Wednesday 20 June 2018

IMP_Article =>भारतीय मुद्रा फिर से 68 रुपये प्रति डॉलर से नीचे क्यों चली गई है? गिरते रुपए का हम पर क्या असर होगा?

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=>भारतीय मुद्रा फिर से 68 रुपये प्रति डॉलर से नीचे क्यों चली गई है? गिरते रुपए का हम पर क्या असर होगा?

०० डॉलर की तुलना में रुपया लगातार गिर रहा है और एक बार फिर से एक डॉलर की कीमत 68 रुपये से ज्यादा हो गई है. पिछले साढ़े पांच महीने में डॉलर का भाव चार रुपये से ज्यादा मजबूत हो चुका है. इससे पहले 2018 की शुरुआत में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार में एक डॉलर 63.90 रुपये का था.

- बीते कुछ हफ्तों से रुपये को थामने की भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की कोशिश प्रभावी साबित हो रही थी. लेकिन पिछले हफ्ते अमेरिका में ब्याज दर के बढ़ते ही स्थिति पहले से भी ज्यादा खराब हो गई है.
०० ऐसे में​ गिरते रुपये को मजबूत करने के लिए आरबीआई को पहले से कहीं ज्यादा डॉलर बेचने होंगे, अन्यथा डॉलर 2013 के 68.85 रुपये के न्यूनतम स्तर को भी पीछे छोड़ सकता है. ऐसे में आयातित उत्पादों के महंगा होने से देश में महंगाई का संकट और विकट हो जाएगा.

=>रुपये की कमजोरी के मूल कारण

1. अमेरिकी अर्थव्यवस्था की मजबूती - 2008 की वैश्विक आर्थिक मंदी के एक दशक बाद अमेरिकी अर्थव्यवस्था अब लगभग सामान्य हो गई है. इस साल उसकी विकास दर के करीब तीन फीसदी रहने का अनुमान है और मौजूदा तिमाही में वह साढ़े तीन फीसदी तक रह सकती है.
०० इसके अलावा अमेरिका में खुदरा महंगाई दर भी मई में बढ़कर 2.8 फीसदी हो गई है जबकि बेरोजगारी दर पिछले दो दशकों के न्यूनतम स्तर - 3.8 फीसदी - तक चली गई है. इसके अलावा ट्रंप सरकार की कर कटौती के कदम और अमेरिकी उद्योगों को मजबूत बनाने वाले कई फैसलों से भी उसकी अर्थव्यवस्था में उत्साह का संचार हुआ है. इन मिली-जुली वजहों से वहां के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने ब्याज दर को इस साल दूसरी बार चौथाई फीसदी बढ़ाते हुए कुल दो फीसदी कर दिया है.

०० अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मजबूती और ब्याज दर में बढ़ोत्तरी की वजह से बहुतेरे निवेशक भारत और दुनिया के दूसरे देशों से अपना निवेश निकाल कर अमेरिका ले जाने लगे हैं. इससे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार में डॉलर की मांग कम होने का नाम ही नहीं ले रही है. उधर यूरोपीय देशों के औसत प्रदर्शन से भी अमेरिका में निवेश और डॉलर दोनों को मजबूती मिल रही है.

2. कच्चे तेल की कीमतों में लगी आग - कच्चा तेल हालांकि पिछले तीन हफ्तों में छह डॉलर सस्ता होकर 73 डॉलर प्रति बैरल तक चला गया है. लेकिन अपनी तेल जरूरतों का 80 फीसदी आयात करने वाले भारत के लिए इसका यह भाव भी चिंताजनक ही कहा जाएगा. इससे भी रुपये पर दबाव बना हुआ है. क्योंकि कच्चा तेल महंगा होने से न केवल डॉलर की मांग बढ़ी हुई है बल्कि चालू खाते का घाटा (वस्तु और सेवाओं के निर्यात की तुलना में ज्यादा आयात) भी इस समय जीडीपी के दो फीसदी के आसपास बना हुआ है.
०० कच्चा तेल महंगा होने की मुख्य वजह ओपेक और रूस द्वारा जनवरी 2017 से इसके उत्पादन में कटौती करने का फैसला है. इसके अलावा अमेरिका ने पिछले महीने ईरान के साथ तीन साल पहले के परमाणु समझौते को तोड़ने का ऐलान करते हुए उस पर फिर से प्रतिबंध लगा दिया है. ०० वहीं दक्षिणी अमेरिकी देश वेनेजुएला में आर्थिक संकट के और गहराने से कच्चे तेल का वैश्विक उत्पादन और निर्यात खासा प्रभावित हो गया है.

=>कमजोर रुपये से फायदे क्या और नुकसान क्या?
०० रुपये की कमजोरी से सबसे बड़ा नुकसान तो यही होता है कि इससे आयातित उत्पाद महंगे हो जाते हैं. महंगे कच्चे तेल की समस्या से पहले ही जूझ रही हमारी अर्थव्यवस्था के लिए यह दशा जले पर नमक जैसी हो जाती है.
०० हम अपनी जरूरत का 80 फीसदी कच्चा तेल आयात करते हैं और रुपया कमजोर होने से न केवल ईंधन और महंगा हो जाता है बल्कि उसकी ढुलाई भी महंगी हो जाती है.
०० आरबीआई ने अप्रैल में बताया था कि रुपये के तीन डॉॅलर से ज्यादा कमजोर होने पर खुदरा महंगाई में 0.15 फीसदी की वृद्धि हो जाती है. हालांकि कमजोर रुपये से देश के निर्यात को मजबूती मिल सकती है. क्योंकि ऐसे में विदेशी ग्राहकों को भारतीय चीजें सस्ती लगने लगती हैं.
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