था इसलिए सुल्तान मुहम्मद ने चर्च को मजहबी मामलात में ओटोनोमी दे रखी थी.. इसके अलावा भी उसमानी सल्तनत की तरफ से ईसाइयों को बहुत सी सहूलियतें दी गई...
सुल्तान मुहम्मद ने जितनी भी मस्जिदें बनाईं... हर मस्जिद के साथ एक चर्च भी सरकारी खर्च पर बनाये...!!

उसमानी सल्तनत ने कानून बनाया हुआ था कि ईसाई आबादियों से भी फौज की भर्ती अनिवार्य थी... जबकि इस्लामी उसूल से यह जरा हटकर पालिसी थी...
यूगोस्लाविया के इलाके से बड़ी तादाद में फौजी भर्ती की गई... जब ये फौजी मुसलमानों के साथ घुल मिल कर रहे तो इस्लामी तालीमात से भी वाकिफ़ होने लगे... नतीजा यह हुआ कि बोस्निया में एक साथ दस लाख की आबादी मुसलमान हो गई...!!

जैसे जैसे वक़्त गुज़रता रहा... इन बोस्नियाई मुस्लिम की आबादी भी बढती गई.. इससे आसपास मौजूद रोमन कैथोलिक और रशियन ओर्थोडोक्स ईसाइयों में ..मुसलमानों की नफरत जोर पकड़ने लगी... जब तक उसमानी खिलाफत अपने उरूज पर रही.. इन ईसाइयों की हिम्मत नहीं हुई किसी तरह का इकदाम करने की... मगर जब उसमानियों में कमजोरी आना शुरू हुई तो ये ईसाई... मुस्लिम आबादियों पर हमले करने लगे...!!

जब उसमानी खिलाफत उरूज के बाद... ढलान से गुजर रही थी तो रूसियों ने हमले करने शुरू कर दिए और सन 1853 में बाक़ायदा रूसियों से जंग का सिलसिला शुरू हो गया... उसमानी खिलाफत के इलाकों में मौजूद रशियन ओर्थोडोक्स ईसाइयों के दिल में... मुसलमानों की शदीद नफ़रत घुसी हुई थी.. ये भी रूसियों की मदद करते थे...!!

इसके नतीजे में सन 1911 की मशहूर बल्कान वार हुई... जिसमें उसमानियों की शिकस्त हुई... और बोस्निया.. क्रोएशिया वगैरह की रियासतें... रूस के कब्जे में चली गई...मगर इस जीत से भी रूसियों को तसल्ली नहीं हुई.... उधर उसमानी अपने खोये हुए इलाके वापस चाहते थे...!!

फिर यूरोप की सियासत में ऐसा भूचाल आया कि 1914 में पहली आलमी जंग शुरू हो गई... इसमें उसमानी खिलाफत ने... जर्मनी और इटली के साथ धुरी राष्ट्रों का मोर्चा बनाया....!!

बहरहाल... इस जंग में धुरी राष्ट्रों की बुरी तरह शिकस्त हुई और सबसे ज्यादा नुकसान उसमानी खिलाफत को उठाना पड़ा.... नतीजे में उसमानी खिलाफत के टुकड़े टुकड़े कर दिए गए... कुछ इलाके ब्रिटेन के कब्जे में गये... कुछ फ्रांस के कब्जे में गए... मगर सबसे ज्यादा रियासतें रूसियों के कब्जे में चली गईं.... जो कि अब सोवियत संघ बन चुका था....!!

ये तमाम रियासतें 1989 में सोवियत यूनियन के बिखरने के बाद रूसियों से आजाद हो पायीं.....बल्कि दागिस्तान और चेचनियां तो अभी भी रूसियों के कब्जे में है जो कि साबिका उसमानी खिलाफत का हिस्सा है....!!

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सन् 1912 में रूस और फ्रांस में यह समझौता हुआ कि अगर बाल्कन के सवाल पर जर्मनी या ऑस्ट्रिया.....रूस से जंग करेंगे तो फ्रांस रूस के साथ रहेगा... फ्रांस का एतमाद हासिल हो जाने पर बाल्कन में रूस बेरोक टोक दखलंदाजी करने लगा....
दूसरे... रूस के उकसाने पर चार बाल्कन रियासतों ने मिलकर सन् 1912 में एक खूफिया समझौता किया... ये रियासतें थी... यूनान..बल्गेरिया..मांटीनीग्रो..सर्विया..!!

इस वक्त आटोमन एम्पायर जवाल पजीर थी और चारों तरफ इस्लाम दुश्मनों की साजिशें फैली हुई थी.... बाल्कन रियासतों के समझौते का मकसद था कि तुर्की खिलाफत का यूरोप से खात्मा दें और इसके बाद जीते हुए इलाकों को आपस में बाँट लें...!!

यह समझौता हो जाने पर बाल्कन रियासतों ने एक बहाना लेकर तुर्की के खिलाफ 17 अक्टूबर 1912 को एलाने जंग कर दिया... इस जंग में तुर्की खिलाफत की बहुत बुरी तरह शिकस्त हुई और मजबूर होकर तुर्क सुल्तान ने सुलह की पेशकश की...
दोनों तरफ के नुमाइंदों ने रूमानिया की राजधानी बुखारेस्ट में 10 अगस्त 1913 को एक ट्रीटी की... इस बुखारेस्ट के समझोते के जरिये बाल्कन रियासतों में कुछ अरसे के लिए अमन क़ायम हो गया... बाल्कन वार के नतीजे में सर्बिया तथा यूनान सबसे ज्यादा फायदे में रहे क्योंकि खिलाफते उसमानिया के यूरोपीय इलाकों का सबसे बड़ा हिस्सा इन्हीं को मिला...!!

बाल्कन वार का एक नतीजा यह हुआ कि यूरोप में तुर्की खिलाफत का लगभग खात्मा हो गया और बाल्कन में ईसाई रियासतों की ताकत में इजाफा होना शुरू हो गया.. इनमें आपस में कम्पटीशन होना भी शुरू हो गया जिसके नतीजे में पहली आलमी जंग की बुनियाद रखी गई..!!

बाल्कन रियासतों की बढती ताकत की वजह से जर्मनी और आस्ट्रिया को खतरे लाहक होने लगे.. ये दोनों बुखारेस्ट की संधि का खात्मा करना चाहते थे.. उनको केवल मौके की तलाश थी.. जल्द ही उनको मौका फराहम हो गया जब आस्ट्रिया के राजकुमार फर्डिनेन्ड और उसकी पत्नी का कत्ल सरायेवो में दिन दहाड़े एक सर्ब के हाथों 28 जून 1914 को हो गया.. और पहली जंगे अजीम की शुरुआत हो गई...!!

इस कत्ल के वाकये के एक महीने के बाद ऑस्ट्रिया ने सर्बिया के खिलाफ एलाने जंग किया.. रूस..फ्रांस और ब्रिटेन.. सर्बिया की तरफ से और जर्मनी आस्ट्रिया की तरफ से जंग में कूदे...1917 में अमेरिका भी ब्रिटेन फ्रांस व सर्बिया के साथ आ गया...!!

यहां आटोमन एम्पायर के सुल्तान को भी मौका मिला अपने खोये हुए इलाके वापस लेने का... लिहाजा कुछ अरसे बाद... जर्मनी और आस्ट्रिया की तरफ से तुर्की भी इस जंग की शामिल हो गया....!!

बहरहाल... इस जंगे अजीम में ब्रिटेन..फ्रांस और अमरीका के गठजोड़ ने फतह हासिल की और जर्मनी तुर्की आस्ट्रिया ( सेन्ट्रल पावर्स ) को बुरी तरह शिकस्त मिली.. जर्मनी और आस्ट्रिया की दरख्वास्त पर 11 नवम्बर 1918 को जंग के खात्मे का ऐलान हुआ... इस जंग में सबसे ज्यादा नुकसान खिलाफते उसमानिया को हुआ और अजीम आटोमन एम्पायर के हिस्से बखरे करके यूरोपियन मुल्कों ने आपस में बांट लिया.. बस ले देकर छोटा सा तुर्की ही बाकी रहा....!!

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जैसा कि आपने पढ़ा था कि.... खिलाफते उसमानिया जैसी अज़ीम हुकूमत उन्नीसवीं सदी से ही ज़वाल पज़ीर हो चुकी थी.. और इसी सदी के आखिर में 1890 में... फ्री मेसन्स जो कि यहूदी तहरीक ज़ायोनिज़्म का ही एक औज़ार

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