हाल ही में, केरल सरकार द्वारा सोशल मीडिया में ‘घृणास्पद’, ‘अपमानजनक’ और ‘धमकी भरे’ पोस्ट डालने पर दंडित करने हेतु, केरल पुलिस अधिनियम में एक नई धारा 118A जोड़ी गयी है।
इस क़ानून को एक अध्यादेश के माध्यम से जारी किया गया है।
नए कानून के अनुसार:
“संचार के किसी माध्यम से, यदि कोई व्यक्ति जानबूझ कर गलत और भ्रामक तरीके से, धमकाने, गाली देने, अपमानित करने या बदनाम करने वाली किसी सामग्री का प्रकाशन करता है, जिससे किसी अन्य व्यक्ति अथवा किसी वर्ग को या निजी हित साधने के लिए किसी अन्य व्यक्ति को, मानसिक प्रताणना, उसकी प्रतिष्ठा अथवा संपत्ति को क्षति पहुँचती है, तो साबित होने पर उसे तीन साल तक का कारावास अथवा दस हजार रुपये तक का जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जा सकता है।“
- अर्थात, किसी व्यक्ति को सोशल मीडिया पर ‘घृणास्पद’ या “अपमानजनक” समझी जाने वाली पोस्ट करने पर तीन साल की जेल और दस हजार रुपये के जुर्माने का सामना करना पड़ सकता है।
- इस प्रकार की पोस्ट अथवा विचारों को लिखने और बनाने वाले के अलावा इसे साझा करने वालों को समान दंड भुगतना पड़ेगा।
इस कानून की आवश्यकता
वर्ष 2015 में, सुप्रीम कोर्ट द्वारा आईटी एक्ट की धारा 66A सहित इसी तरह का एक क़ानून- केरल पुलिस अधिनियम की धारा 118(d)– अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को खतरा बताते हुए रद्द कर दिया गया था।
इन दोनों कानूनों के रद्द हो जाने से, निजता के लिए खतरा उत्पन्न करने वाले साइबर हमलों और समाज में महिलाओं के लिए काफी तकलीफ देने वाले ऑनलाइन अपराधों को रोकने में वर्तमान क़ानून अपर्याप्त साबित हो रहे थे, अतः इस कमी को पूरा करने के लिए केरल सरकार द्वारा यह नया कानून लाया गया।
इस नए कानून की आलोचना का कारण
विशेषज्ञों द्वारा इस कानून को ‘क्रूर’ बताया जा रहा है, क्योंकि:
- इस क़ानून को न केवल ‘असहमति’, बल्कि वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का भी दमन करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।
- इस क़ानून के द्वारा, आईटी एक्ट की धारा 66A के कानूनी दोषों को पुनर्जीवित कर दिया गया है, जिन्हें उच्चतम न्यायालय ने क़ानून रद्द कर समाप्त कर दिया था।
- यह कानून, व्यापक और अस्पष्ट है और इसका किन्ही व्यक्तियों द्वारा, अथवा सरकार और पुलिस द्वारा, अपने पक्ष में असहमति रखने वालों के विरुद्ध अंधाधुंध तरीके से दुरुपयोग किया जा सकता है।
- हालांकि केरल सरकार का दावा है, कि इस क़ानून का प्रयोग महिलाओं के खिलाफ साइबर अपराधों से लड़ने के लिए किया जायेगा, लेकिन इसका कानून में कोई उल्लेख नहीं किया गया है।
- यह क़ानून, बिना किसी क्षेत्र सीमा के अभिव्यक्ति को प्रतिबंधित करता है तथा सक्रिय रूप से संविधान के अनुच्छेद 19 को बाधित करता है और इसमें अनुच्छेद 19 (2) के तहत संरक्षण नहीं दिया गया है।
- यह क़ानून, राज्य में पुलिस कार्यप्रणाली पर प्रभावी रूप से डीडीओएस हमला (Denial-of-Service Attack) होगा। इससे लोगों के बीच हर तरह के मुद्दों को लेकर एफआईआर दर्ज कराने के लिए भारी भीड़ लग जाएगी।
- इस क़ानून में, पुलिस को किसी के भी खिलाफ स्वतः संज्ञान लेकर मामला दर्ज करने की शक्ति प्रदान की गयी है।
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