हीनयान सम्प्रदाय साहित्य
बौद्ध धर्म से सम्बंधित ग्रन्थ व पुस्तकें प्राचीन काल से लिखी जानी प्रारम्भ हुई थी। छठवीं शताब्दी में बौद्ध धर्म के उदय के पश्चात् ही बौद्ध धर्म व दर्शन पर ग्रंथों की रचना की जाने लगी। यह ग्रन्थ अथवा धार्मिक पुस्तकें भारत के प्राचीन इतिहास की जानकारी प्राप्त करने के लिए अत्यंत उपयोगी है। बुद्ध के मृत्यु के बाद विभिन्न संगीतियों में कई महत्वपूर्ण बौद्ध ग्रंथों का संकलन किया गया। विभिन्न बौद्ध ग्रंथों का वर्णन निम्नलिखित है :
त्रिपिटक
त्रिपिटक बौद्ध धर्म के प्राचीन ग्रन्थ है, यह ग्रन्थ बौद्ध धर्म के सभी सम्प्रदायों में मान्य हैं। इन ग्रंथों में बुद्ध की शिक्षा व उपदेशों का संकलन है। इसमें बुद्ध द्वारा बुद्धत्व प्राप्त करने तक के सभी प्रवचनों का संग्रंहन किया गया है। इसकी रचना पालि भाषा में की गयी है। त्रिपिटक की रचना 500 ईसा पूर्व से 100 ईसा पूर्व के दौरान की गयी।
विनयपिटक
विनयपिटक त्रिपिटक का हिस्सा है, यह मुख्य रूप से भिक्षु और भिक्षुणियों पर आधारित है। इस पुस्तक में बौद्ध भिक्षु व भिक्षुणियों के लिए नियमों व अनुशासन का विस्तृत विवरण दिया गया है। इसके मुख्य भाग निम्नलिखित हैं:
पातिमोक्ख– पातिमोक्ख में अनुशासन सम्बन्धी नियमों का उल्लेख किया गया है। इसमें नियमों का उल्लंघन करने के बाद किये जाने वाले प्रायश्चित के वर्णन है।
सुत्तविभंग –इसमें बौद्ध भिक्षुओं के लिए नियमों का उल्लेख है, इसके दो भाग महाविभंग और भिक्खुनी है।
खंधक –खंधक में संघ में निवास करने वाले लोगों के लिए नियमों का वर्णन है। महावग्ग और चुलवग्ग इसके दो भाग हैं।
परिवार –इसमें प्रश्नोत्तर हैं, यह विनयपिटक का आखिरी हिस्सा है।
सुत्तपिटक
सुत्त का शाब्दिक अर्थ है धर्मोपदेश। बुद्ध के धार्मिक विचारों और उपदेशों का संग्रह है। इसमें तर्क और संवाद के रूप में बुद्ध के सिद्धांतों का वर्णन किया गया है। इसमें छोटी-छोटी कहानियां भी संकलित की गयी हैं। इसका विभाजन पांच निकायों में किया गया है-
दीघनिकाय –गद्य और पद्य दोनों में रचित है, इस निकाय में अन्य धर्म के सिद्धांतो का खंडन व बौद्ध धर्म के सिद्धांत का समर्थन किया गया है। इसमें महात्मा बुद्ध के जीवन के अंतिम उपदेशों, मृत्यु और अंत्येष्टि का वर्णन किया गया है। महापरिनिब्बानसुत्त इसका सर्वाधिक महत्वपूर्ण सुत्त है।
मज्झिम -मज्झिम में बुद्ध की परिकल्पना एक देवता के रूप में की गयी है।
संयुक्त –निकाय में गद्य व पद्य दोनों शैलियों के उपयोग किया गया है, यह अनेक संयुक्तों का संकलन मात्र है।
अंगुत्तर –इसमें बुद्ध ने भिक्षुओं को उपदेश दिए हैं। इसमें प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों का ज़िक्र किया गया है।
खुद्दक –यह एक स्वतंत्र पुस्तक है, यह एक लघु ग्रन्थ है।
अभिधम्मपिटक
अभिधम्मपिटक में बुद्ध के उपदेशों और सिद्धांतों की व्याख्या की गयी है। इसका संकलन तृतीय बौद्ध संगीति में मोग्ग्लिपुत्त तिस्स द्वारा किया गया था। इसके सात अन्य ग्रन्थ धम्मसंगणि, विभंग, धातुकथा, पुग्गलपन्नती, कथावत्थु, यमक और पत्थान है। इन्हें सत्तप्रकरण कहा जाता है। त्रिपिटकों के अतिरिक्त कुछ अन्य बौद्ध ग्रन्थ भी पाली भाषा में लिखे गए हैं जो निम्नलिखित हैं :
मिलिंदपन्हो
इसमें यूनानी शासक मिनांडर और बौद्ध भिक्षु नागसेन के बीच वार्तालाप का वर्णन है। इसकी रचना पालि भाषा में की गयी है। इसे नागसेन सूत्र भी कहा जाता है। इसकी रचना 200-100 ईसा पूर्व में की गयी थी।
महायान सम्प्रदाय के साहित्य
महायान सम्प्रदाय के साहित्य में दन्त कथाओं का वृहत भण्डार मौजूद है, इन कथाओं को अवदान कहा जाता है। शतक, दिव्यदान तथा कल्पता इत्यादि कुछ प्रमुख अवदान हैं। महायान सम्प्रदायसे सम्बंधित ग्रन्थ वैपुल्यासुत्र है। इसके अंतर्गत अष्टसहसृका, प्रज्ञापारमिता, सद्धर्मपुंडरिक, ललित विस्तार, लंकावतार, सुवर्ण प्रभास, गंडव्यूह, तथागत गुणज्ञान, समाधिराज तथा दशभुमिश्वर नामक ग्रन्थ आते हैं।
प्रज्ञापारमिता –यह महायान सम्प्रदाय की सबसे महत्वपूर्ण दार्शनिक पुस्तक है। इसमें प्रज्ञा अर्थ शून्यवाद की प्राप्ति पर बल दिया गया है। इसकी रचना नागार्जुन द्वारा की गयी है।
जातक – इसमें भगवान् बुद्ध के 84,000 पूर्व जन्मो की 500 से अधिक गाथाएं मजूद हैं, यह खद्दक निकाय का 10वां ग्रन्थ है। यह गद्य-पद्य में निर्मित ग्रन्थ है। चीनी यात्री फाह्यान ने पांचवी सदी में श्रीलंका में जातक पर आधारित चित्रों का उल्लेख किया गया है।
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