↪️जलवायु परिवर्तन और इसके व्यापक प्रभाव:
🏵️जलवायु परिवर्तन औसत मौसमी घटनाओं के पैटर्न में अप्रत्याशित रूप से बदलाव आने को कहते हैं। सामान्यतः इन बदलावों का अध्ययन पृथ्वी के इतिहास को दीर्घ अवधियों में बाँट कर किया जाता है। जलवायु की दशाओं में यह बदलाव प्राकृतिक भी हो सकता है और मानव के क्रियाकलापों का परिणाम भी।
ग्रीनहाउस प्रभाव और वैश्विक तापमान में वृद्धि को मनुष्य की क्रियाओं का परिणाम माना जा रहा है जो औद्योगिक क्रांति के बाद मनुष्य द्वारा लगाए गए उद्योगों से निकलने वाली कार्बन डाई आक्साइड आदि गैसों के वायुमण्डल में अधिक मात्रा में बढ़ जाने का परिणाम है। जलवायु परिवर्तन के खतरों के बारे में वैज्ञानिक लगातार आगाह करते आ रहे हैं।
🔯जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारक:
जलवायु में परिवर्तन के लिए जिम्मेदार कारकों में सौर विकिरण में बदलाव, पृथ्वी की कक्षा में बदलाव, महाद्वीपों की परावर्तकता में बदलाव, वातावरण, महासागरों, पर्वत निर्माण और महाद्वीपीय बहाव तथा ग्रीनहाउस गैस की सांद्रता में परिवर्तन आदि शामिल हैं।
जलवायु परिवर्तन के अंदरुनी तथा बाहरी कारक हो सकते हैं। अंदरुनी कारको में जलवायु प्रणाली के भीतर ही प्राकृतिक प्रक्रियाओं में हो रहे परिवर्तन शामिल हैं (जैसे की उष्मिक परिसंचरण), वही बाहरी कारको में कुछ प्राकृतिक (जैसे: सौर उत्पादन में परिवर्तन, पृथ्वी की कक्षा, ज्वालामुखी विस्फोट) या मानवजनित (जैसे: ग्रीन हाउस गैसों और धूल के उत्सर्जन में वृद्धि) शामिल हो सकते हैं।
कुछ परिवर्तन कारको का जलवायु में बहुत जल्द ही प्रभाव पड़ता हैं जबकि कुछ प्रभवित करने में सालो लगा देते हैं।
🔯मानवजनित कारक:
मानवीय कारकों में सबसे अधिक चिंता का विषय, औद्योगिकरण के लिए कोयले और पेट्रोलियम पदार्थों जैसे फासिल फ्यूएल्स का अंधाधुंध उपयोग के कारण कार्बन डाई ऑक्साइड का बेहिसाब उत्सर्जन होना हैं, इसके अलावा वायुमंडल का सुरक्षा कवच ओजोन परत, जो सूर्य के खतरनाक रेडिएशन को रोकता है का लगातार हास होना। जनसंख्या वृद्धि, जल को बेहिसाब उपयोग, वनों की अंधाधुंध कटाई आदि भी मानवीय कारको में शामिल हैं।
🔯ग्रीन हाउस इफेक्ट:
पृथ्वी का वातावरण सूर्य की कुछ ऊर्जा को ग्रहण करता है, उसे ग्रीन हाउस इफेक्ट कहते हैं। पृथ्वी के चारों ओर ग्रीन हाउस गैसों की एक परत होती है। इन गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड शामिल हैं। ये गैसें सूर्य की ऊर्जा का शोषण करके पृथ्वी की सतह को गर्म कर देती है इससे पृथ्वी की जलवायु परिवर्तन हो रहा है। गर्मी की ऋतु लम्बी अवधि की और सर्दी की ऋतु छोटी अवधि की होती जा रही है। ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में विभिन्न गैसें:
कॉर्बन डाइऑक्साइड (लकड़ी, कोयला के जलने पर): 57%
कॉर्बन डाइऑक्साइड (वृक्षों की कटान हो जाने पर): 17%
मीथेन: 14%
नाइट्रस ऑक्साइड: 8%
कॉर्बन डाइऑक्साइड: 3%
फ्लोरिनेटेड गैसें: 1%
जलवायु परिवर्तन के वीभत्स प्रभाव:
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, अगले 50 साल में दुनिया उजड़ जायेगी। ‘इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज’ (आइपीसीसी) के अध्ययन के मुताबिक, बीती सदी के दौरान पृथ्वी का औसत तापमान 0.28 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है।
पृथ्वी के औसत तापमान में हो रही यह वृद्धि जलवायु और मौसम प्रणाली में व्यापक स्तर पर विनाशकारी बदलाव ला सकती है। जलवायु और मौसम में बदलाव के सबूत मिलने शुरू हो चुके हैं। भू-विज्ञानियों ने खुलासा किया है कि पृथ्वी में से लगातार 44 हजार बिलियन वाट ऊष्मा बाहर आ रही है।
वर्ष 1850 के बाद से पिछले 12 वर्षों में से 11 को सबसे गर्म सालों में गिना गया है। समुद्र का तापमान 3000 मीटर की गहराई तक बढ़ चुका है।
भूमध्य और दक्षिण अफ्रीका में सूखे की समस्या बढ़ती जा रही है।अंटार्टिका में बर्फ जमे हुए क्षेत्र में 7 प्रतिशत की कमी हुई है जबकि मौसमी कमी की रफ्तार 15 प्रतिशत तक हो चुकी है।
उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्से, उत्तरी यूरोप और उत्तरी एशिया के कुछ हिस्सों में बारिश ज्यादा हो रही है। पश्चिमी हवाएं बहुत मजबूत हो रही हैं। सूखे की रफ्तार तेज होती जा रही है, भविष्य में यह ज्यादा लंबे वक्त तक और ज्यादा बड़े क्षेत्र में होंगे।
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