Friday 12 February 2021

विशेषाधिकार हनन

संदर्भ:

भाजपा सांसद पी.पी. चौधरी द्वारा, लोकसभा में भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ टिप्पणी करने के लिए तृणमूल कांग्रेस के सांसद महुआ मोइत्रा के खिलाफ विशेषाधिकार हनन नोटिस दिया गया है।

संबंधित प्रकरण:

राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान बोलते हुए, सांसद महुआ मोइत्रा ने न्यायाधीश के आचरण के संबंध में कुछ आक्षेप लगाए थे। तो सवाल यह है कि सदन के पटल पर, किसी न्यायाधीश के आचरण पर चर्चा की जा सकती है अथवा नहीं?

संविधान के अनुच्छेद 121 में, किसी वर्तमान अथवा पूर्व न्यायाधीश पर आरोप लगाए जाने को प्रतिबंधित किया गया है।

‘विशेषाधिकार’ क्या होते हैं?

संसदीय विशेषाधिकार, मूलतः सदन के सदस्यों को प्राप्त अधिकार और उन्मुक्ति को संदर्भित करते है। इन अधिकारों के तहत  सदन के सदस्यों के विरुद्ध अपने विधायी दायित्वों को पूरा करने के दौरान किये गए कृत्यों अथवा दिए गए व्यक्तव्यों के लिए किसी प्रकार की सिविल अथवा आपराधिक कार्यवाही नहीं की जा सकती है।

विशेषाधिकार संबंधी संवैधानिक प्रावधान:

संविधान के अनुच्छेद 105 के अंतर्गत भारतीय संसद, इसके सदस्यों तथा समितियों को प्राप्त विशेषाधिकार उन्मुक्तियों का उल्लेख किया गया है।

संविधान का अनुच्छेद 194, राज्य विधानसभाओं, इसके सदस्यों तथा समितियों को प्राप्त, शक्तियों, विशेषाधिकारों और उन्मुक्तियों से संबंधित है।

‘विशेषाधिकार हनन’ क्या होता है?

विशेषाधिकार हनन निर्धारित करने तथा उसके लिए दंड के संबंध में कोई स्पष्ट, अधिसूचित नियम नहीं हैं।

  • सामान्यतः, ऐसा कोई कार्य जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से, संसद के किसी सदन के काम में बाधा या अड़चन डालता है अथवा संसद के किसी सदस्य या अधिकारी के कर्त्तव्य निर्वहन में बाधा उत्पन्न करता है, विशेषाधिकार हनन के रूप में माना जाता है।
  • सदन, उसकी समितियों या सदस्यों पर आक्षेप लगाने वाले भाषण, अध्यक्ष के कर्त्तव्यों के पालन में उसकी निष्पक्षता या चरित्र पर प्रश्न करना, सदन में सदस्यों के आचरण की निंदा करना, सदन की कार्यवाहियों का झूठा प्रकाशन करना आदि सदन के विशेसधिकारों का हनन तथा अवमानना होगा।

विधायिका के कथित विशेषाधिकार हनन संबंधी मामलों में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया

सदन के अध्यक्ष अथवा सभापति द्वारा एक विशेषाधिकार समिति का गठन किया जाता है, जिसमें  निचले सदन में 15 सदस्य होते हैं तथा उच्च सदन में 11 सदस्य होते हैं।

  • समिति के सदस्यों को सदन में दल की संख्या के आधार पर नामित किया जाता है।
  • अध्यक्ष अथवा सभापति द्वारा सर्वप्रथम प्रस्ताव पर निर्णय लिया जाता है।
  • प्रथम दृष्टया, विशेषाधिकार हनन अथवा अवमानना पाए जाने पर अध्यक्ष अथवा सभापति द्वारा, निर्धारित प्रक्रिया का पालन करके मामले को विशेषाधिकार समिति के पास भेज दिया जाता है।
  • समिति, आरोपी व्यक्ति द्वारा दिए गए बयानों से राज्य विधायिका और उसके सदस्यों की अवमानना तथा जनता के सामने छवि पर पड़ने वाले प्रभाव की जांच करेगी।
  • समिति को अर्ध-न्यायिक शक्तियां प्राप्त होती हैं तथा वह सभी संबंधित व्यक्तियों से स्पष्टीकरण की मांग कर सकती है, तथा परीक्षण करने के उपरान्त अपने निष्कर्षों के आधार पर राज्य विधायिका के विचारार्थ सिफारिश देगी।

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