Friday 22 June 2018

KASHMIR INDIAN GOVT.

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हम अक्सर सोचते हैं कि जब कश्मीर में जवानों को पत्थर मार रहे हैं, फिर सरकार फौज़ को खुली छूट क्यों नहीँ दे देती?


आपको याद होगा, 1967 में बंगाल में NAXALBARI MOVEMENT हुआ था। ये माओवादी विचारधारा पर आधारित एक सशस्त्र आंदोलन था। लगभग 6 वर्षों तक वहाँ नक्सलवादियों की समानांतर सरकार चली।

अंततः सरकार ने 1974 में पुलिस को खुली छूट दे दी। फिर क्या था? नक्सली मारे गए, बन्दी बनाये गए या फिर बंगाल से भाग गए। और एक साल के भीतर पूरा आंदोलन समाप्त हो गया।

मॉरल ऑफ द स्टोरी ये है कि किसी भी आंदोलन को राज्य चाह दे तो वो सर्वाइव नहीँ कर सकता।

पर प्रश्न ये है कि राज्य फिर चाहता क्यों नही? (कश्मीर के संदर्भ में)

1951 में "हम भारत के लोगों ने" एक संविधान बनाया सबने मिल कर ये निर्णय लिया कि हम सब मिल कर "ऐसे" रहेंगे और देश को "ऐसा" बनाएंगे।

परंतु चाहे आप कितनी भी सुंदर व्यवस्था बना दें ;पूरी दुनियां में कहीं भी), कुछ लोगों को हमेशा ऐसा लगता है कि ये व्यवस्था ठीक नहीँ है, और वो विरोध करते हैं। यही कश्मीर में, और पूरी दुनियां में हो रहा है।

कश्मीर में लोग पत्थर मार रहे हैं। और ये बहस जारी है कि "वो भटके हुए नौजवान" या "आतंकवादी" या "आंदोलनकारी" हैं।

ऐसे में राज्य क्या करे?

जो हो रहा है, होने दे या फिर वही करे जो बंगाल में किया था। राज्य के लिए ये बहुत छोटी बात है।

दुनियाँ का सबसे बड़ा आतंकवादी/अलगाववादी संगठन श्रीलंका का LTTE था। पूरे विश्व मे सभी आतंकवादी संगठनों (अल-कायदा, ISSI, बोको हरम etc) ने मिल कर जितनी हत्याएं नहीँ की, उससे अधिक अकेले LTTE ने की (6 लाख हत्याएं)! पर फाइनली क्या हुआ?

श्रीलंका जैसे छोटे देश ने उनकी चटनी बना दी। मानवाधिकार का हनन, फलाना, ढिकाना, UN, US, EU ने क्या कर लिया?

बात समझ गए? आप चाहें तो श्रीलंका से सबक ले सकते हैं।मतलब ये है कि भारत के लिए इस आंदोलन को मसलने में 6 महीने से ज्यादा नहीँ लगेगा। आपके पास खूब सारे पत्थर, कुछ AK47 और हैंड ग्रेनेड्स हैं तो आपमें इतना कॉन्फिडेंस है।

सोचिए जिसके पास इतनी बड़ी फौज़, इतने मिसाइल, और न जाने क्या-क्या हैं, उसका आत्मविश्वास कितना होगा?

फिर भारत कुछ करता क्यों नहीँ?

क्योंकि ये भारत के ही नागरिक हैं, कोई दुश्मन नहीँ। हम किस पर गोलियां चलाएंगे? अपने ही लोगों पर? अगर आप पर मिनिमम बल प्रयोग (विधि व्यवस्था बनाये रखने के लिए जितना जरूरी हो) किया जा रहा है तो इसका ये मतलब नहीं कि राज्य कमज़ोर है। ऐसा इसलिए कि राज्य आपके प्रति संवेदनशील है। अपनों से लड़ना कठिन होता है। हम मारते भी हैं, तो दर्द हमें ही होता है।

जब तक हम आपको अपना समझ रहे हैं ना, तभी तक आपकी ये सारी हरकतें बर्दास्त की जा रही हैं। पर सर, आप भी धैर्य की इन्तेहाँ मत परखिये। जिसके दम पर आप चौड़े हो रहे हैं न, उनको कितनी बार हम मसल चुके हैं।

आप समझिए, मान जाइये, आइए मिल जुल कर,  बातचीत से मामला सुलझा लें। आप उतना ही गुदगुदाइये जितने में हँसी आये, इतना मत गुदगुदा दीजिये कि हम रोने लगें। बर्दास्त की एक सीमा होती है, किसी की भी।

जिस दिन राज्य ये कन्विन्स हो गया कि आप "अपने" नहीँ अब दुश्मन हो चुके हैं। सर, यकीन मानिए, फिर जो आपके साथ होगा न, वो सोच के ही मैं चिंतित हो जाता हूँ। फिर कोई आपके काम नहीँ आएगा। समझ जाइये। राज्य को बाध्य मत कीजिये, कड़े फैसले लेने के लिए। इतिहास में थोड़ा अंदर बाहर झांक लीजिये।समझ जाएंगे।

आगे आपकी मर्ज़ी। शुभकामनाएं।

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