जल संकट
कोशिका पृथ्वी पर मौजूद किसी भी जीव की सूक्ष्मतम इकाई है,और किसी भी कोशिका में तीन चौथाई से ज्यादा भाग जल का होता है।
अर्थात जीवन की उत्पत्ति में जल सबसे प्रमुख घटक रहा होगा। मनुष्य और अन्य प्राणियों के जीवित रहने के लिए प्राणवायु ऑक्सीजन के बाद दूसरी सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता जल ही है,जल के बिना हम जीवन की कल्पना ही नहीं कर सकते।
जीवन के साथ साथ जल का मानव सभ्यता में भी बहुत योगदान रहा है,सिंधु घाटी सभ्यता हो या दजला फरात की सभ्यता,विकास वहीं हुआ जहां जल था।नदियों के किनारे नगर बसे,मनुष्य ने खेती करना शुरू किया,व्यापार किया और अपनी सभ्यता और संस्कृति का प्रसार किया।जल का ऐतिहासिक और जैविक महत्व है लेकिन विगत कुछ दशकों से विश्व के कुछ शहरों जैसे में जल संकट की भयावह स्थिति उतपन्न हुई है।
2016 के लातूर के जल संकट और इस वर्ष के जोहांसबर्ग और शिमला के जल संकट ने मानवीय सभ्यता को चेतावनी दी है।
भारत समेत दुनिया के कई देश जल संकट से जूझ रहे हैं,दुनिया के दो तिहाई से ज्यादा भाग पर जल मौजूद होने के बावजूद पीने योग्य मीठा पानी केवल 3 प्रतिशत ही है और उसमें से भी हम केवल 1 प्रतिशत पानी का उपयोग कर पाते हैं।वस्तुतः जल की मात्रा में कमी नहीं आई है,जल पृथ्वी पर आज भी उतना ही है जितना 2000 वर्ष पहले था लेकिन आज की तुलना में 2000 वर्ष पहले आबादी लेवल 3 प्रतिशत थी और मानव जल समेत प्राकृतिक संसाधनों के लिए प्रकृति में हस्तक्षेप नहीं करता था।पृथ्वी पर मौजूद ये एक प्रतिशत जल,जल चक्र में चक्कर लगाता रहता है,लेकिन औद्योगिक अपशिष्ट से उपजा प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग से बाधित ऋतु परिवर्तन इस जल चक्र को बाधित कर रहा है,कभी अल्प वृष्टि सूखे का कारण होती है और कभी अनावृष्टि बाढ़ का कारण बन जाती है,साथ ही औद्यौगिक कारखानों से निकल अपशिष्ट भूमिगत जल को दूषित कर रहा है तथा जल की उस एक प्रतिशत उपलब्धतता को भी सीमित कर रहा है।जल का संकट कृषि को प्रभावित कर सकता है साथ ही पारिस्थिकी असुंतलन को बढ़ा सकता है।
जल का संकट मानव के साथ जैव विविधता के लिए भी बड़ा संकट है।
वर्षा के मामले में भारत की स्थिति के देशों से बेहतर है,यहां औसत वार्षिक वर्षा 20-25 इंच तक होती है,लेकिन उचित प्रबंधन न होने के कारण अधिकांश जल बहकर समुद्र में चला जाता है,केवल बारिश के जल को संरक्षित करने के पर्याप्त इन्तिज़ाम कर लिए जाएँ तो बाढ़ से मुक्ति तो मिल ही सकती है साथ ही भूजल स्तर को भी बढाया जा सकता है,सूखे और अकाल से बचा जा सकता है तथा मृदा अपरदन को रोका जा सकता है ।एक अनुमान के अनुसार कुल भूभाग के केवल 5% भाग पर होने वाली बारिश से हम प्रतिव्यक्ति प्रति दिन एक बिलियन लोगों को 100लीटर पानी उपलब्ध करवा सकते हैं ।
गिरता भूजल स्तर एक गंभीर समस्या है लेकिन पर्याप्त जागरूकता और समुचित प्रबंधन के द्वारा इस समस्या से लम्बे समय के लिए छुटकार पाया जा सकता है ।
जल संकट को अवगत करवाते हुए पर्याप्त जागरूकता कार्यक्रम चला कर जल संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करके जल की महत्ता के भाव को स्थापित कर सकते हैं। स्कूलों में पर्यावरण के साथ जल संरक्षण को व्यापक तरीके से परिचित करवा कर वर्तमान और भविष्य दोनों को सुरक्षित करने के लिए पाठ्यक्रम और पाठ्य सह गतिविधियाँ सहायक सिद्ध होंगी ।जागरूक व्यक्ति इस संकट की भयावहता से समाज को अवगत करवा सकें तो जल संरक्षण में अच्छी जागरूकता लाई जा सकती हैं।राजस्थान के रेगिस्तानों इलाकों और गुजरात के कुछ इलाकों में पारंपरिक रूप से घर के अंदर भूमिगत टैंक बनाकर जल संग्रह करने का प्रचलन है,इस परंपरा को अन्य राज्यों में लागू कर हम इस गंभीरता को कम कर सकते हैं।कठोर कानून के द्वारा नदियों में छोड़े जाने वाले अपशिष्ट पर ल“राष्ट्रीय जलनीति 1987 के अनुसार,जल प्रमुख प्राकृतिक संसाधन है। यह मनुष्य की बुनियादी आवश्यकता है और बहुमूल्य संपदा है। प्रकृति ने हवा और जल प्रत्येक जीव के लिए निःशुल्क प्रदान किए हैं।“ इस संदेश को ध्यान में रख कर जल के व्यवसायीकरण पर रोगाम लगाकर जल प्रदूषण को रोका जा सकता है और वर्षा चक्र को बाधित होने से बचाया जा सकता है । क लगाने के ठोस प्रबंध किये जाने चाहिए ।
हमारी आज की जागरूकता हमारे वर्तमान को सुरक्षित कर सकेगी तथा और अगली पीढ़ी को #जल_समृद्ध_भविष्य दे सकती है ।
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