Monday, 9 August 2021

भारतीय संस्कृति -6: प्राचीन भारतीय वास्तुकला

 प्राचीन भारतीय वास्तुकला का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार से है –

सिंधु घाटी सभ्यता

सिंधु घाटी सभ्यता विश्व के इतिहास की पहली नगरीय सभ्यता थी। इसकी खोज 1921 में हुई। इसमें खुदाई के दौरान स्थापत्य क्ला के जो नमूने प्राप्त हुए वो उस समय की अन्य सभ्यताओं से अधिक श्रेष्ठ थे। इसमें नगरों का विकास शतरंज के बोर्ड की तरह किया गया था। नालियों का अच्छा बंदोबस्त था। सिंधु घाटी सभ्यता के एसटीएचएल मोहनजोदडो से विशाल स्नानागार प्राप्त हुआ है। हड़प्पा नमक स्थल से विशाल अन्नागार प्राप्त हुआ है।

वैदिक काल से मगध काल तक

सिंधु घाटी सभ्यता के पाटन के बाद वैदिक सभ्यता का उदय हुआ। वैदिक काल की सभ्यता ग्रामीण होने के कारण स्थापत्य कला का नमूना आज तक शेष नहीं है। वैदिक काल का मुख्य योगदान भारतीय साहित्य और संस्कृति में है। सोलह महाजनपदों के समय के स्थापत्य के नमूने भी आज मौजूद नहीं है।

मौर्यकाल

मौर्यकाल में भारतीय स्थापत्य कला का विकास हुआ। अशोक के शिलालेख, सारनाथ स्तूप, बराबर की गुफाएँ इस काल की स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है।

सारनाथ धमेख स्तूप

सारनाथ उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में स्थित है। यहाँ गौतम बुध्द ने अपना प्रथम उपदेश दिया था। सारनाथ में धमेख और चौखंडी स्तूप हैं। धमेख स्तूप स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है, जिसका निर्माण अशोक ने कराया। सारनाथ में अशोक का शिलालेख भी प्राप्त हुआ है।

बराबर की गुफाएँ

यह बिहार के गया जिले में स्थित हैं। इसमें अशोक का शिलालेख स्थित है। बताया जाता है इसे अशोक ने भिक्षुओं को दान किया था।

मौर्योत्तर कालीन स्थापत्य कला

मौर्य काल के बाद पुष्यमित्र शुंग का राज्य प्रारम्भ हुआ। पुष्यमित्र शुंग ने भरहूत स्तूप का निर्माण कराया। सातवाहन राजाओं ने अनेक मंदिर, चैत्य और विहार बनवाए। नासिक शिलालेख सातवाहन राजा गौतमीपुत्र श्री शातकर्णी से संबन्धित है।

कुषाण कला

कुषाण चीन की यू-ची जाति से संबन्धित थे। उनके काल में मथुरा और गांधार स्कूल प्रमुख थे जो काला से संबन्धित थे। इस काल में मूर्तिकला का काफी विकास हुआ। पक्की ईंटों का प्रयोग इसी काल में आरंभ हुआ।

गुप्तकालीन स्थापत्य-कला

गुप्तकाल को प्राचीन भारत का स्वर्ण-काल कहा जाता है। गुप्त-काल में मंदिर निर्माण कला का प्रारम्भ हुआ। इस काल में देवताओं की मूर्तियाँ मंदिरों के गर्भग्रह में रखी जाती थीं। सारनाथ का धमोख स्तूप इसी काल में पूर्ण हुआ।  इस काल में मंदिर छोटी-छोटी ईंटों और पत्थरों के बनाए जाते थे।

इस काल में अनेक मंदिर बनाए गये, जिनमें से प्रमुख उदाहरण इस प्रकार हैं:

  • दशावतार मंदिर- देवगढ़ (झांसी)
  • भीतरगाँव मंदिर- भीतरगाँव (कानपुर)
  • शिव मंदिर, भूमरा (नागौर)
  • पार्वती मंदिर, नचना-कुठारा (पन्ना)
  • दशावतार मंदिर- दशावतार मंदिर गुप्तकालीन स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है। यह झांसी जिले के बेतवा नदी के तट पर स्थित शहर देवगढ़ में स्थित है। यह विष्णु भगवान का मंदिर है।

दक्षिण भारतीय प्राचीन स्थापत्यकला

दक्षिण भारत में वकाटक वंश, बादामी के चालुक्य, राष्टकूट, पल्लव राजाओं, गंग वंश, चोल वंश का राज्य रहा।

नटराज मंदिर

नटराज मंदिर तमिलनाडू के चिदम्बरम में है। इसका निर्माण चोल वंश के राजाओं ने कराया। इसमें नटराज की मूर्ति है। नटराज का अर्थ होता है तांडव नृत्य की मुद्रा में शिव।

बृहदेश्वर मंदिर

बृहदेश्वर मंदिर तमिलनाडू के थंजावूर में है। यह एक विश्व प्रसिध्द मंदिर है। इसे राजाराज चोल प्रथम ने बनवाया। यह ग्रेनाइट का मंदिर है जो पूरी दुनिया में अपनी तरह का एकमात्र मंदिर है। इसका विमान (शिखर) 16 मंजिल ऊंचा है।

कैलाश मंदिर, एलोरा

कैलाश मंदिर एक विश्व प्रसिध्द मंदिर है जो महाराष्ट्र के औरंगाबाद में एलोरा में स्थित है। इसे राष्ट्रकूट राजा कृष्ण प्रथम ने विशाल चट्टान को काटकर बनवाया।

ऐरावतेश्वर मंदिर

इसे चोल राजा राजाराज चोल द्वितीय ने बनवाया। इस मंदिर पर मुस्लिम सेनाओं ने आक्रमण भी किया किन्तु पुनः हिन्दू साम्राज्य की स्थापना के समय इसका और अन्य हिन्दू मंदिरों का पुनर्निर्माण हुआ।

कोणार्क का सूर्य मंदिर

इसका निर्माण गंग शासक नरसिंहदेव ने कराया। इसे ब्लैक पेगोड़ा कहा जाता है। इसमें सूरी के मंदिर को खींचते हुए सात रथ थे। जिसमें 24 पहिये लगे हुए थे।

राजपूतकालीन स्थापत्यकला

राजपूत कालीन उत्तर भारतीय मंदिर दक्षिण भारतीय मंदिरों से अलग है। खजुराहो में कई विश्व प्रसिद्ध मंदिर हैं जिनका निर्माण चंदेल राजाओं ने कराया था। खजुराहो के विष्णु मंदिर का निर्माण चंदेल राजा यशोवर्मन ने कराया। कंडरिया महादेव मंदिर, विश्वनाथ मंदिर, वैद्यनाथ मंदिर का निर्माण यशोवर्मन के पुत्र धंग ने कराया।  सोमनाथ का शिव मंदिर राजपूत राजाओं ने बनवाया था।

मंदिर निर्माण की प्राचीन भारतीय शैलियाँ

नागर शैली

इसका निर्माण ‘नगर’ शब्द से हुआ है। इसका विकास उत्तर भारत में मुख्यतया हुआ है। इसमें मंदिर के आठ अंग होते हैं:- मूल आधार, मसूरक, जंघा, कपोत, शिखर, ग्रीवा, वर्तुलाकार आमलक, कलश। इसमें प्रमुख मंदिर खजुराहो के कंडरिया महादेव, भुवनेश्वर का लिंगराज, पूरी का जगन्नाथ मंदिर, कोणार्क का सूरी मंदिर, दिलवाड़ा मंदिर, सोमनाथ मंदिर हैं।

द्रविड़ शैली

यह मंदिर निर्माण की दक्षिण भारतीय शैली है। इसमें मंदिर का आकार चौकोर होता है और गोपुरम प्रवेश के लिए होता है। इसमें शिखर(विमान) प्रमुख होते हैं। प्रमुख उदाहरण वातापी का विरूपाक्ष मंदिर, बृहदेश्वर मंदिर, शोर मंदिर, कैलाश मंदिर हैं।

वेसर शैली

यह नागर शैली और द्रविड़ शैली की मिश्रित शैली है। होयसल और चालुक्य मंदिर इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

अन्य शैलियाँ पगोड़ा शैली, संधार शैली, निरंधार शैली, सर्वतोभद्र शैली हैं।

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